केरल में वामपंथी छात्रों ने राहुल का विरोध किया

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केरल में वामपंथी छात्रों ने राहुल का विरोध किया

त्रिवेंद्रम से दीपक असीम

राहुल गांधी की पदयात्रा रविवार शाम पारसला से त्रिवेंद्रम की शहरी सीमा में आ गई.पदयात्रा के यहां पहुंचने का समय शाम 6:00 बजे बताया गया था मगर यात्रा एक घंटा देर से आ पाई.देर से आने का कारण यही है कि राहुल गांधी जनता से खूब घुल मिल रहे हैं.कोई सेल्फी के लिए रोक लेता है तो कोई पकड़ कर अपने घर में बैठा लेता है कि चाय पीकर ही जाना.राहुल गांधी जब पारसला से आ रहे थे तो रास्ते में उनकी नजर झोपड़ी से बाहर खड़े एक शख्स पर पड़ी.उसने हाथ जोड़कर अंदर आने का इशारा किया और राहुल उधर चल पड़े.राज्यसभा सांसद और शायर इमरान प्रतापगढ़ी उन चार पांच लोगों में से थे जो झोपड़ी के अंदर जा पाए.राहुल ने वहां चाय पी.उस आदमी ने अपना फोन निकाल कर इमरान प्रतापगढ़ी को दिया और कहा राहुल गांधी के साथ मेरी फोटो खींच दो.इस तरह के कई मामले रास्ते में होते रहते हैं इसलिए यात्रा लेट भी हो जाती है.मगर इससे महिला पद यात्रियों को थोड़ी राहत मिल जाती है.


इस भीड़ में चलना आसान भी है और मुश्किल भी.जैसे ही आप पद यात्रियों के इस काफिले में शामिल होते हैं ऊर्जा के प्रवाह में आ जाते हैं और कदम अपने आप सब के कदमों से मिल जाते हैं.लगते हुए नारे आपका जो जो भी बढ़ाते हैं और भाषा ज्ञान भी.कल शाम केरल का एक शख्स अंग्रेजी मलयालम हिंदी तीनों भाषाओं में नारे लगा रहा था।


राहुल गांधी की इस पदयात्रा को पहली चुनौती त्रिवेंद्रम से मिली.यहां की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में कंटेनर पहुंच गए थे.यहीं पर सबको रात बितानी थी.मगर केरल सीपीआई स्टूडेंट विंग यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट विंग ने विरोध किया.विरोध के बिंदु क्या है यह तो नहीं पता मगर कांग्रेस ने विवाद डालते हुए जगह बदल ली और पट्टन के सेंट मेरी स्कूल में सोने का इंतजाम कर लिया.यात्रा शुरू करने के बाद कल रात पहली बार है जब पदयात्री कंटेनर में नहीं सो रहे.तमिलनाडु सरकार से यात्रा को पूरा सहयोग मिला था.यहां केरल में विरोध तो नहीं है मगर सरकार का इतना सहयोग भी नहीं दिखता.मजा तब आएगा जब यात्रा भाजपा शासित राज्यों में जाएगी.दिग्विजय सिंह इस सब को बहुत अच्छे से मैनेज कर रहे हैं और भाजपा शासित राज्यों में यह चैलेंज दिग्विजय सिंह के लिए रहेगा.राजनीति दिग्विजय सिंह को आती है।


के सी वेणुगोपाल पदयात्रा के साथ ही हैं, मगर इधर के सांसद शशि थरूर तब आए, जब यात्रा त्रिवेंद्रम आ गई.यहां एक बहुत छोटी सी सभा भी हुई जिसमे सिर्फ राहुल गांधी बोले.उन्होंने कहा कि पढ़ाई और कमाई के मामले में केरल पूरे देश में नंबर एक है यह तो ठीक है.पर यह वी पूछा जाना चाहिए कि ऐसा क्यों है? ऐसा इसीलिए है  क्योंकि यहां नफरत की राजनीति नहीं है.केरल सभी का स्वागत करता है.मुझे गर्व है कि मैं वायनाड से सांसद हूं।


पद यात्रियों को ड्राई फ्रूट


राहुल गांधी की भारत जोड़ो पदयात्रा में शामिल पद यात्रियों के खाने पीने का पूरा खयाल रखा जा रहा है.रोटी, चावल, दाल सब्जी, मिठाई सभी कुछ खाने में होता है.मगर चिकन 7 तारीख के बाद से कल रविवार को दिया गया.ड्राय फ्रूट देना भी आज ही से शुरू किया गया.


यह सारा खाना डाइटिशियन की सलाह पर दिया जा रहा है.रोजाना इतना पैदल चलने पर कितना पानी पीना है, कितना प्रोटीन चाहिए इसका ध्यान रखा जा रहा है.सोने के लिए कुल 60 कंटेनर हैं.किसी में 12 लोग सोते हैं किसी में 6 किसी में चार.इनमें से 30 कंटेनर ही ऐसे हैं जिनके अंदर बाथरूम भी हैं.महिलाओं को जो कंटेनर दिए गए हैं उनमें बाथरूम अंदर हैं.जिन 30 कंटेनर में बाथरूम नहीं है उनके लिए चलित बाथरूम की सुविधा है.ऐसी 6 गाड़ियां हैं जिनमें सिर्फ बाथरूम ही हैं.सभी पद यात्रियों से कहा गया है कि 3 दिन में एक बार आप अपने कपड़े धोने के लिए दे सकते हैं.यह कपड़े एक-दो दिन में वापस मिल जाएंगे.इस तरह पद यात्रियों को कपड़े धोने की झंझट से मुक्ति मिल गई है.


दिग्विजय सिंह ने अपने नर्मदा यात्रा के अनुभव से हर चीज का हल निकाल रखा है.यह आजाद भारत की सबसे लंबी पदयात्रा ही नहीं है बल्कि सबसे व्यवस्थित और सबसे सुविचारित यात्रा भी है.बस लोग ज्यादा होने की वजह से उस तरह नहीं चल पा रहे जिस तरह चलने के लिए दिग्विजय सिंह ने सोचा था.हजारों हजार लोगों की भीड़ को कतार में चलना नहीं समझाया जा सकता.लोग पीछे से कतार तोड़ कर राहुल गांधी के साथ चलना चाहते हैं.राहुल गांधी के आसपास सुरक्षा घेरा होता है जो लोगों को पीछे ठेलता रहता है।


केरल में कायम है पुराने भारत का सुकून


केरल में आकर मुद्दतों बाद यह अहसास हुआ कि मैं हिंदू या मुस्लिम नहीं एक इंसान हूं.एक ऐसे देश का नागरिक हूं, जिसका महान संविधान सबको बराबर मानता है और सभी को इंसाफ की गारंटी देता है.याद आया कि पहले मेरे अपने शहर में भी यही सुकून था.यह एहसास मुझे ही नहीं उत्तर प्रदेश से केरल घूमने आए सब इंस्पेक्टर अनुराग को भी हुआ कि देश की हिंदी पट्टी नफरतों की आग में जल रही है.हम दोनो ओणम फेस्टिवल से अपने अपने होटल लौट रहे थे और हिंदी भाषी होने के कारण बात करने लगे.


जिन लोगों को भी उस पुराने हिंदुस्तान के सुकून को महसूस करना है, उन्हें केरल आना चाहिए खास कर ओणम के 6 दिनो में.केरल के हर शहर में जगह जगह यह उत्सव जारी है.ओणम वैसे तो एक हिंदू पर्व है, मगर इसे केरल का राष्ट्रीय त्यौहार भी कह सकते हैं.मुस्लिम और ईसाई भी इसमें शिरकत करते हैं.इतना ही नहीं अपनी संस्कृति और धर्म से जुड़े कार्यक्रम भी पेश करते हैं.यहां कोई नहीं कहता कि अपने पर्व में अल्पसंख्यकों को मत आने दो.कल शाम को यहां देखा मुस्लिमों को एक शो करते हुए.ठेठ अरबी में.क्या गा रहे थे नहीं पता, मगर अल्लाह की आवाज बारंबार आ रही थी.स्थानीय भाषा में इसे डफमुटी कहते हैं.शायद इसलिए कि इसमें डफ बजा कर आंगिक अभिनय किया जाता है.एक मलयाली बंधु ने बताया कि ईसाई महिलाएं भी मिलकर यीशु के भजन यहां गाती हैं.उनका स्टेज अलग तनता है.बहुत दिनों बाद सभी धर्मो के लोगों को एक साथ खुश देखा.बहुत सी मुस्लिम महिलाएं भी ओणम में दिखीं.बाकायदा बुर्का डाले हुए.इसीलिए उस पुराने भारत की याद आई जहां नफरतें और डर नहीं था.यहां आप अपने धर्म को लेकर ना किसी तरह के दंभ में हैं और ना तनाव दबाव में।


केरल में लोकसंगीत का मतलब अलग अलग आकार के ढोलक ही हैं.इन्ही ढोलों से ये हर वाद्य की कमी पूरी कर लेते हैं.दूर से इनका बजना कर्कश लगता है.मगर थोड़ी देर में जब कान ट्यून हो जाते हैं, तो अंदर की मधुरता अपना राज़ खोलती है.लय पकड़ में आती है.थोड़ा सा धैर्य जरूरी है.थोड़ी सी उदारता भी.फिर एक बार जब इनकी लय आपको पकड़ लेती है तो आप बड़ी मुश्किल से खुद को नाचने से रोक पाते हैं और बच्चे तो नाचने ही लगते हैं.


यहां कई जगह कई तरह के कार्यक्रम हो रहे थे.धार्मिक कथा का मंचन भी बिना एक शब्द बोले या गाए हो रहा था.पीछे अनेक ढोलक थे और सामने एक कलाकार जिसने किसी पात्र का मेकअप कर रखा था, गेटअप ले रखा था.लोककला ही नहीं आधुनिक संगीत का प्रोग्राम भी बड़े स्टेज पर चल रहा था.पहली बार सुना मलयाली रैप.फिर हिंदी फिल्मी गीत नश्शा ए उल्फत हो गया...जी खुश हो गया.यहां हिंदी को लेकर वैसा विरोध भाव या दुर्भावना नहीं है, जैसी तमिलनाडु में नज़र आ रही थी.


असल में यहां किसी से भी कोई बैर नहीं है.उलटे स्वागत, मुहब्बत.एक केरल वासी को देख कर लगा कि इसे हिंदी आती होगी, सो रास्ता पूछ लिया.मालूम पड़ा कि बंदा फौज में रह चुका है.इनकी श्रीमती जी भी पंजाब में रह चुकने के नाते हिंदी बोल रही थीं.दोनो ने ओणम के बारे में खूब ज्ञान बढ़ाया.इतना ही नहीं भले आदमी ने मदद की खातिर वाट्स एप पर ओणम की वो बुकलेट भी भेजी, जिसमें यह दर्ज होता है कि किस दिन, कितनी बजे क्या प्रोग्राम होगा.बाद में उस बुकलेट को खोल कर देखा तो एक छोटी सी दिक्कत नजर आई.बुकलेट पूरी मलयालम में है.एक शब्द कहीं हिंदी या अंग्रेजी का नहीं.हफीज जालन्धरी का शेर है हफीज अपनी बोली मुहब्बत की बोली / ना हिंदी ना उर्दू ना हिंदोस्तानी...।साभार 


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