त्रिशंकु संसद के मुहाने पर नेपाल

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

त्रिशंकु संसद के मुहाने पर नेपाल

यशोदा श्रीवास्तव

नेपाल में संसद और सभी सात प्रदेशों के विधानसभाओं का चुनाव 20 नवंबर को एक साथ होना है. यहां भी दूसरे दलों से आयातित नेताओं को तवज्जो एक दूसरे के मुखालिफत दल खूब दे रहे हैं. चुनावी परिदृश्य बड़ा मजेदार है. नामांकन को जा रहे उम्मीदवार चुनाव कार्यालय तक जाते जाते दल, झंडा और चुनाव चिन्ह बदल दे रहे हैं. नेपाल के तमाम  जिलों में यह देखा गया है. जैसा कि अनुमान था कि इस बार लड़ाई आर पार की होगी. अर्थात या तो नेपाली कांग्रेस गठबंधन पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आएगी या फिर ओली की एमाले पार्टी को जीत हासिल होगी लेकिन गठबंधन का बिखराव, तमाम जगहों पर उम्मीदवारों का गठबंधन के साथ होते हुए भी अपनी डफ़ली अपनी राग की राह पर चलना आदि कुछ ऐसे गड्डमड्ड चुनावी परिदृश्य हैं जिससे किसीके भी पूर्ण बहुमत की सरकार दे पाने की संभावना नहीं लग रही.

दो प्रमुख दलों के बीच में जो मधेशी दल हैं,इनकी स्थिति बड़ी हास्यास्पद हो गई है. ये कब किस दल के साथ चले जाना और कब हट जाय कोई ठिकाना नहीं है. अभी तक जैसा इनकी रणनीति देखी गई है उस हिसाब से इनका एक मात्र उद्देश्य एनकेन प्रकारेण सत्ता में बने रहना ही है. मधेशी दलों के यूं तो कई टुकड़े हैं लेकिन सभी का लक्ष्य सत्ता के साथ ही रहना है. इनका मधेशियों के हक की बात करना या उसके लिए लड़ने का दावा करना सब झूठा है. हम एक बड़े मधेशी नेता और उनके दल की बात करते हैं जिसका नाम है उपेंद्र यादव और उनकी पार्टी है जनता समाजवादी पार्टी! नेपाल में पांच लाख के आस पास मधेशी लोग किन्हीं कारणों से नागरिकता से वंचित हैं और भारत सहित दक्षेस देशों की नेपाल में व्याही गई महिलाओं को नागरिकता नहीं मिलता. ऐसी महिलाओं की संख्या भी लाखों में है. मधेशी नेताओं को नेपाल के नए संविधान में नागरिकता संवंधी यह अड़चन दूर करने का भरोसा दिया गया था. संविधान लागू हो गया लेकिन उसमें यह मुद्दा किनारे रख दिया गया.

मधेशी दलों ने इसे लेकर खूब आंदोलन किया, धरना प्रदर्शन आगजनी सब हुआ लेकिन सरकारों की ओर से इन्हें सिर्फ आश्वासन मिलता रहा. अभी जो नेपाली कांग्रेस गठबंधन की सरकार है,जिसमें उपेंद्र यादव की पार्टी सहभागी रही है,इसने नया नागरिकता संशोधन विधेयक तैयार कर राष्ट्रपति के समक्ष हस्ताक्षर के लिए भेजा. इस विधेयक में नागरिकता संवंधी उन दोनों जटिलताओं का समाधान है, राष्ट्र पति विद्या देवी भंडारी ने एक नहीं दो दो बार हस्ताक्षर करने के बजाय विधेयक वापस लौटा दिया. राष्ट्रपति एमाले प्रमुख ओली की अनुयायी मानी जाती हैं. मधेशी दलों खासकर उपेंद्र यादव की पार्टी ने पूरे नेपाल में राष्ट्रपति और ओली के खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन किया. नेपाल की जनता, मीडिया, राजनीतिक विश्लेषक तब हक्का बक्का रह गए जब यह खबर आई कि सीटों की सौदेबाजी के साथ उपेंद्र यादव अपनी पार्टी के साथ ओली से जा मिले. उपेंद्र यादव के इस कदम पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्हीं के दल के एक मधेशी नेता ने कहा है कि जसपा सुप्रिमों  उपेंद्र यादव ने मधेश क्षेत्र में अपनी विश्वसनीयता को तार तार कर दिया  है. उनके ऐसा करने से तराई में तय हो चुके तमाम मधेशी उम्मीदवार   दूसरे दलों से टिकट हासिल कर लिए. तमाम क्षेत्रों में एमाले और जसपा उम्मीदवारों को लेकर अफरा तफरी का माहौल है.

 कभी प्रचंड का दाहिना हाथ रहे पूर्व पीएम डा.बाबू राम भट्टाराई भी उपेंद्र यादव के साथ थे. भट्टाराई को अपने साथ लाने के लिए ओली महीनों से प्रयास रत थे. नेपाल के चुनाव में चीन की दखलंदाजी किसी से छिपी नहीं है. चुनाव की घोषणा के पहले चीनी कम्युनिस्ट नेताओं की टोली ने दो बार काठमांडू भ्रमण कर नेपाल के कम्युनिस्ट नेताओं से मुलाकात की है. नेपाली राजनीति के गलियारों में चर्चा तेज है कि मुमकिन है भट्टाराई की भी चीन के कम्युनिस्ट नेताओं से मुलाकात हुई हो और उसके बाद उपेंद्र यादव की पार्टी का एमाले में विलय का फैसला लिया गया हो. यदि ऐसा हुआ तो पहाड़ के कुछ क्षेत्रों में भट्टाराई के प्रभाव का लाभ ओली को मिलना तो तय है लेकिन मैदानी क्षेत्रों में ओली के प्रभाव का कोई फायदा उपेंद्र यादव की पार्टी को मिलने वाला नहीं है. कुल मिलाकर नेपाल में हो रहे दूसरे आम चुनाव में मुख्य मुकाबला नेपाली कांग्रेस गठबंधन और एमाले गठबंधन के बीच ही है लेकिन दोनों दलों में उम्मीदवारों के चयन में जिस तरह हड़बड़ी दिखी है उससे इस बात की पूरी संभावना बन रही है कि नेपाल का प्रतिनिधि सभा एक बार फिर त्रिशंकू के मुहाने पर है.

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :