राहुल गांधी , जरा धीरे चलो...

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राहुल गांधी , जरा धीरे चलो...

माराठंडम से दीपक असीम

राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में चल रही महिलाओं की एक ही दिली ख्वाहिश है मगर उन्होंने यह ख्वाहिश जाहिर नहीं की है.  ख्वाहिश सिर्फ इतनी सी है कि राहुल जी जरा धीरे चलें.  इस पदयात्रा शामिल फिट और तगड़े लोगों में राहुल अव्वल नंबर पर हैं.  वह तीर की तरह चलते हैं और बाकी लोगों को उनसे कदम मिलाने में तेजी दिखाना पड़ती है.  महिलाएं अगर धीमी पड़ जाएं तो धक्का-मुक्की होने लगती है.  इसलिए महिलाओं को भी तेज चलना पड़ता है.  आखिर में होता  यह है कि पहले पड़ाव पर पहुंचते ही महिलाएं ढेर हो जाती हैं.  कल पहला पड़ाव एक चर्च में था और बेचारी महिलाएं ही नहीं दूसरे लोगों को भी चर्च पहुंच कर यही लगा कि वह पूरे पूरे खर्च हो गए हैं. 

 मगर खाना तो खाना ही था.  खाना खाने के बाद जिसे जहां जगह मिली पसर गया.  चर्च के अंदर जहां यीशु की मूर्ति है वहां आज तक कोई इस तरह पसर कर नहीं सोया होगा जिस तरह कल लोग सो रहे थे.  इस चर्च में मेहमानों के लिए कमरे तो हैं मगर वह सब बड़े नेताओं के हिस्से में आए.  मीडिया जिन आलीशान केंटेनरों की बात करता है वह कहीं नहीं थे.  धूप से बचने के लिए टेंट लगाया गया था और कुछ लोग तो बस टेंट के नीचे ही थे.  एसी छोड़िए पंखा, कूलर छोड़िए छांव भी नसीब नहीं थी. 


आम तौर पर जब महिलाओं से बात की जाती है तो वे सजग होकर बैठ जाती हैं मगर कल जब प्रिया ग्रेवाल और पिंकी सिंह से नमस्ते की तो उन्होंने लेटे-लेटे ही जवाब दिया.  पूछा थकान हो रही है.  पहले कहां नहीं फिर जब उठते नहीं बना तो कहने लगी हां हो रही है.  पूछा राहुल जी कुछ ज्यादा तेज चलते हैं ना.  दोनों के मुंह से एक साथ निकला हां बहुत तेज.  


मगर इस तेज चलने का एक कारण और कई फायदे भी हैं.  कारण यह है कि रास्ते में यात्रा का इंतजार करने वाले लोग जल्दी फ्री हो जाए.  फायदा यह की सुबह ठंडे-ठंडे दस बारह या पंद्रह किलोमीटर पहुंच जाए तो धूप की तेजी और उमस से बचा जा सकता है.  दूसरा फायदा यह है कि जल्दी पहुंचते हैं तो आराम करने के लिए बहुत सारा वक्त मिल जाता है.  आम लोगों का तो सिर्फ आराम होता है मगर राहुल समेत बड़े नेताओं को आराम भी नसीब नहीं मिल रहा.  जिस भी पड़ाव पर जाते हैं स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं से मिलते भी हैं, बात भी करते हैं.  इस तरह कन्याकुमारी से कश्मीर तक संगठन भी मजबूत होता जा रहा है.  साथ ही संगठन में भी जान पड़ती जा रही है.  कस्बे का जो नेता राहुल गांधी से मिल चुका हो, बात कर चुका हो उसका उत्साह कहां पर पहुंचेगा इसका बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है.  दिग्विजय सिंह ने प्लान ऐसा बनाया है कि संगठन के हर अंग के नेता को तवज्जो दी जा रही है, राहुल गांधी से मिलवाया जा रहा है.  महिला कांग्रेस, युवा कांग्रेस, सेवादल अल्पसंख्यक विभाग इन सबके छोटे-छोटे पदाधिकारी भी यात्रा में आ रहे हैं और जुड़ रहे हैं. 


नींद से उठ कर भी बोल सकते हैं राहुल


दिग्विजय सिंह ने कहा अगर मीडिया पास बनवाना है तो जयराम रमेश से बोलो.  वही मीडिया इंचार्ज है मैं कुछ नहीं कर सकता .  कहीं से नंबर जुगाड़ कर जयराम रमेश को फोन लगाया तो उधर से मैसेज आया की लिख कर बताओ क्या चाहते हो.  लिखकर भेजा तो कोई जवाब नहीं आया.  एक चैनल वाली ने विनीत पुनिया का नंबर दिया और कहा यही पास बना रहे हैं.  विनीत पूनिया ने दुनिया भर की बात की मगर पास बनाकर नहीं दिया.  इसके बावजूद यह नाचीज़ राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में सबसे आगे बैठा.  राहुल गांधी से साढ़े पांच फुट दूर.  कैसे?  मीडिया की भीड़ में घुसकर.  धक्के खा कर और धक्के देकर. 


यह पदयात्रा गोदी मीडिया की अनदेखी का तोड़ भी है.  दिल्ली में बैठे जितने बड़े मीडिया मठाधीश है उन सबको सरकारी आदेश मिला है कि इस पदयात्रा को या तो छुपा दो या उधेड़ दो.  मगर सरकारी आदेश छोटे छोटे तमिल मलयालम चैनलों पर तो लागू नहीं होता.  लोकल अखबारों पर तो सरकारी हुक्म नहीं चलता.  कल मुलागोमुलु के चर्च में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में करीब 300 पत्रकार मौजूद थे.  एक दूसरे को धक्के देते हुए, एक दूसरे से झगड़ते हुए सब ने अपने कैमरे फिट किए.  जयराम रमेश मीडिया इंचार्ज की भूमिका को खूब एंजॉय कर रहे हैं.  सबसे पहले वहीं आकर बैठे और बिल्कुल बीच की कुर्सी चुनी.  कायदे से जिस पर राहुल गांधी को बैठना चाहिए था.  पवन खेड़ा को खदेड़ दिया गया और एकदम आखरी कुर्सी पर डाल दिया गया.  जयराम रमेश की ख्वाहिश यह थी कि राहुल गांधी उनके पास बैठें.  मगर केसी वेणुगोपाल सौत बन गए.  फोकस एक बार फिर तीन लोगों पर रहा बीच में राहुल गांधी पास में केसी वेणुगोपाल और उनके पास कोई और. 


1:00 बजे प्रेस कांफ्रेंस शुरू होनी थी मगर कुछ लेट हुई.  कारण यही था कि राहुल गांधी खाना खाकर सो गए थे.  जब उन्हें मीडिया के सामने लाया गया तो साफ दिख रहा था कि वह नींद से उठा कर लाए जा रहे हैं.  मगर जैसे ही उन्होंने बोलना शुरू किया बिल्कुल सजग हो गए और हर सवाल का जवाब समझदारी और शांति से दिया.  


गोदी मीडिया के पत्रकार ने पूछा कि भारत जोड़ों का क्या मतलब है क्या भारत कहीं से टूटा हुआ है.  राहुल गांधी ने उसे मनचाहा उत्तर नहीं दिया और ऐसा घुमाया कि पत्रकार चकरघिन्नी हो गया.  राहुल भी जानते हैं कि उनके असावधान शब्द से बात का बतंगड़ बन सकता है.  इसके बावजूद उनकी हिम्मत है कि वह मीडिया के सामने आते हैं और सवालों का जवाब भी देते हैं.  जयराम रमेश से लड़ झगड़ कर इस प्रतिनिधि ने भी एक सवाल पूछा.  सवाल था, 

"कांग्रेस यह वादा क्यों नहीं करती कि जो जो सरकारी संपत्तियां बेची जा रही है उन्हें हम फिर से सरकार के अधीन ले आएंगे. " 

इस सवाल पर एक पत्रकार का एक सवाल और चढ़ गया.  राहुल गांधी उसका जवाब देते देते इस प्रतिनिधि का सवाल भूल गए तो इस प्रतिनिधि ने अपने सवाल के लिए फिर टोका.  जवाब मिला कि हम नियम विरुद्ध किए गए काम की जांच कराएंगे.  कारपोरेट से बैर नहीं है, मगर यह गलत है कि नियम कायदों को ताक पर रखकर, कुछ लोगों को फायदा पहुंचाया जाए.  


अंत में जयराम रमेश ने कहा कि मोदी ने आज तक कोई प्रेस कांफ्रेंस नहीं की.  मोदी बिना टेलीप्रॉन्पटर कुछ नहीं बोल पाते.  उन्हें यह बोलना था कि राहुल नींद से उठ कर भी बोल सकते हैं.  मगर उन्होंने नहीं बोला. 


गांधी और इंदिरा जी के सामने लोक नृत्य, मुलागोमुलु से.


महात्मा गांधी तो साफ पहचान में आ रहे थे.  उनके पास खड़ी महिला इंदिरा गांधी बनी हुई थी.  मगर पास में कोई एक राधाकिशन मालवीय जैसी पगड़ी भी पहने था.  उनके और पास में तो एक आदमी रावण जैसी वेशभूषा में था.  इनके सामने चल रहा था लोक नृत्य जो हावभाव और अदाओं से लावणी के पास था मगर लावणी से जरा सा कम. 


 जो धुन चल रही थी और जो बाजे उसके साथ बज रहे थे वह ऐसा कमाल कर रहे थे कि जिनको नाचना आता है यानी जो नाचने में मजा लेते हैं उन्हें अपने आप को रोकना मुश्किल हो रहा था.  धूप कड़ी थी, तेज थी, तीखी थी मगर नाचने वाली महिलाओं से कम.  तो पहले यह किया कि नाच देखा और खुद भी नाचते से रहे.  फिर जब नाच खत्म हुआ तो पूछा कि गांधीजी और इंदिरा जी तो समझ में आ रहे हैं बाकी लोगों ने किसका भेस धारा है.  जवाब में  तीन नाम सुनाई दिए जिन का उच्चारण मुश्किल है और जिन्हें हिंदी में लिख पाना असंभव.  मगर इतना मालूम पड़ा कि यह सभी फ्रीडम फाइटर रहे हैं.  रावण नुमा शख्स एक पुराने राजा हैं जिन्होंने बहुत शुरुआत में अंग्रेजों से लोहा लिया था जंग लड़ी थी शहीद हुए थे.  बाद के दो अगले वक्तों के फ्रीडम फाइटर थे।


अलग-अलग काल खंडों के लोग केवल नासमझी से ही एक साथ नहीं आते कभी-कभी कला से भी एक ही वक्त में आ जाते हैं.  फर्क यही होता है कि नासमझ आदमी अपने कम पढ़े लिखे होने से अलग-अलग काल खंडों के लोगों को एक साथ बैठा कर उनकी चाय पानी करा देता है और कलाकार जानते बूझते सब को एक साथ खड़ा करके उनके सामने तमिलियन डांस करा देता हैं.  यह पदयात्रा केवल पदयात्रा ही नहीं है.  यह संस्कृति यात्रा भी है.  आज यह यात्रा त्रिवेंद्रम यानी केरल आ जाएगी.  यहां की संस्कृति के रंग और अलग होंगे. साभार दीपक असीम की फ़ेसबुक वाल से 

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