संजय शर्मा
तीन नाम चल रहे हैं.. सीपी जोशी, पायलट, डोटसरा या कोई भी जाट . इन तीनों की ये कहानी है कि तीनों अपने जिले में भी किसी दूसरे कांग्रेसी विधायक को नहीं जिता सकते. ब्राह्मण और गुर्जर भाजपाई वोट बैंक हैं और जाट फिफ्टी हो गए.. . गुर्जरों को तो देखा था कि वसुंधरा ने उन पर गोली चलाकर17 हत्याएं कर बैंसला का आरक्षण आंदोलन तोड़ा था फिर भी वही बैंसला भाजपा की टिकट पर ही चुनाव मैदान में आ गये. मेरे झुंझुनूं जिले में दो सीटें गुर्जर बाहुल्य है और पायलट अध्यक्ष होने के बावजूद भी उदयपुरवाटी विधानसभा से कांग्रेस को नहीं जीता सके खेतड़ी सीट जितेंद्र जी ने केवल 900 वोटों के अंतर से निकाली थी. वैसे भी जो आदमी पार्टी तोड़ ने के चक्कर में खट्टर सरकार का मेहमान रहा हो और फारूक अब्दुल्ला की कश्मीर में भाजपा से गठबंधन की बात चल रही हो तो ये पार्टी के लिए घातक ही रहेंगे.
डोटसरा भी प्रदेश अध्यक्ष हैं पर आज तक प्रदेश या जिला स्तर की सिंगल मीटिंग भी नहीं ले पाये ना कार्यकर्ताओं से जुड़ पाये और कांग्रेस इनके नेतृत्व में रसातल में जा ही रही है. सीपी जोशी गुस्सैल प्रवृति के मास्टर रहे हैं जिनसे संगठन या सबको साथ लेकर चलने की क्षमता पर मुझे संदेह है.
इनके बजाय मुझे राजकुमार शर्मा या प्रतापसिंह खाचरियावास या ज्योति मिर्धा या दिव्या मदरेणा भी ज्यादा योग्य लगते हैं. युवाओं पर प्रयोग किया जा सकता है. 2023 में कांग्रेस वापस तो आनी नहीं है सो आज कोई भी सीएम बन जाए चन्नी साबित होगा बुराई का भांडा फूटेगा उस पर वो अलग. और कोई भी सीएम बने आज (पायलट को छोड़कर) अगले कुछ महीनों में पायलट अपनी पार्टी बनायेंगे.
वैसे मेरी सोच ये है कि 2023 में वसुंधरा भाजपा से टूटकर चाहे वो चुनाव बाद टूटे, अलग पार्टी बनाएगी और कांग्रेस उनकी सरकार बनवायेगी.
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