गौशाला में तड़प तड़प कर मर रही हैं

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गौशाला में तड़प तड़प कर मर रही हैं

यशोदा श्रीवास्तव 

योगी सरकार के लाख प्रयासों के बाद भी यूपी में गायों की समस्या खत्म नहीं हुई.  न तो किसानों का भला हुआ और न गायें ही सुरक्षित हैं.  जबकि इस मद में करोड़ों खर्च हुए और हो भी रहे हैं.  गांव-गांव मनरेगा के मद से पशुपालकों को गौशालाएं बना कर भेंट की गई लेकिन यह जानने की तनिक भी कोशिश नहीं हुई कि उन गौशालयों में पशु हैं भी या नहीं? कहना न होगा जैसे गांवों में बने ज्यादातर शौचालय उपले और लकड़ी आदि रखने के काम आते हैं वैसे ही गौशालाएं जिनको आवंटित हुआ वे उसे स्वयं के सोने या मेहमानों के लिए कमरा जैसा बना लिए हैं. 

यह समस्या यूपी के हर जगह की है लेकिन पूर्वांचल में कुछ ज्यादा है.  दिन हो या रात सड़कों पर झुंड के झुंड गायें और बछड़े आपका रास्ता रोकते हैं. सड़क पर बेखौफ तितर बितर फैलकर बैठी या इधर उधर भागती ये बे  जुबान दुर्घटना का शिकार भी होते हैं.  तमाम मर जाती हैं कुछ मरने लायक जख्मी हो जाती हैं.  यकीन मानिए आस पास के लोग उधर झांकते तक नहीं.  वे उस राह गुजर रहे अफसरों की आंख से गुजरती और गाय पर राजनीति करने वाले नेताओं की आंख से भी.  उन्हें कोई नहीं पूछता.  गायों को किसान अपनी खेत में घुसने पर लठियाता और सड़क पर तेज रफ्तार वाहन उन्हें कुचलते हैं.  गायों की ऐसी दुर्दशा देख वह जमाना याद आता है जब गायें और बैल गांव में संपन्नता के सबूत होते थे.  शादी विवाह तक दरवाजे पर बंधे बैलों की जोड़ी की गिनती कर तय होती थी.  इतना ही नहीं जिसके घर गाय बछड़ा देती थी उसके घर पुत्र रत्न की प्राप्ति जैसा जश्न मनता था.  अब वही किसान अपने सबसे प्रिय पालतू पशु गाय का अनादर करने पर उतारू है.  धार्मिक दृष्टि से भी गायें पूज्यनीय पशु हैं, अभी भी तमाम पूजा अर्चना में गाय के गोबर की महत्ता है.  अफसोस कि यही गायें आवारा पशु का दर्जा प्राप्त कर सड़क हो या गौशाला में तड़प तड़प कर मर रही हैं.  कहीं भूख से तो कहीं घायल होकर.  

यूपी की सरकार का कमान संभालते ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्राथमिकता के आधार पर गायों की सुरक्षा पर ध्यान दिया.  गौशालाएं बनाई गई,30 रुपए प्रति गाय उनके खाने की व्यवस्था हुई, सड़कों पर बाड़ लगाए गए लेकिन सब के सब विफल ही साबित हुए.  इस सबके पीछे गायों को कटने से बचाना भी था लेकिन गायों की तस्करी नहीं रुकीं.  इनकी तस्करी देखना हो तो नेपाल सीमा से सटे यूपी के जिलों में आएं और नेपाल सीमा के निकट के गांवो में रात का नजारा देखें.  पशु तस्कर सड़क पर विचरण कर रही गाय और बछड़ों को हांक कर नोमेंसलैंड से नेपाल पार कर देते हैं.  वहां उनको इकट्ठा करने वाला दूसरा गैंग मुस्तैद रहता है.  पिक अप या बड़े ट्रकों में भरकर उन्हें पं.बंगाल या जहां भी ले जाना होता है,आसानी से लेकर चले जाते हैं.  इस काम में मुकामी पुलिस तस्करों की मददगार होती है. 

 गायों की तस्करी का काम कितने निडरता से हो रहा है इसका गवाह मुख्यमंत्री का शहर गोरखपुर भी है जहां से पशु तस्करों और पुलिस के बीच मुठभेड़ की खबरें आती है.  कई बार पशु तस्करों के दुस्साहस का ऐसा मामला भी आया है कि उन्होंने पशु से लदे उनके वाहनों को पकड़ने की कोशिश करने वाले पुलिस कर्मियों पर हमला कर दिया हो या उन पर गाड़ी चढ़ाने का प्रयास किया हो. 

गौशालयों में गायों के मरने के सिलसिले की अलग त्रासदी है.  योगी के प्रभाव वाले गोरखपुर और इस पास के  जिलों के गौशालयों में सैकड़ों गायें भूख व बीमारी से तड़प कर मरी हैं.   नेपाल के सीमा पर स्थित महराजगंज जिले के मधवलिया गौसदन में गायों की मौत की खबर से नाराज मुख्यमंत्री ने कड़ा कदम उठाया था. वहां के डीएम समेत  6 जिमेमेदारों को सस्पेंड किया गया था. . गौसदन में गायों के मरने के पीछे बदइंतजामी व लापरवाही सामने आई थी.   मुख्यमंत्री की इतनी बड़ी कार्रवाई के बावजूद गौसदनों में गायों की मौत का सिलसिला थमा नहीं है.  गौशालयों में सरकार के मदद के बावजूद गायों को शुद्ध आहार नहीं मिलता.  पानी की व्यवस्था शायद ही किसी गौशलय में समुचित हो.  गायों को हरा चारा तो कभी मयस्सर ही नहीं होता.  कुछ ही दिन पहले सूबे के स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक बहराइच जिले के एक चकाचक गौशाला में गायों को बड़े ही श्रद्धा भाव से नमन कर रहे थे और उसी दिन बगल के बलरामपुर जिले में एक जगह ग्रामीण गौशाला में गायों के लिए आए सड़े गले भूसे के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे. 

   सरकार की ओर से गौशालाओं में लाखों खर्च कर भूसा पानी के इंतजाम का फरमान जारी होते ही  इंतजाम की जिम्मेदारी संभाले जिम्मेदारों ने इसे लूट खसोट का जरिया बना लिया.  नतीजा गौशालाएं गायों की शरणालय की जगह कब्रगाह बनने लगी.  कहना न होगा गायों की सुरक्षा के लिए गांवों में छोटे छोटे बने गौशालाएं हो या बड़े बड़े गौसदन,सबके सब योगी की मंशानुरूप परिणाम दे पाने में विफल रही.  गायों के प्रति जबतक आदर भाव जैसा हमारी पुरानी सोच जागृत नहीं होगी तब तक गायों की सुरक्षा के लाख जतन बेमतलब ही होंगे. 

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