रिटायर्ड दारोगा जलालुद्दीन खां को रिहा करो-भाकपा-माले

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रिटायर्ड दारोगा जलालुद्दीन खां को रिहा करो-भाकपा-माले

आलोक कुमार

पटना . भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि भाजपा फुलवारीशरीफ को आतंकियों का केंद्र बताकर उसे कब्रगाह बनाने की कोशिश कर रही है. झारखंड पुलिस के रिटायर्ड दारोगा मो. जलालुद्दीन को आतंकवादी व देश विरोधी कार्रवाइयों से जोड़कर मुस्लिमों को एक बार फिर से निशाने पर लेने की कोशिशें हो रही हैं.

मामले की हकीकत खुद पटना एसएसपी डाॅ. मानवजीत सिंह ढिल्लो के बयान से खुल रही है, जिसमें उन्होंने कहा है कि पीएफआई आरएसएस की तर्ज पर काम करने वाला एक संगठन है. यह संगठन अपने कार्यकर्ताओं को आरएसएस की तरह ही लाठी-गोली चलाने की ट्रेनिंग देता है. एसएसपी के बयान से भाजपा को इतनी मिर्ची क्यों लगी है? आरएसएस तो इन मामलों में कहीं आगे है. वह शस्त्र पूजा करता है और उसके हाथ महात्मा गांधी के खून से सने हुए हैं. 

पटना के एसएसपी मानवजीत सिंह ढिल्लों ने कहा, 'हमने वही कहा जो दस्तावेजों में लिखा था और पूछताछ के दौरान आरोपी ने कहा था, जब आरोपियों से उनके काम करने के तरीके के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जैसे अन्य संगठन अपने लोगों को शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाए रखने के नाम पर प्रशिक्षण देते हैं, वे भी ऐसा ही करते हैं.'

मानवजीत सिंह ढिल्लो 2009 के बिहार कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं.पटना के एसएसपी बनने से पहले समस्तीपुर के एसपी थे.उससे पहले वो मुंगेर के एसपी थे. मुंगेर से पहले वो पटना में पुलिस अधीक्षक (विशेष कार्य बल) के पद पर तैनात थे. इसके अलावा, मानवजीत वैशाली जिले के एसपी भी रह चुके हैं.आमतौर पर उनकी गिनती बिहार के सख्त प्रशासनिक अधिकारियों में होती है. वैशाली जिले में एसपी के तौर उन्होंने खूब छापेमारी की थी. वैशाली में एसपी रहते हुए मानवजीत सिंह ढिल्लो ने लापरवाही बरतने वाले 3 डीएसपी समेत 66 पुलिसवालों पर एफआईआर दर्ज की थी.

माले के फुलवारी विधायक गोपाल रविदास व स्थानीय नेता गुरूदेव दास के नेतृत्व में भाकपा-माले की एक टीम ने कल दिनांक 14 जुलाई को फुलवारीशरीफ के नया टोला अहमद मार्केट स्थित मो. जलालुद्दीन के घर का दौरा किया, जिनपर अतहर परवेज के साथ आतंकी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया गया है.

माले जांच टीम ने मामले की गंभीरता से जांच की. वहां के स्थानीय निवासियों से बातचीत की. पता चला कि मो. जलालुद्दीन 40 वर्षों तक बिहार-झारखंड की पुलिस सेवा में रह चुके है. 2001 में रिटायरमेंट के बाद अपने घर पर रहने लगे. घर को किराया पर लगाया. जिससे प्रति महीने 16 हजार की आमदनी होती है. 11 जुलाई को अचानक वहां पुलिस पहुंची और कहने लगी कि तुम आतंकवादी गतिविधि चलाते हो और आतंकवादियों को मकान दिए हुए हो. बाद में जलालुद्दीन, अतहर परवेज सहित 26 लोगों पर देशविरोधी गतिविधियां चलाने का मुकदमा दायर कर दिया गया.

इस कार्रवाई को प्रधानमंत्री के 12 जुलाई के पटना आगमन से जोड़कर भी प्रचारित किया गया. कहा गया कि मार्शल आर्ट की आड़ में युवाओं को हथियार का प्रशिक्षण देने व धार्मिक उन्माद फैलाने की साजिश चल रही थी.

विधायक गोपाल रविदास ने कहा कि मो. जमालुद्दीन का इस प्रकार का कोई इतिहास नहीं है. वे पुलिस सेवा में रहे हैं. जरूर उन्होंने अपना मकान किराए पर पीएफआई को दे रखा था. लेकिन पीएफआई कोई प्रतिबंधित संगठन नहीं है. वह भारत सरकार द्वारा एक मान्यता प्राप्त संगठन है. निश्चित रूप से यह संघ की तरह शाखा लगाता है और लाठी-डंडे चलाने की ट्रेनिंग देता है. यदि पीएफआई की गतिविधियां आतंकी श्रेणी में आती है, तो आरएसएस की गतिविधियां कहीं ज्यादा संगठित आतंकवादी गतिविधियों को प्रश्रय देने वाली है. इतिहास इसका गवाह है कि सरदार पटेल ने आरएसएस को महात्मा गांधी की हत्या के बाद प्रतिबंधित संगठन की सूची में डाल दिया था.

आगे कहा कि दिल्ली-पटना की सरकार बिहार को उत्तरप्रदेश बनाने पर तुली हुई है. खासकर उसने फुलवारी को अपने टारगेट पे ले रखा है. लेकिन हम उनके मंसूबे को कभी कामयाब नहीं होने देंगे. हमारी मांग है कि गिरफ्तार निर्दोषों को अविलंब बिना शर्त रिहा किया जाए और मुस्लिमों को आतंकी बताकर प्रताड़ित करने की कार्रवाई रोकी जाए.



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