बुक लैंड बन रही है चंबल घाटी ..

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बुक लैंड बन रही है चंबल घाटी ..

ओम प्रकाश सिंह

इटावा. समय बदला तो चंबल की आबोहवा से बारुद की गंध गायब हो गई. पचनद के पानी ने चंबल की भूमि से आय की उपज के अवसर पैदा कर दिए हैं. चंबल घाटी की प्राकृतिक खूबसूरती ने सैलानियों के साथ विश्व भर के शोधार्थियो को अपनी ओर आकर्षित किया है. चंबल संग्रहालय की स्थापना के बाद 'बागी लैंड' अब 'बुक लैंड' के माध्यम से जनमानस की बौद्धिक संपदा की ओर चल पड़ा है.

चंबल संग्रहालय के चौथे स्थापना दिवस और आजादी का अमृत काल में सुविख्यात लेखक, राष्ट्रवादी पत्रकारिता के अग्रदूत, आजादी आंदोलन के महान लड़ाका, सांप्रदायिक सद्भाव के प्रबल समर्थक रहे कर्मवीर पं. सुंदरलाल को जन्म दिवस पर शिद्दत से याद किया गया. वक्ताओं ने कहा कि पंडित जी इतिहासकार, बहुभाषाविद और दुनिया के तमाम धर्मों के व्याख्याकार थे. पद, पैसा और प्रलोभन से हमेशा दूर उनकी शख्सियत बड़ी बेजोड़ थी. बाबा सुंदरलाल चंबल की माटी से आखिरी समय तक जुड़े रहे.

सुंदरलाल ने साप्ताहिक उर्दू स्वराज, कर्मयोगी, दैनिक भविष्य और नया हिन्द का संपादन कर पत्रकारिता के वकार को जिन्दा रखा, जिसके लिए कई बार कठोर जेल यातनाएं सही. भारत में अंगरेजीराज पुस्तक लिख बिट्रिश सरकार की चूले हिला देने वाले सुंदरलाल जबरदस्त वक्ता भी थे लिहाजा वर्ल्ड पीस काउंसिल के वाइस प्रेसिडेंट की हैसियत से चीन, वियना, कैरो, मास्को, स्टाकहोम, कोलंबो, बर्लिन, लंदन, टोक्यो, वियतनाम, क्यूबा, सोवियत रूस आदि देशों के राष्ट्र प्रमुखों द्वारा आमंत्रित किये गये. हो- चि- मिन्ह, माओ त्से तुंग, फिदेल कास्त्रो, खुश्चोव कर्मयोगी सुंदरलाल को अपना बड़ा भाई और आदर्श मानते थे।

यह संग्रहालय समाज में बिखरे अमूल्य ज्ञान स्रोत सामग्री सहेजने के मिशन में जुटा है, जहां से भी बौद्धिक संपदा मिलने की रोशनी दिखती है, संग्रहालय उन सुधी जनों से संपर्क कर रहा है. उन्होंने कहा कि चंबल अंचल से जुड़े इटावा, औरैया, जालौन, बाह, भिंड, मुरैना और धौलपुर से जुड़े दुर्लभ दस्तावेज, लेटर, गजेटियर, स्मृति चिन्ह, समाचार पत्र, पत्रिका, पुस्तकें, तस्वीरें, पुरस्कार, सामग्री-निशानी, अभिनंदन ग्रंथ, पांडुलिपि को सहेज रहा है. चंबल अंचल में सघन अभियान चलाकर चंबल संग्रहालय की ऐतिहासिक महत्व की बौद्धिक संपदा में बढ़ोत्तरी जारी है. एकत्र संग्रहित समृद्ध ज्ञानकोष को उसी अनुपात में शोधार्थियों के लिए प्रकाशन करने का संकल्प लिया गया.

चंबल प्रकाशन से अब तक मातृवेदी बागियों की अमरगाथा, बीहड़ में साइकिल, चंबल मेनीफेस्टो, आजादी की डगर पे पांव, कमांडर-इन-चीफ गेंदालाल दीक्षित, बंदूकों का पतझड़, मेरी जेल कहानी, कोरोना कारावास में युवा संघर्ष, बागी सम्राटः मान सिंह से लुक्का तक, भारत छोड़ते हुए छाती फट गई, चंबल पर्यटन आदि पुस्तकें छप चुकी हैं

क्रांतिकारी लेखक डॉ. शाह आलम राना ने देश के सबसे बड़े गुप्त क्रांतिकारी दल ‘मातृवेदी’ के शताब्दी वर्ष के दौरान 2800 किलोमीटर से अधिक चंबल संवाद यात्रा साइकिल से की थी. इसी शोध यात्रा के दौरान चंबल संग्रहालय का ख्वाब बुना गया. लिहाजा पांच नदियों के संगम, पंचनदा पर 25 मई 2017 को ‘चंबल जनसंसद’ का आयोजन किया गया था. जनसंसद में निकली जनसमस्याओं को राज्यों और केन्द्र सरकार के सामने रखा गया और चंबल संग्रहालय बनाने की मांग की गयी. सरकारी उपेक्षा से आजिज आकर 9 जून 2018 को अंतर्राष्ट्रीय अभिलेख दिवस पर चंबल अंचल के जनसरोकारी लोगों के सामने सामाजिक सहयोग से चंबल संग्रहालय बनाने की मुहर लगी. 26 सितंबर 2018 को चंबल संग्रहालय का विधिवत उद्धाटन हुआ था.

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