चंचल
नोज़ल , बाहर निकलते ही कबाड़ हो जाता है . मशीन का एक निहायत ज़रूरी , छोटा सा यंत्र है जो मशीन को चलाता है , अगर यह न रहे तो दैत्याकार मशीन भी बेदम मरे हुए हाथी के समान हो जाता है , इसे ही नोज़ल कहते हैं .मशीन को गति देने के लिये इसी नोज़ल के मार्फ़त मशीन को खुराक मिलती है .
राजनीतिक दल भी इसी मशीन की तरह होते हैं .नोज़ल ज़रूरी होता है .किसी में एक नोज़ल होता है किसी में दो या ज्यादा से ज्यादा चार मान लो .बाक़ी नट बोल्ट , चक्का , धुरी वग़ैरह होते हैं .कांग्रेस अकेली पार्टी है जिसमे अनगिनत नोज़ल लगे हैं , आपस में एक दूसरे से अलग भी और मिल कर कसे हुए गठित भी , ताड़ के दरख़्त माफ़िक़ .बाज दफे किसी नोज़ल को नज़ला हो जाता है और बाज इस नोज़ल को मुग़ालता हो जाता है कि यह मशीन हमी से चल रही है .और वह छटक जाता है , कभी ख़ुद , कभी किसी कबाड़ी के चक्कर में फँस कर .जब कि होता यह है की नोज़ल बाहर निकलते ही कबाड़ हो जाता है .कितने नाम गिनाऊँ .ग़ुलाम नवी तो बहुत छोटा नाम है .
कांग्रेस इसे जानती है ' यह जो नोज़ल छिटक रहा है , बिकते ही कबाड़ हो जायगा ' .आयेगा दरवाज़ा खुला है , न आये उसकी नियति .कांग्रेस की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता .
77 की बात है , कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई थी .एक दिन हम बाबू जगजीवन राम के घर पर बैठे थे , तारकेश्वरी सिंहा और हेमवती नन्दन बहुगुणा आ गये .सच्चिदा सिंह ( प्रसिद्ध समाजवादी , जगदानंद सिंह के बड़े भाई ) पहले से मौजूद थे .तारकेश्वरी जी ने कहा - कांग्रेस ख़त्म हो गई .पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया .सब के सर नीचे थे .अचानक बाबू जी बोल पड़े 'नहीं ! तारकेश्वरी जी ! कांग्रेस हम जैसों से नहीं है , उसकी जड़ें सुदूर गाँव गाँव तक फैली हुई है .'
हमैं बड़ा अजीब लगा - ये सब कांग्रेस से बाहर आये हुए लोग हैं .कांग्रेस तनहा श्रीमती इंदिरा गाँधी की होकर रह गई है .सारे लोग जा चुके हैं .कल तक जिसके इशारे पर मुल्क घूमता था , दुनिया की निगाह टिकी रहती श्रीमती इंदिरा गाँधी की तरफ़ , आज वह सी बी आई अधिकारियों के बीच घिरी खड़ी हैं .सीबीआई के बड़े अधिकारी एनके सिंह ने गिरफ़्तारी का वारंट दिखाया , इन्दिरा गाँधी ने कलाई उपर कर दी
'लगाओ हथकड़ी '
कमाल करता है इतिहास भी , श्रीमती गांधी सरकारी आवास से निकाल दी गयीं थी , कई सौ करोड़ का आनंद भवन राष्ट्र को समर्पित करने , देश की पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की बेटी आज दरबदर है , सर छुपाने के लिये कोई छत तक नहीं , श्रीमती इंदिरा गांधी अपने दोस्त मोहम्मद यूनुस के घर पर रह रही हैं .जनता पार्टी दो हिस्से में खड़ी हो गई .एक इस गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ , दूसरे समर्थन में .
गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह श्रीमती गाँधी की ग़ैरफ़्तारी के लिये अड़े हुए थे .चंद्रशेखर जी , मधु लिमिये जी , बाबू जगजीवन राम वग़ैरह नहीं चाहते थे श्रीमती गाँधी को गिरफ़्तार किया जाय .लेकिन गृहमंत्री की ज़िद . एक छोटी सी घटना गृहमंत्री के घर में घट रही थी , इतिहास चुप है , शायद उसे गृहमंत्री की ज़िद बड़ी लगी , एक औरत की करुणा छोटी पड़ गई .गृह मंत्री एक अक्तूबर को गिरफ़्तार करने का फ़रमान दे रहे थे .चौधरी चरण सिंह की पत्नी ने रोक दिया , यह कह कर कि एक अक्तूबर को शनिवार है , श्रीमती इंदिरा गाँधी को गिरफ़्तार किया गया तो बहुत अनिष्ट हो जायगा ॥ तारीख़ आगे बढ़ी - दो अक्तूबर ? अनर्थ हो जायगा , महात्मा गाँधी का जन्मदिन है , बापू की गोद में खेली है , यह इंदू .अंततः तीन अक्तूबर का दिन तय हो गया .
मीडिया के मार्फ़त देश का सूचना मन्त्रालय जिसके आलाकमान लाल कृष्ण अडवाणी थे , भविष्यवाणी हुई -
'92 साल पुरानी कांग्रेस , 30 साल हुकूमत में रह कर 77 में विसर्जित हो गई .' कल तक यही भविष्यवाणी , सरकारी मीरासियों का विषय था , सीबीआई की जगह , ईडी आयी .उसी श्रीमती इंदिरा गांधी की बहू श्रीमती सोनिया गांधी ने बीमारी की भी हालत में , तन कर खड़ी हो गई , करो गिरफ़्तार , राहुल गाँधी , प्रियंका गाँधी को हफ़्तों दफ़्तर में बिठाया गया .इतिहास हंस रहा था - 'किससे पंगा लेने चले गये ? ' आज राहुल गाँधी की पदयात्रा उन्हें चिढ़ा रही है .जयपुर जनतंत्र है , लोकतन्त्र का वसूल है अपनी गति से चलता है .कांग्रेस तो सड़क से उठ रही है .
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