क्या अखिलेश अपनी ज़िम्मेदारी निभाएँगे ?

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क्या अखिलेश अपनी ज़िम्मेदारी निभाएँगे ?

 डा रवि यादव

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में भाजपा की शानदार जीत के बाद राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा यह घोषित कर दिया गया कि अब 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को रोकना नामुमकिन है किंतु पिछले तीन महीने में घटें घटनाक्रम राजनीतिक मौसम के बदलाव के संकेत दे रहे है. बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने एनडीए से बाहर आकर  “ पक्षी को पिंजरे से बाहर निकाल दिया है “ तो राहुल गांधी “ पक्षी के अंदर से पिंजड़े को बाहर निकालने “ के किए 3500 किमी की पैदल यात्रा पर सड़क पर है. राहुल गांधी को मिल रहे व्यापक जन समर्थन से भाजपा सरकार की नीतियो से सहमत आम जन को यह उम्मीद जग रही है कि पक्षी के अंदर का पिंजड़ा टूटेगा और पक्षी आज़ादी की उड़ान भरेगा.

भारत जोड़ों यात्रा को मिल रहा जनसमर्थन कांग्रेस और स्वयं राहुल गांधी की अपेक्षाओ से कही अधिक है जिससे यह सिद्ध होता है कि महँगाई , बेरोज़गारी, आलोकतांत्रिक तरीक़े से दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों का दमन , सत्ता के दुरुपयोग से राजनीतिक विरोधियों की  ज़ुबानबंदी और मनमाने  फ़ैसलों के कारण दिन व दिन ख़राब होती देश की आर्थिक स्थित के कारण वर्तमान सरकार से लोगों का मोहभंग हुआ है.  राहुल गांधी की व्यक्तिगत छवि ख़राब करने के लिए संघ परिवार ने बहुत प्रयास किया है जिसमें उन्हें काफ़ी सफलता भी मिली किंतु इस यात्रा में  बारिश में भीगते राहुल गांधी और उनको भीगते हुए सुनने  वालों की भीड़ से कांग्रेस के  वोट प्रतिशत में कितना इज़ाफ़ा होगा इस पर बहस हो सकती है लेकिन राहुल पर लगाई गई  पप्पू पैंट  धुलकर बह चुकी है इसमें सावन के अन्धे ही संदेह कर सकते है . भारत जोड़ों यात्रा की तैयारी , रूप रेखा , मात्रा मार्ग , मुद्दे  बहस का विषय है किंतु एक बात स्पष्ट है कि राहुल गांधी इसके माध्यम से लोकतंत्र के पुनर्स्थापन के यज्ञ में अपने हिस्से की आहुतियाँ डालते प्रतीत होते है.  हाँ यही बात कांग्रेस के लिए नहीं कही जा सकती , राजस्थान घटनाक्रम यह बताने के लिए काफ़ी है कि कांग्रेस के अंदर संघ के स्लीपिंग सेल अभी भी न केवल मौजूद है बल्कि उतने ही मज़बूत है जितने महालेखा परीक्षक विनोद राय की नियुक्ति के समय थे . ऐसे में यात्रा से कांग्रेस कितना बदलेगी यह भविष्य के गर्भ में है.

आज की स्थिति में यदि भाजपा को देश की सत्ता से हटाना है तो अकेले कांग्रेस या अकेले किसी भी सम्भावित ग़ैर कांग्रेस -  ग़ैर भाजपा गठबंधन के लिए संभव नहीं है. भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस सहित बचे हुए विपक्ष के आधे से अधिक क्षेत्रीय दलो का साथ आना आवश्यक है. भाजपा मुख्य रूप से हिन्दी प्रदेशों की 90 प्रतिशत से अधिक सीटों पर जीत की वजह से बहुमत में है. ग़ैर हिंदी प्रदेशों में गुजरातके अलावा, महाराष्ट्र, कर्नाटक , असम और बंगाल से मिल रहे संकेत भाजपा के लिए काफ़ी चिंताजनक है. नीतीश कुमार -तेजस्वी के नेतृत्व में भाजपा बिहार में लगभग साफ़ हो सकती है. सबसे अधिक लोकसभा सदस्य चुनने के कारण उत्तर प्रदेश का राष्ट्रीय राजनीति में सबसे अधिक दख़ल रहता रहा है. राजनीति में एक कहावत प्रचलित है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता लखनऊ होकर जाता है .उत्तर प्रदेश में बहुमत के बिना अभी तक कोई पार्टी केंद्र में अपने दम स्पष्ट बहुमत नहीं प्राप्त कर सकी है. इसी महत्व को देखते हुए वर्तमान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ने और वाराणसी का प्रतिनिधित्व करने का निर्णय लिया. पिछले लोकसभा चुनाव में 73 सीट जीतने वाली भाजपा के पास वर्तमान लोकसभा में 66 सीट है . भाजपा को बहुमत दिलाने में हिन्दी प्रदेशों विशेष रूप से बिहार उत्तर प्रदेश की अहम भूमिका है. तब उत्तर प्रदेश वह राज्य है जो भाजपा की सत्ता में वापसी या सत्ता से बेदख़ली का कारण बनने वाला है. कांग्रेस की भूमिका यूपी  में नगण्य ही रहेगी मयवतीजी विधानसभा चुनाव की तरह भाजपा की अप्रत्यक्ष सहयोगी की भूमिका में रह सकती है.  क्योंकि उत्तर प्रदेश में भाजपा का सीधा मुक़ाबला समाजवादी पार्टी से है अतः अखिलेश यादव को इतिहास ने वह ज़िम्मेदारी और अवसर दिया है जिसपर खरे उतरकर वे अपनी भविष्य की राजनीति को एक दिशा दे सकने के साथ भारत में लोकतंत्र समाजवाद धर्मनिरपेक्षता के भविष्य को भी निर्धारित करेंगे.

हाल ही में 29 सितम्बर को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सम्मेलन में पारित राजनीतिक आर्थिक प्रस्ताव के संकल्पो को समाजवादी पार्टी कितना अमल में लाती है इससे न केवल सपा का भविष्य तय होगा बल्कि  यह क्षेत्रीय दल देश के लोकतंत्र के भविष्य का भी निर्णय करेगा.अम्बेडकरवादियों अर्थात दलितों और लोहियावादियों को साथ आने के आह्वान के साथ अखिलेश यादव ने सपा कार्यकर्ताओ को भविष्य में सड़क पर संघर्ष के साथ जेल जाने के लिए तैयार रहने के लिए कहा है . लोहिया - मुलायम सिंह की विरासत की दावेदार पार्टी से यह उम्मीद की भी जानी चाहिए. सम्मेलन में पार्टी के मेंटर और प्रमुख महासचिव रामगोपाल यादव ने कार्यकर्ताओ के लिए प्रशिक्षण शिविरआयोजित करने का निवेदन पार्टी अध्यक्ष से किया जो पार्टी की वैचारिक धार को मज़बूती देने के साथ कार्यकर्ताओ को अनुशासन सिखाने व पार्टी के वारे में भाजपा और गोदी मीडिया द्वारा फैलाये गए मिथकों का जवाब देने के लिए आवश्यक है. पार्टी यदि दलितों में अपना पाँच सात प्रतिशत वोट बढ़ाने, अपने समर्थक वर्ग के वोट वोटरलिस्ट में जुड़वाने और बूथ स्तर पर अपना संगठन बनाने में कामयाब हो सकी जो वोटरों को पोलिग बूथ तक ले जाने के लिए प्रोत्साहित कर सकें तो निश्चित रूप से वह भाजपा को उत्तर प्रदेश में रोकने में कामयाब हो सकतीं है. देखना होगा अखिलेश यादव इस ऐतिहासिक अवसर पर किस तरह अपनी ज़िम्मेदारी निभाते है ?

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