चंबल में फिर गरजेंगी बंदूकें

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चंबल में फिर गरजेंगी बंदूकें

ओम प्रकाश सिंह

इटावा. चंबल में फिर गरजेंगी बंदूकें लेकिन इस बार निशाने पर इंसान नहीं बल्कि सोने, चांदी, तांबे के मेडल होंगें. आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में महान क्रांतियोद्धा कमांडर-इन-चीफ गेंदालाल दीक्षित की याद में आगामी 16-17 जुलाई को ‘नेशनल चंबल शूटिंग चैंपियनशिप’ का आयोजन किया जा रहा है. शूटिंग प्रतियोगिता का ट्रायल पांच नदियों के संगम स्थल पर किया जाएगा. विशाल जलराशि के नजदीक चांदी की तरह चमकते रेतीले मैदान में होने वाली यह ओपन फ्री-फील्ड चैंपियनशिप देश की अलग और अनोखी तरह की प्रतियोगिता होगी.

कभी बागियों-दस्युओं की शरणस्थली रही चंबल घाटी के पंचनद में एक बार फिर गोलियों की तड़तड़ाहट सुनाईं देंगी लेकिन गरजती यह बंदूकें पदक जीतने वाले निशानेबाजों की होगीं. ‘नेशनल चंबल शूटिंग चैंपियनशिप’ से चंबल घाटी में बंदूक के शौकिन युवा इस क्षेत्र में अपना कैरियर बना सकेंगे. ‘नेशनल चंबल शूटिंग चैंपियनशिप’ में अतिथि के रूप में भारतीय खेल प्राधिकरण की एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर रहीं अर्जुन अवार्डी शूटर रचना गोविल, गेंदालाल दीक्षित के वंशज डॉ. मधुसूदन दीक्षित, आत्मसमर्पित बागी सरदार बलवंता आदि की गौरवशाली मौजूदगी रहेगी.     


‘नेशनल चंबल शूटिंग चैंपियनशिप’ के संयोजक अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी राहुल तोमर ने पंचनद शूटिंग रेंज के ट्रायल के दौरान कहा कि इस प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से सैकड़ों निशानेबाजों ने शामिल होने की ख्वाहिश जताई है लेकिन पहली बार में सिर्फ पचास निशानेबाज इस खेल प्रतिस्पर्द्धा में हिस्सा ले सकेगें. इसके अगले संस्करण में संख्या की कोई सीमा नहीं रहेगी. जो भी शामिल होना चाहेगा उन्हें मौका दिया जाएगा. अगला संस्करण सर्दियों में होगा. इससे यहां पर पर्यटन के लिए बड़े पैमाने पर सैलानियों के लिए द्वार खुलेगें.


‘नेशनल चंबल शूटिंग चैंपियनशिप’ आयोजन समिति से जुड़े डॉ. शाह आलम राना ने बताया कि आजादी योद्धा गेंदालाल दीक्षित अपने दौर के सबसे बड़े गुप्त क्रांतिकारी दल ‘मातृवेदी’ के कमांडर-इन-चीफ गेंदालाल दीक्षित, अध्यक्ष दस्युराज पंचम सिंह और संगठनकर्ता लक्ष्मणानंद ब्रह्मचारी थे. मातृवेदी महानायकों की याद में हो रही इस ‘नेशनल चंबल शूटिंग चैंपियनशिप’ की पहल का स्वागत किया जाना चाहिए. गौरतलब है कि मातृवेदी का गठन इन्हीं चंबल के बीहड़ों में हुआ था. 

मातृवेदी की सेन्ट्रल कमेटी में 30 चंबल के बागी और 10 क्रांतिकारी शामिल थे और देखते ही देखते फिरंगी सरकार का तख्ता पलटने के लिए पंद्रह हजार क्रांतिकारियों ने अपनी सेना बना ली थी जो उस दौर का सबसे उम्दा प्रयोग था.

निशानेबाजी के शौकीनों का जमावडा पचनद के रेत पर होने लगा है. अभ्यास के दौरान होने वाली ठांय ठांय की आवाज कौतुहल पैदा कर रही है.


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