लोकसभा चुनाव में कमंडल पर भारी पड़ेगा मंडल ?

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

लोकसभा चुनाव में कमंडल पर भारी पड़ेगा मंडल ?

डा रवि यादव 

वर्ष 2014 के लोक सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जीत में सबका साथ सबका विकास , बहुत हुई महगाई की मार अबकी बार मोदी सरकार, दो करोड़ रोज़गार प्रतिवर्ष , काले धन की वापसी और तत्कालीन यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार के मनगढ़ंत आरोप के साथ मीडिया के सहयोग से यूपीए सरकार को पालिसी पैरालैशिस की शिकार सिद्ध कर दिया गया था., साथ ही नरेंद्र मोदी के पिछड़ा ब्राण्ड का भीअहम योगदान था .मगर सबसे बड़ा योगदान  नब्बे के दशक में देश में विशेष रूप से हिंदी पट्टी में विभिन्न सामाजिक आंदोलन से उत्पन्न सामाजिक जागरूकता और उसके परिणाम स्वरूप मंडल कमीशन के लागू होने से ब्राह्मण वादी जन्म आधारित वर्ग / वर्ण व्यवस्था समर्थक सवर्ण वर्ग में पिछड़ों-  दलितों के सशक्तिकरण से उत्पन्न क्षोभ व सामाजिक न्याय के हिमायती राजनीतिक दलो से बदला लेने की प्रतिक्रियात्मक आकांक्षा थी  जिससे  संपूर्ण सवर्ण समाज भाजपा के साथ लामबंद हो गया जिसे हिन्दुत्व के आवरण में लपेटकर पूरे हिंदू समाज को एक होने का आह्वान किया गया. काल्पनिक इतिहास काल्पनिक घटनाएँ और काल्पनिक एक दुश्मन की अवधारणा धन , साधन और सवर्ण मीडिया द्वारा हिंदुओ के एक बड़े वर्ग के दिमाग़ में भर दी गई और सामाजिक न्याय समर्थक पार्टियों को भ्रष्ट , जातिवादी , परिवारवादी और हिंदू विरोधी सिद्ध कर दिया गया. परिणामस्वरूप यूपी में ग़ैर यादव और ग़ैर जाटव , बिहार में ग़ैर यादव , हरियाणा में ग़ैर जाट एवं महाराष्ट्र में ग़ैर मराठा हिंदू जातियों का खुला समर्थन प्राप्त करने में भाजपा सफल रही. सारी जातियों का क्षत्रियकरण किया गया उनमें उच्च होने के गौरव को इतनी हवा भरी गई कि उन्हें - “ सौ सौ जूते खाय तमाशा घुस के देखे “ में मज़ा आने लगा. 

हिंदुत्व की वर्ण व्यवस्था के इस मनोवैज्ञानिक खेल को अपेक्षाकृत साधन हीन कम शिक्षित और कई दफ़ा समझकर भी मजबूर वंचित तो बेचारे क्या ही समझेंगे जब आज तक कायस्थ जैसी उच्च शिक्षित सम्पन्न और जागरूक जमात नहीं समझ सकी. देश की आज़ादी के समय हिंदुओ में सबसे अधिक शिक्षित और विशेषरूप से उच्च शिक्षित  तथा शिक्षा , राजस्व  और प्रशासनिक पदों पर सर्वाधिक प्रतिनिधित्व रखने वाले कायस्थ धीरे धीरे जिस एक जाति  द्वारा प्रतिस्थापित कर दिए गए मगर  उच्च जाति बने रहने के लालच में उन्ही के साथ बने रहे जिन्होंने उनका हिस्सा छीन लिया . 2019 के चुनाव में विपक्ष की तरफ़ से एक तरह भाजपा को वाक्ओवर दे दिया गया और पुलवामा ने सरकार को सारे सबालों के जवाब से मुक्त कर दिया.

लेकिन पिछले आठ साल में एनडीए , नथिंग डूइंग एलाइंस ही साबित हुआ है. सभी मानव विकास सूचकांक सरकार के प्रदर्शन को  हर नए साल में बद से बदतर होने की गवाही दे रहे है.ग़रीबों की सख्या बढ़ रही है , बेरोज़गारों की संख्या बढ़ रही है, महगाई बढ़ रही है , क्राइम बढ़ रहा है , महिलाओं की असुरक्षा बढ़ रही है , आर्थिक सामाजिक ग़ैर बराबरी बढ़ रही है. धर्म , वर्ग ,जाति के बीच आपसी नफ़रत बढ़ रही है, राजनीतिक विरोधियों के प्रति नफ़रत बढ़ रही है, अवसर की असमानता बढ़ रही है.

नफ़रत , हिंसा और ग़ैर बराबरी के बढ़ने का दौर बदस्तूर जारी रहेगा या इस पर विराम लगेगा यह आगामी लोकसभा चुनाव तय करेगा . किंतु यूपी विधान सभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद भाजपा व गोदी मीडिया द्वारा यह घोषित कर दिया गया कि आगामी लोकसभा चुनाव सिर्फ़ औपचारिकता ही होंगे , चुनाव में भाजपा की जीत सुनिश्चित है. किंतु  जैसा कि लोहिया के शिष्य प्रख्यात समाजवादी चिंतक , लेखक और राजनेता किशन पटनायक ने लिखा है “ विकल्पहीन नहीं है दुनियाँ” . सामाजिक राजनीतिक धार्मिक परिवर्तन की ज़मीन बिहार से अचानक देश के अनुभवी राजनेताओं में एक समाजवादी और पिछड़ें वर्ग की पृष्ठभूमि से तआल्लुक रखने वाले नीतीश कुमार ने एनडीए को छोड़ा और समाजवादियों को एक होने का आह्वान किया तो देश का राजनैतिक विमर्श अचानक बदल गया. हताश निराश विपक्ष में एक नई उम्मीद, ऊर्जा और उत्साह नज़र आने लगा है. एक चाचा नीतीश और तीन भतीजे तेजस्वी , अखिलेश और सोरेन जिस तरह साथ दिखाई दे रहे है वह भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी बनने से भले न रोक सके भाजपा की सरकार बनने से रोकने का माद्दा तो रखते ही है. 2004 के लोकसभा चुनाव में यूपी , झारखंड और बिहार यह काम इंडिया शाइनिंग के बाद भी अटल सरकार को 69 सीट का नुक़सान पहुँचाकर दुबारा आने से रोककर कर चुके है  . 1999 के चुनाव में इन राज्यों में 91 सीट जीतने वाली भाजपा 2004 में 22 सीट पर सिमट गई और अटल सरकार रिपीट न कर सकी . पिछले चुनाव में यूपी बिहार और झारखंड से भाजपा को 134 में 115 सीटों पर जीत मिली थी ये चार मिलकर इस सख्या को आधा तो कर ही सकते है. महाराष्ट्र , कर्नाटक बंगाल , हरियाणा और मध्य प्रदेश में भी भाजपा पिछला प्रदर्शन दुहराने की स्थिति में नहीं है.

सबका साथ तो लिया गया मगर सबके विकास के बजाय पिछले आठ साल में दलितों पिछड़ों को दमन , अन्याय अत्याचार और भेदभाव का सामना करना पड़ा है. विशेष रूप से यूपी में पुलिस द्वारा धन उगाही और फ़र्ज़ी एनकाउंटर व बुलडोजर का शिकार अल्पसंख्यक ही नहीं दलित पिछड़ें  भी हुए है ,सरकार ने आरक्षण को निष्प्रभावी बना दिया है. दूसरी तरफ़ सवर्ण जिनका मीडिया , जुड़ीशियरी , प्रशासन में लगभग एकाधिकार है उन्हें ईडबल्यूएस  के तहत अतिरिक्त सुविधा से नवाज़ा गया है. भारत में जन्म आधारित भेदभाव होता रहा है जो सभी को समान अवसर उपलब्ध कराने में बाधक रहा है इसे देखते हुए संविधान में अनुक्षेद 340 में यह प्रावधान किया गया कि राज्य सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़ें वर्ग के उत्थान के लिए कोई आयोग गठित कर उसकी अनुशंसाओं पर विचार कर सकता है साथ ही अनुक्षेद 15 (4) और 16 (4) में सामाजिक व शैक्षिक आधार पर पिछड़ें वर्ग के लिए विशेष प्रावधान करने की शिफरिस की गई है, आर्थिक आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान संविधान में नहीं है मगर फिर भी बिना किसी वैज्ञानिक तरीक़े के ,बिना किसी अध्ययन या डेटा के ईडबल्यूएस आरक्षण लागू कर दिया गया और ग़रीब सिर्फ़ सवर्ण को ही माना गया है ईडबल्यूएस का लाभ कोई दलित पिछड़ा आदिवासी नहीं ले सकता. कुतर्क ये कि ग़रीब किसी भी जाति का हो सकता है , तो ग़ैर सवर्ण ग़रीब को इस कोटे से क्यूँ बाहर रखा गया है और ये  कि ग़रीब किसी भी जाति का हो सकता है आधा सच है,  भारत में जाति व्यक्ति की आर्थिक सामाजिक स्थिति ही नहीं अवसर की उपलब्धता भी साथ लेकर आती है. लेट्रलएंट्री के नाम पर उच्चतम पदों पर सिर्फ़ सवर्ण वर्ग का तुस्तीकरण किया गया है , यूपी में मंत्री महोदय द्वारा भाई को ईडबल्यूएस में नियुक्ति दी गई उससे पिछड़ों दलितों की नीद टूटी  तो है मगर उसे सही आवाज़ शायद अब मिले जब सुप्रीम कोर्ट में ईडबल्यूएस पर हो रही सुनवाई में वकीलों की दलीलें सुनने और पढ़ने को मिलेगी . विडम्बनापूर्ण है कि सवर्ण हित के ईडबल्यूएस की सुनवाई कर रही बेंच के सभी पाँच माननीय जज सवर्ण है . 

ज़ालिम भी है क़ातिल भी है और मुंशिफ भी वही है

अब  फ़ैसला  ये होना  है  कि  सज़ावार  कौन   है .

ख़ैर फ़ैसला जो भी हो मगर जिन्न बोतल के बाहर तो आएगा ही और बाहर आएगा तो शब-ओ-रोज तमाशा भी होगा ही. बिहार में जातीय जनगणना की घोषणा हो चुकी है यूपी में उप मुख्यमंत्री केशव मोर्य जातीय जनगणना का समर्थन तो कर रहे है मगर भाजपा इसके ख़िलाफ़ है. समाजवादी पार्टी ने आरक्षण बचाओ मोर्चे का गठन कर दिया है जिसकी पहली बैठक में भविष्य के आंदोलन की घोषणा कर दी गई है.

भाजपा को भी पिछड़ों के असंतोष का भान हो चुका है अतः पिछड़ों में भाजपा के प्रति सर्वाधिक मुखर रहे यादवों को संतुष्ट करने के लिए पहली बार कार्यकारिणी में दो यस सर  यादवों को जगह दी गई है .नीतीश के नेतृत्व में अगर चुनाव हुआ तो मंडल का मज़बूत होना निश्चित है और मंडल के मज़बूत होने पर हिंदुत्व की छद्म अवधारण का आवरण विहीन होना भी .

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