ठाकरे सरकार गिराना भागवत को अच्छा नही लगा

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ठाकरे सरकार गिराना भागवत को अच्छा नही लगा

संजय रोकड़े

 भारतीय जनता पार्टी और उसको मौन समर्थन देने वाला मातृ संगठन आरएसएस इस समय लोकतंत्र का गला घोटने में कांग्रेस की राह पर चल पढ़े है. ये दोनों मिलकर राज्यों में जनता द्वारा चुनी गयी राज्य सरकारों को गिराने के लिए साम दाम दंड भेद का सहारा लेकर सत्ता से बेदखल करने में जुट गये है.अंग्रेजों की फुट डालो और राज करो वाली कुनीति इस समय संघ व भाजपा को खूब रास आ रही है. वे इस नीति को अपना कर राज्य दर राज्य चुनी हुयी सरकारें गिरा रहे है. पहले तो मध्यप्रदेश में सिंधिया घराने के नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को सब्जबाग दिखाकर कांग्रेस से अपने पाले में किया फिर जनता द्वारा चुनी गयी कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को अल्पमत में लाकर खत्म कर दिया. 

इसके बाद महाराष्ट्र की उद्धव सरकार में शामिल मंत्री और शिव सेना नेता एकनाथ शिंदे को तौडकर उद्धव ठाकरे की सरकार को गिरा दिया. अब ये कदम झारखंड की चुनी हुयी सरकार को गिराने की तरफ बढ़ चले है, ऐसी चर्चा जोरों पे है.बहरहाल भाजपा क्षेत्रीय दलों के नेताओं को झांसें में लेकर अच्छी भली चलने वाली सरकारों को गिरा तो रही है लेकिन आगामी चुनावों में इसका खमियाजा ही भुगतना पड़ेगा. लाभ मिलने की कोई संभावना तो नही दिखती है. ये कुकृत्य आगामी चुनावों में भाजपा व संघ के लिए जान का दुश्मन बन जायेगा. लाभकारी सिद्ध होने की बजाय हानिकारक ही सिद्ध होगा. 


हालाकि अब इस बात की चिंता संघ प्रमुख मोहन भागवत को सीधे अंदर ही अंदर खाए जा रही है. गर ऐसा ना होता तो वे महाराष्ट्र सरकार के उप मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस को आरएसएस मुख्यालय में हाजिर होने का फरमान जारी नही करते.सनद रहे कि इन दिनों एक खबर महाराष्ट्र ही नही बल्कि देशभर में खासी चर्चा का विषय बनी हुयी है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आखिर फडणवीस को संघ मुख्यालय तलब क्यूं किया, और किया भी तो इन दोनों कि मुलाकात में बातचीत का विषय क्या रहा.


हालाकि इन दोनों की चर्चा का विषय जो छनकर बाहर आ रहा है वह यही है कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की सरकार को गिराना संघ प्रमुख भागवत को रत्तीभर भी अच्छा नही लगा. उद्धव सरकार के गिरने से हिन्दू वोटों के बटवारें का ड़र सताने लगा है.बताया जाता है कि इस बैठक में मोहन भागवत और फडणवीस के बीच बातचीत का एक ही विषय रहा कि आखिर कैसे हिन्दू वोटों के बंटवारे को रोका जा सकता है. इस चर्चा में ये भी उभर कर सामने आया कि इस समय भागवत को हिन्दू वोटों के विभाजन का ड़र अच्छा खासा सता रहा है.इस मामले में संघ प्रमुख भागवत का साफ मानना है कि  शिव सेना की सरकार को गिराने से हिन्दू मतों का विघटन होगा और आने वाले समय में भाजपा को इसका लाभ नही बल्कि हानि ही होगी.


इस ड़र के चलते मोहन भागवत आगामी समय में महाराष्ट्र में संघ व भाजपा को किसी भी प्रकार के जोखिम में देखना नही चाहते है. इसके चलते वे किसी भी हाल में उद्धव ठाकरे की नाराजगी का दंश झेलना नही चाहते है. शायद यही एकमात्र कारण है कि वे उद्धव को लेकर अब भी नरम रूख अपनाये हुए है.


इस बारे में संघ सूत्रों की माने तो मोहन भागवत की राय स्पष्ट है कि ठाकरे की शिवसेना के टूटने से हिंदू वोटों का बंटवारा होना तय है. अगर हिन्दू वोट बटता है तो इसका नुकसान उद्धव ठाकरे से कहीं अधिक भाजपा को होने की आशंका है.इसी कारण संघ उद्धव की सरकार गिराने के बाद भी उनको मनाने की कोशिशें जारी रखे हुए है.


कबिलेगौर हो कि इस समय महाराष्ट्र में शिवसेना के बागी विधायकों के सहारे भाजपा ने सरकार तो बना ली है, लेकिन राजनीतिक उथल-पुथल अब भी थमने का नाम नही ले रही है.


इस मुद्दे को लेकर बीते दिनों (सोमवार) राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नागपुर जाकर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से बंद कमरे में करीब- करीब पौन घंटे तक बातचीत की है. हालांकि, बातचीत का पूरा ब्यौरा सार्वजनिक नहीं किया गया है लेकिन जो खबरें छनकर बाहर आ रही है उनका लब्बोलुवाब यही है कि भागवत, शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की सरकार गिराने से खुश नही है और उनके प्रति अब भी नरम रूख अपनाना चाहते है.


इस तरह की नरमी का यही कारण हो सकता है कि संघ प्रमुख भागवत, ठाकरे के प्रति नर्म रुख अपना कर महाराष्ट्र में होने वाले किसी भी चुनाव में हिंदू वोटों का तौडफौड़ नही चाहते है. वे हर हाल में इस तरह के किसी भी प्रकार के विघटन को रोकना चाहते है.संघ की राय के मद्देनजर भी यही माना जा रहा है कि ठाकरे की शिवसेना को तोड़ने से हिंदू वोटों का बंटवारा होना आसान हो जायेगा और इसका खमियाजा उद्धव से ज्यादा भाजपा को भुगतना होगा.


इसीलिए संघ उद्धव ठाकरे को मनाने का पक्षधर है और हामी भर रहा है. यहां ये कहना लाजिमी ही होगा कि उद्धव के मान मन्नोवल की कोशिश भी उत्तररोत्तर जारी  है.सनद रहे कि उद्धव केंद्र की मोदी सरकार और भाजपा से खुद की सरकार को गिराने के चलते खासे नाराज चल रहे है.असल में मामला ये है कि शिववसेना के 40 विधायकों ने हिंदुत्व के नाम पर बगावत कर दी थी और एकनाथ शिंदे के साथ अलग गुट बना लिया था. इनके अलावा 10 निर्दलीय विधायक भी जुड़ गये थे.


इन बागियों के सहारे ही बीजेपी ने सरकार बनाने का दावा ठोका था और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की महाविकास अघाड़ी सरकार को इस्तीफा देने को मजबूर कर दिया था. उद्धव इस तरह की कारगुजारी के लिए केंद्र की मोदी सरकार व भाजपा को जिम्मेदार मानते है.लेकिन मजेदार बात ये है कि जिस हिंदुत्व के नाम पर शिवसेना का बागी धड़ा अलग हुआ है वह भाजपा के हिंदुत्व को मानने को तैयार नही है. वे खुद को भाजपा के हिन्दुत्व से भिन्न बताता है.


इस संबंध में बागी गुट का साफ कहना है कि उनका हिंदुत्व बाल ठाकरे का हिंदुत्व है वे उनके ही विचारों को आगे बढ़ाने के लिए भाजपा के साथ सरकार बनाएं है.हालाकि, भाजपा ने तौड- फौड़ करके सरकार तो बना ली लेकिन समस्या खत्म होने का नाम नही ले रही है. इस तरह की विवादस्पद स्तिथि के साथ ही शिन्दे सरकार के सामने कई तरह के कानूनी पैच खडे है. हालांकि माना ये भी जा रहा है कि केंद्र सरकार की मदद से फिलहाल ये अड़चनें शिंदे- भाजपा सरकार को परेशान नहीं कर पायेगी. 


भाजपा को पहले दिन से ही यह बात अखर रही थी कि अब सरकार में होने के बावजूद राजनीतिक तौर पर जारी उथल-पुथल खत्म होने का नाम क्यूं नही ले रही है.बताया जाता है कि इस पैच को खत्म करने के लिए ही फडणवीस और मोहन भागवत की मुलाकात तय हुयी थी और इसे काफी अहम भी माना जा रहा है. काबिलेगौर है कि सोमवार की रात करीब सवा 9 बजे फडणवीस संघ मुख्यालय में मोहन भागवत से मिले थे और करीब- करीब डेढ़ घंटे तक बातचीत चली थी.


इस बैठक में दो मुद्दों पे ही बातचीत होना सामने आया है. इसका सबसे अहम बिन्दु तो यही बताया जा रहा है कि हिन्दुत्व के नाम पर हिंदू वोटों के बंटवारे को कैसे भी रोका जाएं. बातचीत के दौरान भागवत ने ये चिंता भी जाहिर कि की अगर उद्धव ठाकरे की शिवसेना को खत्म करने की कोशिश की गई तो हिंदू वोट बैंक बंट सकता है और आने वाले चुनावों में इसका नुकसान भाजपा को ही उठाना पड़ सकता है. कहना ना होगा कि राजनीतिक हलकों में भागवत- फडणवीस की इस मुलाकात को खास माना जा रहा है.


इस बैठक से जो खबरें छनकर सामने आ आयी है उन खबरों में यह बात भी सामने आयी है कि ‘एंटी हिंदू लॉबी में उद्धव ठाकरे के शामिल होने से भागवत चिंतित और नाराज दिखे. फिलहाल उद्धव उस लॉबी से बाहर दिखाई दे रहे है तो भागवत उनके प्रति थोड़ा नरम रवैया अपना रहे हैं.मजेदार बात ये भी है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के सहारे जहां ठाकरे की शिवसेना को तोड़ने की कोशिश हो रही है, वहीं शिंदे गुट अब भी उद्धव ठाकरे पर कोई निशाना नहीं साध रहा है. हाल ही में गठित कार्यकारिणी में भी उद्धव ठाकरे को ही प्रमुख माना है.


इसलिए शिन्दे के नेतृत्व में नयी सरकार बनने के बाद भी संघ को इस बात का ड़र खाए रहा है कि कहीं उद्धव ठाकरे भाजपा के हिंदुत्व को हाइजैक ना कर ले. सबसे बडी बात तो यह भी है कि जिन हालातों में शिवसेना के इस बागी गुट ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई है उससे भी भागवत बहुत खुश नहीं है. भागवत को मुख्यमंत्री शिन्दे का व्यवहार इस बात के लिए आश्वस्त नही करता है कि वह लम्बे समय तक भाजपा या संघ के प्रति वफादार बने रहेंगे.


हालाकि महाराष्ट्र में जोड़ तौड करके लाख शिन्दे सरकार बना ली हो लेकिन ठाकरे के नाम पर हिंदुओं के वोट बंटने की आशंका कम नहीं हुई है. इस बात को भागवत से बेहतर कोई नही समझ सकता हैं. यही वजह है कि भागवत और फडणवीस के बीच जो राजनीतिक चर्चा हुई है उसमें हिंदुओं के वोट का मुद्दा अहम रहा.मोहन भागवत को उद्धव ठाकरे का वह बयान भी परेशान कर रहा है कि ‘शिवसेना का हिंदुत्व चड्डी और जनेऊधारी नहीं है. आरएसएस ने इस बयान को संज्ञान में लेने बाद ही उद्धव के खिलाफ आपरेशन शुरू किया था. इधर शिंदे ने भी बाला साहेब ठाकरे के हिंदुत्व को आगे ले जाने की बात कह कर संघ का सिर दर्द बढाने का ही काम किया है।

ये भी सनद रहे कि भाजपा को शिंदे में हिंदुत्व के बजाए मराठा पॉलिटिकल चेहरा दिख रहा है जिसका फायदा भाजपा 2024 के चुनाव में उठाना चाहती है पर ऐसा भी सम्भव होते नही दिख रहा है.हालाकि उद्धव भले ही इस समय अपने हिंदुत्व के साथ पार्टी और संगठन को बचाने की मजबुरी में दिख रहे है पर भागवत की चिंता यही है कि अगर उद्धव ने यह बात फैलाई कि भाजपा ने सत्ता हासिल करने के लिए एक हिंदुत्ववादी पार्टी (शिवसेना) को तोड़ा है तो आने वाले चुनावों में इसका खामियाजा सीधे भाजपा को भुगतना पड़ सकता है.इसका मतलब संघ प्रमुख भागवत की चिंता का सबब यही है कि महाराष्ट्र में भले ही आज सरकार बना ली हो लेकिन कहीं ऐसा न हो जाए कि जनता इस बात की गांठ बांध ले कि भाजपा को हिन्दुत्व से नही बल्कि सत्ता से मोह है.

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