गांधी की हत्या का कारण सर्वोदय !

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

गांधी की हत्या का कारण सर्वोदय !

डा रवि यादव

देश में  राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 153 वीं जयंती पूरे जोश-ओ- खरोश के साथ मनाई गई मगर दुर्भाग्यपूर्ण है कि गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को याद करने वालों की संख्या भी लगातार बढ़ रही प्रतीत होती है. कुछ फ़्रिंज एलिमेंट पहले भी गोडसे के कुकृत्य का बचाव करते रहे है मगर अब यह एक फ़ैशन बन चुका का . विडम्बना यह है कि अब गांधी की आलोचक विचारधारा के लोग उच्च पदों को सुशोभित कर रहे है अतः वे पहले से अधिक प्रभावशाली है , यहाँ भी गांधी का विचार सत्य प्रतीत होता है - गांधी जी साधन और साध्य दोनो की शुद्धता पर ज़ोर  देते थे . उनके अनुसार साधन और साध्य के मध्य बीज व पेड़ के जैसा सम्बंध है अर्थात बीज के दूषित होने की स्थिति में पेड़ के स्वस्थ होने की कल्पना नहीं की जा सकती.आज जो व्यवस्था के विगड़ने के लिए ज़िम्मेदार है वे उसी दूषित बीज से उत्पन्न वृक्ष है जिन्हें गांधी के सत्य , अहिंसा , स्वराज और सर्वोदय से दिक्कत थी.

हिंदुत्व की इस विचारधारा ने कभी अपने इन इरादों को छुपाया भी नहीं है चाहे 30 नवम्बर 1949 को पाँवजन्य का संविधान के विरोध और मनुसंहिता को प्राथमिकता देने की वकालत का सम्पादकीय हो या 14 अगस्त 1947 को तिरंगे से असहमति का पाँचजन्य का ही सम्पादकीय . गोडसे ने गांधी की हत्या की वजह भारत विभाजन न रोकने व 55 करोड़ पाकिस्तान को देने के लिए गांधी के अनशन को बताया था मगर यह सच नहीं था गांधी की हत्या का प्रयास देश के विभाजन और 55 करोड़ के  अनशन के पूर्व भी पंचगनी में 1944 में और 20 जनबरी 1948 को बम्बई में किया जा चुका था.

गांधी का सर्वोदय सभी के उत्थान या सभी की प्रगति का का विचार है . एक ऐसा वर्गीय ,  जातीय दुरागृहों से मुक्त व शोषण विहीन समाज जिसमें सभी को समान सम्मान और अवसर उपलब्ध हो जिसमें जाति , वर्ण , भाषा , सम्प्रदाय या क्षेत्र के आधार पर न किसी का बहिष्कार , न तिरस्कार और न पुरस्कार हो. गांधी ने कहा था मैं अपने पीछे कोई पंथ या सम्प्रदाय नहीं छोड़ना चाहता.गांधी की यहीं विचारधारा उन लोगों की आँख की किरकिरी बनी जो शोषण युक्त ग़ैरबराबरी आधारित विशेष अधिकार के हिमायती थे जो वैदिक युग के बाद ईजाद की गई मनुसंहिता को लागू रखना चाहते थे . वे कभी यह स्वीकार नही कर सकते थे कि समानता एक वैधानिक राष्ट्रीय उद्देश्य बने और उनकी ग़ुलामी करने वाले वर्ग के लोग उनकी बराबरी करें. हिंदुत्व अंतत: ब्राह्मणवाद के पोषण संवर्धन, ऊँची जातियों के वर्चस्व व दलित वंचित समाज के शोषण की विचारधारा है .

पिछले आठ साल के अनुभव से यह सिद्ध हो चुका है कि हिंदुत्व लोकतंत्र , सामाजिक न्याय या बराबरी से असहमति का विचार है. पिछले आठ साल में दलित पिछड़ों के आरक्षण को ख़त्म करने के लिए सार्वजनिक उपक्रमों को बेचा गया है , लेट्रलएंट्री से बग़ैर यूपीएससी परीक्षा पास किए नियुक्ति में दलित पिछड़ों की अनदेखी हो या वास्तविक राजनीतिक भागीदारी में इनकी उपेक्षा एक दर्जन से अधिक राज्यों में स्पष्ट बहुमत की सरकारें बनाने के बाद भी एक भी दलित पिछड़े आदिवासी का मुख्य मंत्री नही बनाया जाना हो या असंवैधानिक तरीक़े से ईडबल्यूएस का लागू किया जाना .

आज डर और प्रलोभन से लोकतंत्र को अपंगु बनाया जा चुका है . सभी संवैधानिक संस्थाओं को प्रभावहीन बनाकर आज्ञापालक संस्थाएँ, समाज और देश बनाया जा चुका है . राजनीतिक विरोधी को दुश्मन की तरह ट्रीट किया जा रहा है. 16 जुलाई 2022 को भारत के  तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस तमण ने राष्ट्रमण्डल संसदीय संघ द्वारा राजस्थान विधान सभा में आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए देश की विधायिकाओं के प्रदर्शन की गुणवत्ता पर सवाल उठाए. उन्होंने यह भी कहा कि पहले देश में सत्तापक्ष और विपक्ष में आपसी सम्मान होता था जो दुर्भाग्य से अब कम होता जा रहा है व विरोध का वैर में बदलना दुर्भाग्यपूर्ण है.

सामाजिक,राजनीतिक व आर्थिक असमानता लगातार बढ़ रही है पिछले आठ साल में देश को दुनिया का दूसरा सबसे धनी व्यक्ति देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है तो देश की अस्सी करोड़ जनसख्या को आत्मनिर्भर भारत के नारे के बीच अनुदान के खाद्यान पर जीविकोपार्जन के लिए अभिसप्त होने के कलंक का सामना भी करना पढ़ा है.असमानता के साथ कटुता को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि  लोगों को वास्तविक मुद्दों से भटकाया जा सके.सर्वोच्च न्यायालय ने 21 सितम्बर को हेट स्पीच पर सुनवाई करते हुए जो चिंता ज़ाहिर की है क्या भारत सरकार कोई रेगुलटरी मकैनिशम बनाने की कौशिश करेगी ?सर्वोच्च अदालत ने हेट स्पीच के बढ़ने के लिए टीवी चैनल्स और शोस मीडिया को ज़िम्मेदार बताया है और सरकार से पूछा है कि हेट स्पीच पर अंकुस के लिए उसके पास क्या योजना है? जस्टिस जोजेफ ने कहा , सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि हमारा देश किस और जा रहा है “ .

इसमें किसी को कोई संदेह नहीं कि देश में सहिष्णुता , भाषा की अभद्रता और हिंसा लगातार बढ़ रही है और इस पर अंकुस लगाने की ज़िम्मेदारी जिन पर है वे इससे न तो अनजान है और न वे उदासीन है बल्कि असहिष्णुता और भाषा की अभद्रता के लिए एक सुनियोजित योजनाके तहत बड़ा राजनीतिक निवेश किया गया है ताकि इससे उत्पन्न धार्मिक जातीय कटुता को वोट में बदला जा सके . यह ठीक है कि माननीय न्यायालय ने इसके लिए मैनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया को ज़िम्मेदार ठहराया है मगर इसके लिए मीडिया के अलावा बड़े पदों पर आसीन लोगों की भाषा और भाषा के पीछे छिपी मंशा कही अधिक जिन्मेदार है . जब प्रधानमंत्री  कहते है कि ईद पर बिजली मिलती है तो दीवाली पर भी मिलनी चाहिए तब सवाल बिजली की आपूर्ति का नहीं होता , या जब वे क़ब्रिस्तान और शमशान की बात करते है तो सबके समान हित की बात नहीं कहते बल्कि वे एक संदेश दे रहे होते है जिससे अलगाव को बढ़ावा मिलता है .वे कपड़ों से अपराधियों की पहचान करने की बात कहके है तो उससे प्रेरणा लेकर भाजपा महासचिव खाने की आदतों को देख कर पहचान लेते है और सत्ता प्रतिष्ठान को प्रसन्न रखने की गरज से  टीवी चेनल और एंकर इसे एक क़दम और बढ़ा देते है.

दरअसल वर्तमान सरकार जिन इरादों को बताकर और जिन वायदों का भरोसा दिलाकर सत्ता में आइ वे पूरे नहीं किए गए. इसलिए नहीं कि वे पूरे नहीं किए जा सकते थे , न भी किए जा सकते थे तो भी प्रयास करते तो दिखाई दे ही सकते थे लेकिन गांधी का सर्वोदय -  आर्थिक सामाजिक राजनीतिक समता आधारित व्यवस्था मनुसंहिता के विपरीत है और ग़रीबी , अशिक्षा, भुखमरी बेकारी से ध्यान हटाने के लिए  नफ़रत , धर्म  , हिंसा अफ़वाह और मुखौटों का सहारा लेना सत्ता की मजबूरी है .


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