जेसुइट फादर स्टेन स्वामी की प्रथम पुण्यतिथि

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जेसुइट फादर स्टेन स्वामी की प्रथम पुण्यतिथि

आलोक कुमार

 एनआईए ने स्टेन स्वामी को जमानत दिए जाने का विरोध किया था.जांच एजेंसी ने कहा था कि - उनकी तबियत खराब होने का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है , यह अस्थिरता लाने के लिए एक साजिश रची गई है.आखिरकार 5 जुलाई 2021की दोपहर फादर स्टेन ने अंतिम सांसे ली.फादर स्टेन स्वामी का जन्म 26 अप्रैल 1937 को तमिलनाडु के तिरूचिरापल्ली जिले में पुलमबाड़ी के नजदीक विरागलूर नामक गांव में हुआ था.

भीमा-कोरेगांव मामले में फादर स्टेन और अन्य आरोपियों ने बार-बार मुंबई के पास तलोजा जेल में अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं की शिकायत की थी, जहां उन्हें मुकदमे के दौरान रखा गया था.

जेल में फादर स्टेन की तबीयत बिगड़ने के बाद, उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्देशों के बाद 30 मई को मुंबई के होली फैमिली अस्पताल में भर्ती कराया गया था. डॉ डिसूजा ने कहा कि चार जुलाई को सुबह में स्वामी को दिल का दौरा पड़ा.


रविवार को उनकी हालत और बिगड़ गई और उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया लेकिन सोमवार दोपहर करीब 1:30 बजे उनकी मौत हो गई. स्वामी 84 साल के थे.

 तेजी से तबीयत बिगड़ने के कारण रविवार से उन्हें अस्पताल में वेंटिलेटर पर रखा गया था. होली फैमिली अस्पताल के निदेशक डॉ इयान डिसूजा और कार्यकर्ता के वकील मिहिर देसाई ने उच्च न्यायालय को बताया कि दिल का दौरा पड़ने से स्वामी की मौत हो गयी. स्वामी का होली फैमिली अस्पताल में उपचार चल रहा था.

न्यायमूर्ति एस एस शिंदे और न्यायमूर्ति एन जे जमादार की पीठ ने इस खबर पर हैरानी जतायी और कहा कि उन्हें कहने के लिए कुछ शब्द नहीं मिल रहे और आशा जतायी कि स्वामी की आत्मा को शांति मिलेगी.


जेसुइट प्रोविंशियल ऑफ इंडिया ने एक बयान जारी कर स्वामी के निधन पर शोक जताया. संगठन ने कहा कि पादरी ने ताउम्र ‘‘आदिवासियों, दलितों और वंचित समुदायों’’ के लिए काम किया.


स्वामी के वकील देसाई ने उच्च न्यायालय से कहा कि उन्हें अदालत और निजी अस्पताल से कोई शिकायत नहीं है, जहां उनका उपचार हुआ लेकिन वह एल्गार परिषद-माओवादी जुड़ाव मामले में जांच कर रहे राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) और राज्य के जेल प्रशासन के लिए ऐसा नहीं कह सकते.


देसाई ने दावा किया कि एनआईए ने स्वामी को समय पर और पर्याप्त चिकित्सा सहायता प्रदान करने में लापरवाही की और उच्च न्यायालय से उन परिस्थितियों की न्यायिक जांच शुरू करने का आग्रह किया, जिनके कारण कार्यकर्ता की मृत्यु हुई.उन्होंने कहा कि स्वामी को होली फैमिली अस्पताल में भर्ती होने से 10 दिन पहले (इस साल 29 मई को) सरकारी जे जे अस्पताल ले जाया गया था, लेकिन जे जे अस्पताल में कोविड-19 की उनकी जांच नहीं की गयी.वकील ने कहा कि निजी अस्पताल में स्वामी की कोरोना वायरस की जांच में संक्रमण की पुष्टि हुई. जांच एजेंसी के बारे में देसाई ने कहा, ‘‘एनआईए ने एक दिन के लिए भी स्वामी की हिरासत नहीं मांगी, लेकिन उनकी जमानत याचिका का विरोध करती रही.’’


उन्होंने यह भी बताया कि चूंकि स्वामी की हिरासत में मृत्यु हुई है, इसलिए राज्य के अधिकारी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुसार पोस्टमॉर्टम करने के लिए बाध्य हैं.


उच्च न्यायालय ने न्यायिक जांच शुरू करने का कोई आदेश पारित नहीं किया, लेकिन उसने अपने आदेश में दर्ज किया कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की संशोधित धारा 176 (1 ए) में हिरासत में मौत के हर मामले में न्यायिक जांच अनिवार्य है. उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि मौजूदा मामले में भी यही प्रावधान लागू होता है तो राज्य और अभियोजन एजेंसियों को इसका पालन करना होगा.अदालत ने निर्देश दिया कि राज्य के अधिकारी सभी औपचारिकताएं पूरी करें और स्वामी का शव उनके सहयोगी फादर फ्रेजर मस्कारेनहास को सौंप दें. यह निर्देश तब आया जब देसाई ने अदालत को बताया कि जहां आम तौर पर शव को उसके परिवार वालों को सौंप दिया जाता है, वहीं स्वामी एक पादरी थे और उनका कोई परिवार नहीं था. उन्होंने कहा, ‘‘जेसुइट ही उनका एकमात्र परिवार था.’’


अक्टूबर 2020 में गिरफ्तारी के बाद से स्वामी को पहले नवी मुंबई के तलोजा जेल अस्पताल में एक विचाराधीन कैदी के रूप में रखा गया था. उच्च न्यायालय के आदेश पर स्वामी को इस साल मई में होली फैमिली अस्पताल में भर्ती किया गया और उनके इलाज का खर्च उनके सहयोगी उठा रहे थे.उस समय, स्पष्ट रूप से कमजोर नजर आ रहे स्वामी वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से अदालत की अवकाश पीठ के समक्ष पेश हुए थे और उनसे अंतरिम जमानत देने का आग्रह किया था.


उन्होंने कहा था कि तलोजा जेल में रहने के दौरान उनके स्वास्थ्य में लगातार गिरावट आ रही थी. स्वामी ने जे जे अस्पताल में भर्ती होने से इनकार कर दिया था और कहा था कि अगर चीजें वैसी ही बनी रहीं, तो वह ‘‘जल्द ही मर जाएंगे.’’ उन्होंने अदालत से कहा था, ‘‘यदि ऐसा ही चलता रहा तो मैं बहुत कष्ट भोगूंगा, संभवत: बहुत जल्द मर जाऊंगा.मेरी हालत जिस तरह तेजी से खराब हो रही है ऐसे में जे जे अस्पताल की दवा काम नहीं आएगी.’’ स्वामी ने कहा था कि वह अपने लोगों के बीच रांची जाना चाहते हैं.


उन्होंने पिछले साल मार्च में एक विशेष अदालत के आदेश को चुनौती देने के लिए इस साल की शुरुआत में उच्च न्यायालय का रुख किया था. निचली अदालत ने याचिका के गुण-दोष और चिकित्सा आधार, दोनों पर जमानत से इनकार कर दिया था.


उन्होंने उच्च न्यायालय को बताया था कि वह पार्किंसंस रोग और कई अन्य बीमारियों से पीड़ित हैं.पिछले शुक्रवार को स्वामी ने वकील देसाई के जरिए एक नयी याचिका दाखिल कर गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम कानून (यूएपीए) की धारा 45 डी (तीन) को चुनौती दी थी.


एल्गार परिषद मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे में एक सम्मेलन के दौरान भड़काऊ भाषण देने से जुड़ा है.पुलिस का दावा है कि इन्हीं भाषणों के कारण अगले दिन कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई थी.पुलिस ने दावा किया था कि माओवादियों से जुड़ाव रखने वाले लोगों ने इस सम्मेलन का आयोजन किया था.


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