बेसहारा है बिहर का राज्य अल्पसंख्यक आयोग

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बेसहारा है बिहर का राज्य अल्पसंख्यक आयोग

आलोक कुमार

पटना.बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार है.जब मुख्यमंत्री एनडीए के साथ थे, राज्य अल्पसंख्यक आयोग, अनुसूचित जाति आयोग,अनुसूचित जनजाति आयोग,बिहार महादलित आयोग,महिला आयोग आदि को शिथिलावस्था में डाल रखा गया था. इसको लेकर महत्वाकांक्षी लोग बैचेन हैं.सभी लोग चाहते थे कि मुख्यमंत्री शिथिलावस्था भंगकर आयोगों का गठन कर दे.

  तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुश होकर अधिसूचना संख्या 568 दिनांक 08-03-2019 द्वारा प्रो. यूनुस हुसैन हकीम को अध्यक्ष मनोनीत किया गया हैं.इस तरह राज्य अल्पसंख्यक आयोग में केवल अध्यक्ष मनोनीत कर औपचारिकता निर्वाह कर दिये.इस समय तीन साल का कार्यकाल संपन्न होने पर मनोनीत अध्यक्ष महोदय भी सेवानिवृत हो गये हैं.एनडीए के चार माह और महागठबंधन के दो माह में अध्यक्षविहीन अल्पसंख्यक आयोग हो गया है.

    प्रतिवर्ष भारत सहित पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस 18 दिसंबर को मनाया जाता है.18 दिसंबर 1992 से सयुंक्त राष्ट्र संघ द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा, राष्ट्र निर्माण में योगदान के रूप में चिन्हित कर अल्पसंख्यकों के क्षेत्र विशेष में ही उनकी भाषा, जाति, धर्म, संस्कृति, परंपरा आदि की सुरक्षा को सुनिश्चित करने एवं समाज को जागृत करने के लिए मनाया जाता है.

अल्पसंख्यक शब्द अल्प और संख्यक जैसे दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है दूसरों की तुलना में संख्या में कम होना. अल्पसंख्यक होने के कई पहलू हो सकते हैं परन्तु मुख्यतः इसमें धार्मिक, भाषाई, जातीय पहलुलओं को प्रमुखता से देखा जाता है.

  संयुक्त राष्ट्र ने अल्पसंख्यकों की परिभाषा दी है कि  ऐसा समुदाय जिसका सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक रूप से कोई प्रभाव न हो और जिसकी आबादी नगण्य हो, उसे अल्पसंख्यक कहा जाएगा.

   कानूनी रूप से भारत के संविधान में अल्पसंख्यक की कोई स्पष्ट परिभाषा नही है, किंतु संविधान के कई प्रावधान अनुच्छेद 29, 30 आदि अल्पसंख्यक के हित की रक्षा के लिए संविधान में पहले दिन से हैं.भारत सरकार, अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों के रुप में सिख, मुस्लिम, ईसाई, झोरास्ट्रियन,बौद्ध  एवं जैन समुदाय को अल्पसंख्यक अधिसूचित किया गया है.

   भारत में अल्पसंख्यकों के विकास के लिए सन् 1992 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का भी गठन किया गया था बाद में 2006 में अलग से केंद्र सरकार में मंत्रालय भी बनाया गया. अल्पसंख्यक समुदायों के लाभ के लिए यह मंत्रालय समग्र नीति और नियोजन, समन्वय, मूल्यांकन और नियामक ढांचे और विकास कार्यक्रम की समीक्षा कर आगे की योजना बनाता है. वर्ष 2021 -22 के लिए केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय का  बजट 4800 करोड़ से अधिक है, जो पिछले बार के संशोधित आवंटन के मुकाबले करीब 800 करोड़ रुपये ज्यादा है.

     केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का गठन रा.अ.आ अधिनियम 1992 के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित पांच धार्मिक अल्पसंख्यकों मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध एवं पारसी समुदाय के हितों की रक्षा के लिए किया. आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और पांच सदस्य हैं जो कि अल्पसंख्यक समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं. इसी आधार पर राज्यों में भी राज्य अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया गया.

     राज्य जैसे आंध्रप्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्यप्रेदश, मणिपुर, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश तथा पश्चिम बंगाल में भी राज्य अल्पसंख्यक आयोगों का गठन किया गया है. इन आयोगों के कार्यालय राज्यों की राजधानियों में स्थित हैं. आयोगों का कार्य संसद तथा राज्य विधान-मंडलों द्वारा संविधान में अधिनियमित विधियों में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करना है.

   राज्य सरकार ने अपनी अधिसूचना संख्या-5742/सी दिनांक 26.4.71 द्वारा धार्मिक एवं भाषाई अल्पसंख्यक आयोग के गठन का आदेश निर्गत किया जिसके अध्यक्ष मुख्यमंत्री तथा सदस्य सचिव लोक शिकायत आयुक्त श्री एस0 आलम को बनाया गया. अधिसूचना के संकल्प में यह कहा गया कि भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को चाहे वे किसी र्धम या सम्प्रदाय के हो समान मौलिक अधिकार दिया गया है। अनुच्छेद-15 में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि राज्य के किसी नागरिक के प्रति धर्म, जाति, जन्मस्थान आदि के आधार पर भेदभाव नही बरतेगा.

      दिनांक 19.08.1972 को आयोग का पुर्नगठन किया गया तथा मुख्यमंत्री उसके अध्यक्ष एवं अब्दुल कयूम अंसारी उसके उपाध्यक्ष बनाए गये तथा सदस्य सचिव का पद श्री नीतीश्वर प्रसाद, सदस्य, विधान सभा को दिया गया. पुनः 27.11.1975 को इसका पुर्नगठन करते हुए मुख्यमंत्री को अध्यक्ष एवं श्री नीतीश्वर प्रसाद को सचिव बनाया गया. दिनांक 27.11.1976 को फिर आयोग का पुर्णगठन किया गया तथा श्री जाबिर हुसैन, सासंद को अध्यक्ष तथा श्री नीतीश्वर प्रसाद सदस्य सचिव बनाये गये. पुनः 01.11.1977 को इस आयोग का पूर्णगठन हुआ तथा मुख्यमंत्री अध्यक्ष एवं श्री तकी रहीम उपाध्यक्ष मनोनीत हुए. गृह विशेष विभाग के उपसचिव श्री सरयु प्रसाद सिंह, सदस्य सचिव बने. 01.06.1981 को आयोग का पुर्नगठन करते हुए मुख्यमंत्री पदेन अध्यक्ष हुए तथा उपाध्यक्षों की संख्या एक से बढ़ा कर दो हो गयी। उपाध्यक्ष के रूप में श्री हारून रशीद एवं श्री जोगिन्दर सिंह ‘जोगी‘ को मनोनित किया गया. संयुक्त सचिव/उपसचिव, गृह विशेष, सदस्य सचिव मनोनीत किये गये. 17.07.1989 को एक उपाध्यक्ष का दर्जा बढ़ा कर कार्यकारी अध्यक्ष का कर दिया गया तथा श्री हारून रशीद, कार्यकारी अध्यक्ष मनोनीत हुए और उपाध्यक्ष श्री जोगीन्दर सिंह जोगी को ही बनाया गया. श्री हारूण रशीद 18.10.1990 तक कार्यकारी अध्यक्ष बने रहे तथा 19.10.1990 से श्री जाबिर हुसैन को कार्यकारी अध्यक्ष, उपाध्यक्ष श्री जोगिन्दर सिंह तथा श्री एस० दास बनाए गये. 1991 ई0 में बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम बना जिसमें यह प्रावधान किया गया कि आयोग के लिए एक अध्यक्ष दो उपाध्यक्ष एवं आठ सदस्य जो राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किए जाएगे. अधिनियम के आलोक श्री जाबिर हुसैन को 24.02.1994 को अध्यक्ष मनोनीत किया गया जिन्होने 10.04.1995 को त्याग पत्र दे दिया. तत्पश्चात 12.10.1995 को प्रो० सुहैल अहमद को बिहार राज्य अल्पसंख्यक अयोग का अध्यक्ष मनोनित किया गया. जो आयोग के अध्यक्ष के रूप में 22.07.2006 तक पदासीन रहे.नवम्बर 2005 आयोग के लिए सुनहरा युग आरम्भ हुआ जब दलितों पीड़ितों पिछड़ी एवं अल्पसंख्यकों के मसीहा के रूप में श्री नीतीश कुमार का बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में पदापर्ण हुआ. उन्होंने बिहार में अल्पसंख्यकों विशेष कर मुसलमानों की गरीबी, आर्थिक, शैक्षणिक, सामाजिक पिछड़ापन से चिंतित होकर उसका गहराई से अध्ययन किया और उनकी समस्याओं के निराकरण का बीड़ा उठाया. इस संदर्भ में पहले उन्होने अल्पसंख्यक आयोग का पुनर्गठन किया. अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की अधिसूचना सं० 1284 दि० 05.08.2006 द्वारा आयोग का पुनर्गठन करते हुए श्री नौशाद अहमद, अध्यक्ष एवं दो उपाध्यक्ष श्री सरदार चरण सिंह , श्री फादर पीटर अरोक्कास्वामी एंव आठ अन्य सदस्यों को मनोनीत किया गया.

   पुनः अधिसूचना सं0 457 दि0 22.01.2009 द्वारा आयोग का पुनः गठन हुआ जिसके द्वारा श्री नौशाद अहमद अध्यक्ष, डॉ0 कैप्टन दिलीप कुमार सिन्हा एवं श्री सरदार चरण सिहं उपाध्यक्ष एंव आठ सदस्य मनोनीत किये गये.

    वर्ष 2015 में अधिसूचना संख्या 1069, दिनांक 05.08.2015 द्वारा आयोग का अगले कार्यकाल के लिए गठन किया गया. मोहम्मद सलाम अध्यक्ष बनाये गये तथा एम्ब्रोस पैट्रिक एंव डॉक्टर कप्तान दिलीप कुमार सिन्हा उपाध्यक्ष मनोनीत हुए. सदस्य के रूप में कुलवंत सिंह सलूजा, मोहम्मद अब्दुल्लाह, अहमद अली तमन्ने मनोनीत किए गये.


मोहम्मद सलाम अध्यक्ष तथा एम्ब्रोस पैट्रिक एंव डॉक्टर कप्तान दिलीप कुमार सिन्हा उपाध्यक्ष तथा तीनों सदस्य दिनांक 17-15-2017 को त्याग - पत्र दे दिया है.अधिसूचना संख्या 568 दिनांक 08-03-2019 द्वारा प्रो. यूनुस हुसैन हकीम को अध्यक्ष मनोनीत किया गया हैं.


   बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग में केवल अध्यक्ष के बलबूते अल्पसंख्यकों का कल्याण हो रहा था.सम्प्रति 08 मार्च, 2019 से बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष यूनुस हकीम थे.अपने कार्यकाल में एकलौता अध्यक्ष नीतीश सरकार की जमकर तारीफ करते रहे. इस सरकार के द्वारा अल्पसंख्यको के उत्थान के कई प्रकार के कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं. इससे पहले बिहार में जितने भी सरकार बनी, उनके शासन काल में इतना काम नहीं हुआ, जितना वर्तमान सरकार में हो रहा है. वर्तमान सरकार ने कब्रिस्तान की घेराबंदी के साथ ही अल्पसंख्यक समुदाय के लड़के और लड़की के लिए पढ़ाई के साथ उनके रोजगार के लिए कई योजना चलाई है.इस संदर्भ में यूनुस हकीम ने कहा कि पूरे बिहार में 8 हजार से ज्यादा कब्रिस्तान की घेराबंदी के लिए प्रस्ताव किया गया था. जिसमें से 7 हजार से ज्यादा कब्रिस्तान की घेराबंदी हो गई है और बाकी जगहों पर युद्ध स्तर पर काम चल रहा है. वहीं, उन्होंने कहा कि कोशिश की जा रही है कि इस वर्ष के अंत तक जितने भी बचे हुए कब्रिस्तान हैं. उन सभी कब्रिस्तानों की घेराबंदी पूरी कर ली जाए. उसके बाद ही बचे हुए कब्रिस्तान को इस प्रोजेक्ट में शामिल किया जाएगा. सिंहवाड़ा प्रखंड के रामपुरा निवासी डा. प्रो. युनूश हकीम को बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग का चेयरमैन नियुक्त किये गये थे.

 राज्य अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष का पद राजनीतिक हो गया है. सत्ताधारी राजनैतिक दल अपने ही पक्ष में भूनाना चाहता है.सत्ताधारी दल अपने ही चहेते और वोट बैंक की हिसाब से अध्यक्ष का चयन करते है.अल्पसंख्यकों में मुसलमान ही वोट बैंकहै. इसके आलोक में उनको ही सदैव अध्यक्ष पद देने का परम्परा बना दिया गया है. इसको लेकर अन्य अल्पसंख्यक समुदाय आक्रोशित हो  जाते हैं. अल्पसंख्यकों में द्वितीय स्थान पर ईसाई हैं तो उनको उपाध्यक्ष पद देकर खुश कर दिया जाता है. मगर इससे ईसाई समुदाय नाखुश हो जाते हैं. ईसाई समुदाय के लोगों के लोगों का कहना है कि ईसाई समुदाय में अयाजक और याजक वर्ग में अनेक काबिल व्यक्ति हैं जो बतौर आयोग के अध्यक्ष के रूप में दायित्व निर्वाह कर सकते हैं.उन लोगों का कहना है कि सरकार रोटेशन पद्धति के अनुसार अल्पसंख्यकों को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बनाएं.



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