पीके एक बार फिर सुर्खियों में

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पीके एक बार फिर सुर्खियों में

आलोक कुमार                             

पटना.भारतीय राजनीति के पीके यानी प्रशांत कुमार श्रीकांत पांडे एक बार फिर सुर्खियों में हैं.इस बार वे भाजपा और नरेन्द्र मोदी को हराने का फॉर्मूला लेकर महागठबंधन सरकार के मुखिया नीतीश कुमार से आश्चर्य ढंग से मिले हैं.यह कयास लगाया जा रहा है कि इस बार वे 2024 के चुनाव रणनीतिकार के रूप में जुड़कर प्रधानमंत्री सीट को मनपंसदीदा नेता को सौंपने का प्रयास करेंगे.   

बता दें कि जनवरी 2020 में नीतीश ने पवन वर्मा और प्रशांत किशोर पर कार्रवाई की थी. उस समय पवन वर्मा जदयू के महासचिव और पीके जदयू उपाध्यक्ष थे. पवन वर्मा ने CAA पर जदयू और नीतीश कुमार के स्टैंड पर आपत्ति जताई था. पवन वर्मा ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में जदयू के भाजपा से समझौते पर भी आपत्ति जतायी थी. उन्होंने नीतीश कुमार को इन मसलों पर एक पत्र भी लिखा था, जो सार्वजनिक हो गया था. उसी दौरान प्रशांत किशोर भी CAA समेत दूसरे मुद्दों पर नीतीश कुमार का विरोध कर रहे थे. जदयू ने दोनों के खिलाफ कार्रवाई की थी.    

   

इस बार पवन वर्मा काम आएं.उन्होंने ही नीतीश और पीके की दूरियां को नजदीकीयां में बदलने में सफल हुए.सीएम नीतीश कुमार और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के बीच हुई.यह मुलाकात मंगलवार देर रात हुई गुप्त मुलाकात की खबर से एक बार फिर बिहार की सियासी गलियारे में सनसनी फैल गई है. इस मुलाकात से राजनीतिक गलियारों में दोनों के दोबारा एक साथ आने की अटकलों की चर्चा चल पड़ी है. इससे पहले नीतीश कुमार ने पूर्व राजनेयिक और सांसद पवन वर्मा से मुलाकात की थी.इस मुलाकात के अगले ही दिन सीएम नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर की दो घंटे तक बंद कमरे में मीटिंग चली.    


 प्रशांत किशोर इन दिनों जन सूरज अभियान के तहत अपनी पदयात्रा के लिए बेतिया में हैं. नीतीश कुमार से मुलाकात को लेकर जब पीके से सवाल पूछा गया तो उन्होंने साफ मना कर दिया.लेकिन नीतीश कुमार ने स्वीकार किया कि उनकी और प्रशांत किशोर की मुलाकात हुई थी. प्रशांत किशोर से मुलाकात को लेकर नीतीश कुमार ने पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए कहा 'उन्हीं से मालूम कीजिए.कोई खास बात नहीं हुई. सामान्य बातचीत हुई है.'


जानकारी के मुताबिक पटना में नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद सोमवार शाम पूर्व राजनयिक पवन वर्मा ने भी प्रशांत किशोर से मुलाकात की थी.सूत्रों का कहना है कि नीतीश कुमार और पीके की बीच बैठक के लिए पवन वर्मा नीतीश कुमार के मैसेंजर की भूमिका अदा की थी. प्रशांत किशोर और पवन वर्मा दोनों को 2020 में जेडीयू से निष्कासित कर दिया गया था. इसके बाद पवन वर्मा तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए थे लेकिन हाल ही में उन्होंने टीएमसी से भी इस्तीफा दे दिया था.                           

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार से मुलाकात को लेकर सियासी गलियारों में लगाई जा रही अटकलों पर जवाब दिया है. इसके लिए पीके ने राष्ट्रकवि दिनकर की कविता की पंक्तियों का सहारा लिया. प्रशांत किशोर ने ट्वीट किया, ''तेरी सहायता से जय तो मैं अनायास पा जाऊंगा, आनेवाली मानवता को, लेकिन, क्या मुख दिखलाऊंगा?- दिनकर.       

       

बताया जाता है कि प्रशांत किशोर के नरेन्द्र मोदी से जुड़ने की कहानी कम रोचक नहीं है.उन्होंने ‘भारत के समृद्ध उच्च विकास वाले राज्यों में कुपोषण’ को लेकर एक शोध पत्र लिखा था, जिसमें 4 राज्यों– हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात की तुलना की गई थी। इस शोध में गुजरात सबसे नीचे था.कहा जाता है कि इसी दौरान प्रशांत को गुजरात के सीएमओ से फोन आया था और कहा कि इतनी आलोचना क्यो करते हो? इसके बाद पीके मोदी से जुड़ गए.

 

2011 में पीके का पहला बड़ा राजनीतिक अभियान गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी को विधानसभा चुनावों में सहयोग करना था. 2012 के विधानसभा चुनाव के बाद मोदी तीसरी बार गुजरात के सीएम बने और लोकप्रियता के शिखर पर भी पहुंचे. 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रशांत ने भाजपा को लोकसभा चुनाव जीतने में मदद की और पार्टी पूरे बहुमत के साथ सत्ता में आया. पहली बार देश में पूर्ण बहुमत की गैर कांग्रेसी सरकार बनी. नरेंद्र मोदी के मार्केटिंग और विज्ञापन अभियानों जैसे- 3डी रैलियों, चाय पे चर्चा, मंथन, रन फॉर यूनिटी और सोशल मीडिया कार्यक्रमों के पीछे पीके की ही रणनीति को माना जाता है.


2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के साथ मिलकर मोर्चा संभाला और नीतीश को मुख्यमंत्री बनाने में अहम भूमिका निभाई.उस समय 'नीतीश के निश्चय, विकास की गारंटी' नारा काफी लोकप्रिय हुआ था। बाद में नीतीश ने उन्हें अपना सलाहकार भी बनाया.2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में वे कैप्टन अमरिंद सिंह के करीब आए और सफल रहे.राज्य में 2 बार लगातार चुनाव हार चुकी कांग्रेस इस चुनाव जीतती है और अमरिंदर सिंह मुख्‍यमंत्री बनते हैं.

मई 2017 में पीके आंध्रप्रदेश में वाईएस जगनमोहन रेड्डी के राजनीतिक सलाहकार बने.उन्होंने समारा संखरवम, अन्ना पिलुपु और प्रजा संकल्प यात्रा जैसे कई चुनावी अभियान तैयार किए.इस चुनाव में रेड्‍डी को 175 में से 151 सीटें मिलीं.2020 में पीके ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के चुनाव रणनीतिकार बने और आप भारी बहुमत से चुनाव जीती.


2021 में पीके के सिर एक बार फिर जीत का सेहरा बंधा, जब पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में वे टीएमसी के सलाहकार बने. इस चुनाव 294 सीटों में से 213 सीटों पर तृणमूल कांग्रेस जीतीं.ममता एक बार फिर बंगाल की मुख्‍यमंत्री बनीं.इतना ही नहीं उन्होंने चुनाव से पहले ही तृणमूल को 200 से ज्यादा सीटें मिलने का दावा कर दिया था.2021 में ही पीके ने तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में डीएमके नेता एमके स्टालिन की जीत में अहम भूमिका निभाई.

 

हालांकि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में वे अपनी सफलता को दोहरा नहीं सके. यहां कांग्रेस को उल्लेखनीय सीटें भी नहीं मिल पाईं.ऐसा माना जा रहा है कि अब वे कांग्रेस के साथ जुड़कर अपनी राजनीतिक पारी खेलना चाहते हैं. हालांकि यह वक्त ही बताएगा कि नई भूमिका में वे खुद कितना सफल होते हैं और कांग्रेस को उनका कितना फायदा मिलता है.             

इस बीच प्रशांत किशोर ने मीडिया के सामने साफ तौर पर कहा कि जन सुराज अभियान और बिहार की बदहाली पर उनके स्टैंड में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. उन्होंने बताया कि दो अक्टूबर से प्रस्तावित पदयात्रा के माध्यम से वे लगभग एक साल तक बिहार के अलग-अलग गांव और प्रखंडों में जाएंगे और लोगों से मिल कर समाज के बीच से सही लोगों को आगे लाएंगे जो बिहार की बेहतरी के लिए काम कर सकें.प्रशांत किशोर ने कहा कि जो रास्ता उन्होंने खुद के लिए तय किया है वो उस रास्ते पर कायम हैं.अब देखना है कि किस तरफ ऊँट किस करवट बैठता है?    


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