संत पुत्रियों के धर्मसंघ रांची की स्थापना 26 जुलाई 1897 को

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संत पुत्रियों के धर्मसंघ रांची की स्थापना 26 जुलाई 1897 को

आलोक कुमार

रांची. इस समय मांडर प्रखंड में दोहरी खुशी है. प्रथम खुशी झारखंड में मांडर विधानसभा उपचुनाव का परिणाम कांग्रेस के खाते में गया है. कांग्रेस की शिल्पी नेहा तिर्की विजयी हुई.दूसरी खुशी संत अन्ना की पुत्रियों के धर्मसंघ रांची की स्थापना 26 जुलाई 1897 को ईश सेविका माता मेरी बेर्नादेत्त किस्पोट्टा ने  किया  था जिन्हें माता सेसिलिया किस्पोट्टा, माता बेरोनिका किस्पोट्टा और माता मेरी ने अभूतपूर्व योगदान दिया था. ये मांडर प्रखंड के सरगाँव की निवासी थीं.

माता मेरी बेर्नादेत्त किस्पोट्टा का जन्म पिता पूरन प्रसाद किस्पोट्टा और माता पौलिना के लूथरन परिवार में 2 जून 1878 ई. को मांडर प्रखंड के सरगाँव में हुआ था. लूथरन कलीसिया में उसे बपतिस्मा में ख्रीस्त आनन्दित रूथ नाम दिया गया था. उसने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा लूथरन मिशन, राँची के बेथेसदा विद्यालय से प्राप्त की. बाद की पढ़ाई उसने लोरेटो स्कूल से की जो उस समय पुरूलिया रोड राँची में स्थित था, वर्तमान में यहाँ उर्सुलाइन की धर्मबहनों की संस्था है. विद्यार्जन करते हुए लोरेटो धर्मबहनों की संगति में रहकर उसने उनकी सेवा-कार्याे से प्रेरित होकर सदा कुँवारी रहने, गरीब, दीन-दुःखी, लाचार एवं पीड़ितों की सेवा में अपने आप को समर्पित करने का निर्णय लिया. वे अपने संस्मरण में कहती हैं- ‘अगर ये मदर लोग येसु के प्रेम से अपने माता-पिता, भाई-बहन, मित्र, सगे-संबंधियों, यहाँ तक कि अपने देश को भी छोड़कर हम गरीब एवं लाचार लोगों की सेवा में अपने को दे सकती हैं तो क्या हम भी अपने देश और अपने लोगों की सेवा में ऐसा नहीं कर सकेंगी?


मांडर प्रखंड के सरगांव में ईश सेविका माता मेरी बेर्नादेत्त किस्पोट्टा का जन्म हुआ था. पांच वर्ष की आयु में बेथेसदा प्राइमरी स्कूल में उसका दाखिला कराया गया. 31 जुलाई 1890 को उन्होंने कैथोलिक विश्वास को स्वीकार करते हुए प्रथम प्रसाद ग्रहण किया. 24 मई 1897 को कलीसिया के अधिकारियों ने उन्हें उनके तीन सहेलियां सेसिलिया, बेरोनिका मेरी को पहले सोदालिती के सदस्य के रूप में स्वीकार किया. 26 जुलाई 1897 को चारों को संत अन्ना की पुत्रियां रांची के धर्म संघ में प्रथम प्राथनियों के रूप में ग्रहण किया. आठ अप्रैल 1901 को चारों ने प्रथम व्रत धारण किया.उन्होंने कहा कि वे दो बार धर्म संघ की प्रथम द्वितीय सुपीरियर जनरल नियुक्त की गई.16 अप्रैल 1961 को उन्होंने अंतिम सांसें ली.


इस बीच संत अन्ना की पुत्रियों के धर्मसंघ, रांची की स्थापना की 125वीं जयन्ती पूरा होने पर जुबली समापन समारोह का आयोजन रांची में किया गया था. संत अन्ना की पुत्रियों के धर्मसंघ रांची की स्थापना 26 जुलाई 1897 को ईश सेविका माता मेरी बेर्नादेत्त किस्पोट्टा के द्वारा किया गया था जिन्हें माता सेसिलिया किस्पोट्टा, माता बेरोनिका किस्पोट्टा और माता मेरी ने अभूतपूर्व योगदान दिया था.


संत अन्ना की पुत्रियों के धर्मसंघ के 125वीं जुबली वर्ष का शुभारम्भ 26 जुलाई 2021 को भव्य समारोह के साथ किया गया था. जयंती समारोह को यादगार बनाने के लिए अनेक गतिविधियाँ सम्पन्न किये गये जिनमें प्रमुख रहे, आध्यात्मिक साधना जो धर्मसंघ की विधि अनुसार संचालित, परोपकारी कार्य, जुबली मेमोरियल का निर्माण, संग्रहालय का नवीनीकरण, धर्मसंघ का इतिहास नाटिका द्वारा प्रस्तुति इत्यादि.


प्रथम चार धर्मबहनों ने प्रथम व्रत धारण कर 8 अप्रैल 1901 को इस धर्मसंघ में प्रथम सदस्यता सूची में अपना नाम दर्ज कराया. वर्तमान में इन धर्मबहनों की संख्या 1140 से अधिक है जो 148 कॉन्वेंटों में कार्यरत हैं. यह चार प्रोविंसों तथा दो डेलिगेशन में बंटा है. आज धर्मसंघ शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, सामाजिक उत्थान तथा सुसमाचार प्रचार के माध्यम से देश के निर्माण में अहम योगदान दे रहा है.


प्रथम चरण में समारोही ख्रीस्तयाग सम्पन्न हुआ.समारोही ख्रीस्तयाग का अनुष्ठान राँची के संत मरिया महागिरजाघर में राँची महाधर्मप्रांत के महाधर्माध्यक्ष फेलिक्स टोप्पो ने किया, उनके साथ सहानुष्ठाता रहे ; धर्माध्यक्ष जुलियस मरांडी, धर्माध्यक्ष फुलजेंस तिग्गा, धर्माध्यक्ष विनय कंडुलना, धर्माध्यक्ष आनन्द जोजो, धर्माध्यक्ष भिंसेंट बरवा, धर्माध्यक्ष अंतोनीस बड़ा, प्रशासक फा. लिनुस पिंगल एक्का, पल्ली पुरोहित फादर आनन्द डेविड खलखो एवं पुरोहित गण. समारोह में धर्मसंघ की सुपीरियर जनरल सिस्टर लिली ग्रेस तोपनो, चारों प्रोविंस की प्रोविंशियल, संत अन्ना की पुत्रियों के धर्मसंघ की धर्मबहनें, अन्य धर्मसंघों की धर्मबहनें, अतिथिगण एवं विद्यार्थीगण भी शामिल हुए. इस अवसर पर मांडर विधानसभा के पूर्व विधायक बंधु तिर्की एवं वर्तमान विधायक शिल्पी तिर्की भी उपस्थित थे.



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