चंचल
'उसके पास कुछ नहीं है , न राज पाट , न ही शासन की वागडोर , न ही वह कोई कलाकार है , न कोई मशहूर वैज्ञानिक . आधी धोती पहने, आधी धोती लपेटे , बांस के डंडे के सहारे , बड़ा -बड़ा डग भरता , गाँव गाँव , डगर - डगर निकल पड़ा है . लोग उसके पीछे चल दे रहे हैं . किसान , मज़दूर , औरतें मर्द , युवजन , विद्यार्थी सब . वह जहाँ खड़ा हो जाता है , मरकज़ बन जाता है . “
इतिहास के कान में किसी ने फुसफुसाया - कल आ रहा है , राहुल गाँधी कोच्चि की तट पर . इतिहास को गुदगुदी हुई , पलट कर देखा , आँचर पकड़ लिया - अरब की रानी कोच्ची खड़ी मुस्कुरा रही है - आवो देखो ! गाँधी का वारिस आ रहा है भारत जोड़ने .
- कुछ जुड़ रहा है ?
- इतिहास ! तुम तो गवाह और संरक्षक दोनों हो . खोलो पन्ना , देखो उस हिस्से को जब हुकूमत हंसती रही
' मुट्ठी' भर नमक से अंग्रेज सल्तनत डर जायगी ? मसखरा है , तवज्जोह मत दो , “ यही रहा न ? बोलो इतिहास , आज तुम्हारे अपने सीने पर लिखा है विदूषक तो वह हुकूमत थी , जिसने फ़क़ीर को मसखरा कहा , आज वही फ़क़ीर उनके अपने दरवाज़े पर खड़ा मुस्कुरा है और हुक़ूमत के बच्चे अल सुबह उठ कर उस फ़क़ीर के पाँव पर फ़ूल चढ़ाते हैं .
- अरब की रानी कोचीन ! यह हमे क्यों सुना रही हो ,
तटस्थ होकर चलना हमारी नीयति है कोच्चि !
- सुनो इतिहास ! आज हम दोनों फिर एक पन्ना दर्ज करें , आ रहा है उसी फ़क़ीर का एक वारिस , राहुल गाँधी . हम और हमारे हिस्से में केवल इतना आयेगा “ आये थे , राहुल गाँधी , इस तट पर “. तुम टू बहुत कुछ लिखोगे . '
बहुत कुछ सुनता आ रहा है , बहुत कुछ देखता खड़ा हुआ है , निश्छल मन का पथिक है , चला है जोड़ने देश को ! हुकूमत हंस रही है - क्या टूटा है ? जो जोड़ेगा ?
यह साज़िश की भाषा है . भटकाव का खेल है , सत्तर साल में जिसे जोड़ा गया था उसे तोड़ा गया है . विविधता हमारा सौन्दर्य है , इसे एक धागे में पिरोया गया था , उसे इस हुकूमत ने तोड़ा है . एक मज़हब दूसरे मज़हब से टकरा रहा है , दूरिया बढ़ी हैं ,नफ़रत की हद तक , यह नहीं टूटा है ? हमारे उत्सव टूटे हैं , भाषा बिखरी है , लैंगिक विभाजन की खाईं गहरी हुई है . पिछले आठ साल में बनाया क्या और बिगाड़ा कितना ? तुमने बेचने और बिगाड़ने के अलावा कुछ नहीं किया है .
- इतिहास ! हंस रहे हो , बोलते क्यों नहीं , अंग्रेजों ने यही तो किया था न कि - सब कुछ तोड़ कर , हमे लंकासायर के चमकीले लिबास पहना कर लूटा था . तब उठा था फ़क़ीर और जोड़ दिया था पूरे भारत को .
- दर्ज करो , देखो कौन कितना टूटा है और आज यह किस तरह जुड़ रहा है सामने है -
कोच्ची तट पर लाख के ऊपर जनसैलाब है . मज़हब , उम्र , पेशा , ऊँच , अछूत सब की दूरी मिटी है . एक दूसरे के साथ खड़े है , मलयालम मगधी , पंजाबी , सब गड्ड मद्द हो रहा है . जोड़ना इसी को कहते हैं
- इतिहास ! तुम तो प्रज्ञा चक्षु हो , सब कुछ देख सुन सकते हो , यह बताओ - दिल्ली में क्या हो रहा है ?
इतिहास हंस दिया - कोच्चि ! तुमने तो हमे खोला है कई बार , उस पन्ने को देखा है जब लार्ड माउंटबेटन भारत के मुस्तक्बिल का फ़ैसला कर रहा था उसकी कलम बार बार रुक रही थी , लार्ड बेचैन था - बापू कब लौटेंगे नोवखाली से ?
बापू न कांग्रेस का सदर था , न किसी उत्तेजक भीड़ का नेता , एक अकेला तनहा था , लेकिन एक छोटा सा नुक्ता लगा था बापू के साथ
- “वह सब का था , सब उसके थे “
यह वही राहुल गाँधी है .
वह सबका है , सब उसके हैं
इतिहास चौंका - भीड़ में खड़ा एक बूढ़ा अपने साथ आये बच्चे को उपर उठाना चाहता है , नहीं उठा पा रहा है . बग़ल में खड़ा एक छात्र अपनी फ़ाइल बूढ़े की ओर बढ़ा दिया और बच्चे को उठा कर अपने कंधे पर खड़ा कर लिया . बच्चा जोर से चीख़ा -
राहुल गाँधी , मुदत्तच राहुल गाँधी !
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