दस वर्षों में 20 से अधिक आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्याएं बिहार में

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दस वर्षों में 20 से अधिक आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्याएं बिहार में

आलोक कुमार

पटना : राजधानी पटना में स्थित सिंहा लाईब्ररी रोड में  बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (बीआईए) के सभागार में सूचना के अधिकार कार्यकर्ताओं का जमावाड़ा हुआ. है.बिहार में आरटीआई कार्यान्वयन और कार्यकर्ताओं पर हमलों स्थिति पर जन सुनवाई हुई.इसका आयोजक सोशल अकाउंट अविलिटी फोरम फॉर एक्शन एंड रिचर्स,सूचना के जन अधिकार का राष्ट्रीय अभियान,जन जागरण शक्ति संगठन,भोजन का अधिकार अभियान और जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय है.     

आरटीआई एक्टिविस्ट की मौत के विषय पर अपनी तरह का पहली जनसुनवाई का आयोजन आज पटना में किया गया. इस जन सुनवाई के वरिष्ठ पत्रकार विनीता देशमुख,पूर्व न्यायाधीश जस्टिस राजेंद्र प्रसाद,मजदूर किसान शक्ति संगठन के  अरुणा रॉय और आईपीएस अमिताभ दास जूरी में रहे.जन सुनवाई की अध्यक्षता प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय (एमकेएसएस), विनीता देशमुख (वरिष्ठ पत्रकार) और अमिताभ कुमार दास (पूर्व आईपीएस) की जूरी ने की.जनसुनवाई का आयोजन सूचना के जन अधिकार का राष्ट्रीय अभियान (एनसीपीआरआई), सफर, जन जागरण शक्ति संगठन, भोजन का अधिकार अभियान, बिहार और जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) द्वारा संयुक्त रूप से किया गया.


पिछले दस वर्षों में 20 से अधिक आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्याएं बिहार में एक बहुत ही परेशान करने वाली प्रवृत्ति है.यह तुरंत बंद होना चाहिए.जिन लोगों की हत्या की गई है, वे सार्वजनिक कारणों से लड़ रहे थे और सार्वजनिक वितरण प्रणाली, नरेगा, आंगनबाडी केंद्रों, अवैध रूप से संचालित क्लीनिकों आदि के कामकाज में पारदर्शिता लाने की कोशिश कर रहे थे. अधिकांश आरटीआई अनियमितताओं और भ्रष्टाचार को उजागर कर रहे थे.आरटीआई कार्यकर्ताओं को डराना-धमकाना तुरंत बंद होना चाहिए.


जनसुनवाई में आए आरटीआई कार्यकर्ताओं के परिजनों ने अपनों को याद कर न्याय दिलाने के लिए सरकार से जवाबदेही का गंभीर सवाल पूछा. परिजनों ने बताया कि पुलिस भी जांच में अपराधियों की मदद कर रही है और मामले को कमजोर करने की पूरी कोशिश कर रही है.अक्सर वे परिवार के सदस्यों और गवाहों को अपना बयान बदलने और जान से मारने की गंभीर धमकी देते हैं.ऐसे में आरटीआई व्हिसलब्लोअर्स के परिवार वाले अब भी खौफ के साए में जी रहे हैं.


पीड़ित परिवार के सदस्यों दने ये भी बताया कि अपराधियों द्वारा कई बार मौत की धमकियों का सामना करने के बाद भी,  आरटीआई कार्यकर्ताओं ने सूचना का पीछा करना और भ्रष्टाचार को उजागर करना बंद नहीं किया था.उन्होंने यह भी कहा कि, यह प्रयास आरटीआई अधिनियम को मारने के लिए जानबूझकर किये जा रहे है जिससे लोग इन हत्याओं से डर कर जानकारी मांगना बंद कर दें.


जनसुनवई में वकील भी मौजूद रहे और पीड़ित परिवार के सभी सदस्यों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने का आश्वासन दिया.


शाम रजक (राजद), शकील अहमद खान (कांग्रेस), गणेश सिंह-सीपीआई (एम), संदीप सौरभ सीपीआई (एमएल), अरुण सिंह- एसयूसीआई, मनोज झा (राजद) जैसे विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता राजनीतिक दल वाले सत्र का हिस्सा थे.उन्होंने संघर्षरत परिवारों को मदद करने का वादा किया और साथ ही आर.टी. आई से जुड़े मुद्दे को बड़े पैमाने पे उठाने का संकल्प किया.


राज्य सूचना आयोग के सूचना आयुक्त त्रिपुरारी शरण ने जन सुनवाई में हिस्सा लिया और अपने स्तर से मदद करने की पेशकश की.


आरटीआई व्हिसलब्लोअर, जूरी और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के परिवार के सदस्यों द्वारा उठाई गई मांगें हैं:


* जान गंवाने वाले आरटीआई कार्यकर्ताओं को मानवाधिकार रक्षक का दर्जा दिया जाना चाहिए


* इन मामलों की निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ तरीके से जांच सुनिश्चित करने के लिए एक न्यायिक जांच आयोग का गठन किया जाना चाहिए।


* राज्य सरकार को कानून प्रवर्तन एजेंसियों को इन सभी मामलों की जांच महीनों के भीतर पूरी करने का निर्देश देना चाहिए।

*राज्य सरकार को भ्रष्टाचार को उजागर करने वालों की सुरक्षा के लिए एक तंत्र अपनाना चाहिए। यह राज्य स्तरीय व्हिसलब्लोअर संरक्षण कानून का रूप ले सकता है। संसद ने 2014 में ऐसा कानून पारित किया था, हालांकि, आज तक भारत सरकार कानून को लागू करने में विफल रही है।

*आरटीआई उपयोगकर्ताओं की धमकियों, हमलों या हत्याओं के सभी मामलों में, राज्य सूचना आयोग को तुरंत संबंधित सार्वजनिक प्राधिकरणों को सभी आरटीआई का खुलासा करने और व्यापक प्रचार करने और उन आरटीआई का जवाब देने का निर्देश देना चाहिए। जिन लोगों को धमकी दी जा रही है या हमला किया जा रहा है, उनके द्वारा पीछा की जा रही जानकारी का व्यापक प्रचार करना, संभावित रूप से भविष्य में ऐसे हमलों के खिलाफ एक निवारक के रूप में कार्य करता है, क्योंकि अपराधियों को यह संदेश मिलता है कि मामले को कवर करने के बजाय, कोई भी हमला और भी अधिक सार्वजनिक जांच को आमंत्रित करेगा। .

*मारे गए लोगों द्वारा मांगी जा रही अधिकांश जानकारी ऐसी थी कि इसे किसी भी मामले में आरटीआई अधिनियम की धारा 4 के तहत सक्रिय रूप से प्रदान किया जाना चाहिए था। बिहार एसआईसी को सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा सक्रिय प्रकटीकरण की आवधिक निगरानी और लेखा परीक्षा करनी चाहिए।

* राजस्थान सरकार द्वारा विकसित जन सूचना पोर्टल और कर्नाटक सरकार द्वारा निर्मित माहिती कंजा की तर्ज पर आरटीआई अधिनियम की धारा 4 को लागू करने के लिए बिहार सरकार को सूचना के प्रकटीकरण के लिए एकल खिड़की पोर्टल विकसित करना चाहिए।

*आरटीआई कार्यकर्ताओं के हमलों या हत्याओं के सभी मामलों में, जिन विभागों से वे जानकारी मांग रहे थे, उन सभी योजनाओं और वित्तीय मामलों का विशेष ऑडिट किया जाना चाहिए, जिनका अनुसरण किया जा रहा था। इसकी निगरानी राज्य सामाजिक लेखा परीक्षा इकाई द्वारा की जानी चाहिए।

जन सुनवाई में निखिल डे, आशीष रंजन, कपिल अग्रवाल, अनिंदिता अधिकारी, रक्षिता स्वामी, महेंद्र यादव, शिव प्रकाश राय, रुपेश, अमृता जोहरी, अंजलि भरद्वाज, मणिलाल, ग़ालिब, इंजीनीर विनय शर्मा, पुरुषोत्तम, अधिवक्ता दीपक, कुमार शानू, शहीद कमाल, गोपाल कृष्णा, विद्याकर झा सहित एक सौ से अधिक आर.टी.आई कार्यकर्ता इस कार्यक्रम में भाग लिए.

बता दें कि मोतीहारी के हरसिद्धि इलाके के 47 वर्षीय आरटीआई कार्यकर्ता बिपिन अग्रवाल की पिछले साल 24 सितंबर को अज्ञात मोटरसाइकिल सवार हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. अग्रवाल के परिवार ने हत्या के लिए स्थानीय भू-माफिया को जिम्मेदार ठहराते हुए हमलावरों का पता लगाने के लिए निष्पक्ष जांच की मांग की थी.बिपिन अग्रवाल ने जिले में कथित रूप से अतिक्रमण की गई सरकारी जमीन और संपत्ति का ब्योरा मांगते हुए कई आरटीआई आवेदन दिए थे. बताया जाता है कि स्थानीय भू-माफियाओं के साथ उनका टकराव उनकी मौत का सबब बनी थी .


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