मुर्मू का पलड़ा अभी से ही भारी दिख रहा है

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मुर्मू का पलड़ा अभी से ही भारी दिख रहा है

आलोक कुमार                                              

नयी दिल्ली.एक वक्त में बीजेपी के दिग्गज नेताओं में शुमार थे यशवंत सिन्हा.कुछ समय तक सिन्हा वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्रालय की भी जिम्मेदारी संभाली थी. 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आई और उसके बाद सिन्हा बागी हो गए और लगातार मोदी सरकार और बीजेपी का विरोध कर रहे हैं. सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा अभी भी हजारीबाग से सांसद हैं. 

बताते चले कि बीजेपी के बागी नेता 2019 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने खुलकर बीजेपी का विरोध किया था और तब टीएमसी में शामिल हो हो गए. सिन्हा राजनीति में आने से पहले ब्यूरोक्रेट भी रह चुके हैं. तेज-तर्रार आईएएस अधिकारी के तौर पर उनकी पहचान थी.तब न एक दर्जन से अधिक विपक्षी दलों ने बीते मंगलवार 18 जून को यशवंत सिन्हा को अपना राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया था.                                            

सोमवार को  नामांकन दाखिल किया                                             

राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने सोमवार 27 जून को  नामांकन दाखिल किया. नई दिल्ली में यशवंत सिन्हा के नामांकन के मौके पर विपक्ष ने अपनी ताकत दिखाने की भरपूर कोशिश की है. यशवंत सिन्हा के नामांकन के दौरान एनसीपी प्रमुख शरद पवार, कांग्रेस नेता राहुल गांधी से लेकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव मौजूद रहे. इसके अलावा, आरएलडी के जयंत चौधरी समेत एन के प्रेमचंद्रन, फारूक अब्दुल्ला, ए राजा, डी राजा, केटी राव और नामा नागेश्वर राव ने भी इस मौके पर अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई.   


शुक्रवार को  नामांकन पत्र दाखिल किया                                

राष्ट्रपति चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं.सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार 24 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया.    

प्रधानमंत्री मोदी ने संसद भवन परिसर स्थित राज्यसभा महासचिव के कार्यालय में निर्वाचन अधिकारी पी.सी. मोदी को मुर्मू के नामांकन पत्र सौंपे. मुर्मू के साथ नामांकन दाखिल करने के दौरान भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह, राजनाथ सिंह, जे.पी. नड्डा, कई राज्यों के मुख्यमंत्री और सहयोगी दलों के नेता मौजूद थे. भाजपा नेताओं के अलावा वाईएसआर कांग्रेस के विजयसाई रेड्डी, ओडिशा की बीजू जनता दल सरकार के दो मंत्री और उसके नेता सस्मित पात्रा, अन्नाद्रमुक नेता ओ. पनीरसेल्वम और तंबी दुरई तथा जनता दल (यूनाइटेड) के राजीव रंजन सिंह भी मौजूद थे.राष्ट्रपति पद के नामांकन के लिए प्रत्येक सेट में निर्वाचित प्रतिनिधियों के बीच से 50 प्रस्तावक और 50 अनुमोदक होने चाहिए.चुनाव जीतने पर मुर्मू देश की पहली आदिवासी और दूसरी महिला राष्ट्रपति होंगी.


संथाल समुदाय में जन्मीं द्रोपदी मुर्मू 


द्रौपदी मुर्मू का जन्म ओडिशा (Odisha) के मयूरभंज जिले के ऊपरबेडा गांव में हुआ है. इस गांव की आबादी 3500 के करीब है और यहां दो टोले बड़ा शाही और डूंगरीशाही हैं. बड़ाशाही में तो फिर भी बिजली उपलब्ध है, लेकिन डूंगरीशाही में आज बिजली नहीं पहुंच चुकी है. यहां के लोग अंधेरे में केरोसीन तेल का इस्तेमाल करके काम चलाते हैं.जब से द्रौपदी मुर्मू का नाम राष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए उम्मीदवार के तौर पर उभरा है, तब से ही उनका गांव ऊपरबेडा भी काफी चर्चा में है. 


उनके पैतृक गांव में बिजली उपलब्ध नहीं


वह संभवत: देश की अगली राष्ट्रपति बनने जा रही हैं. हालांकि, यह दुर्भाग्य है कि इतने बड़े पद पर पहुंचने के करीब होने के बाद भी आज उनके पैतृक गांव में बिजली उपलब्ध नहीं है. 

जब पत्रकारों को इस गांव में बिजली नहीं मिली तो उन्होंने इसको मुद्दा बनाया. आज आलम यह है कि यहां युद्ध स्तर पर बिजली पहुंचाने के लिए काम किया जा रहा है, जहां राज्य सरकार की तरफ से आदिवासी बहुल इलाके में खंभे लगाने और ट्रांसफार्मर लगान का काम हो रहा है.    


वह नगर पंचायत में पार्षद रही


वर्ष 1997 में ओडिशा के रायरंगपुर नगर पंचायत में पार्षद रही हैं.वह वर्ष 2000 में बीजद-भाजपा गठबंधन सरकार में मंत्री बनीं और वर्ष 2015 में झारखंड में भगवा पार्टी की सरकार के समय वहां की राज्यपाल बनीं.वर्ष 2017 में उन्होंने - 1976 संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव करने वाले विधेयक लौटा दिए थे.इस विधेयक में यह सुनिश्चित करते हुए जनजातियों को अपनी भूमि का व्यावसायिक उपयोग करने का अधिकार देने की मांग की गई थी कि भूमि का स्वामित्व नहीं बदला जाएगा. यह अधिनियम पश्चिम बंगाल के साथ झारखंड की सीमा से लगे क्षेत्र में गैर-जनजातियों को जनजातीय भूमि की बिक्री पर रोक लगाता है.उत्कल विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर स्मिता नायक ने बताया ‘यह साबित करता है कि मुर्मू भाजपा के दबाव के बावजूद संविधान के अनुसार काम कर सकती हैं. आम तौर पर भाजपा में महिला नेताओं को पद मिलते हैं और वे सशक्त होती हैं. मुझे लगता है कि मुर्मू को भी काम करने की आजादी मिलेगी.’   


मुर्मू का पलड़ा अभी से ही भारी दिख रहा है


यशवंत सिन्हा का मुकाबला एनडीए उम्‍मीदवार द्रौपदी मुर्मू से है.मुर्मू को कई विपक्षी पार्टियों का भी साथ मिला है.इस सूची में मायावती की बीएसपी और नवीन पटनायक की बीजद शामिल है.आंकड़ों को देखें तो मुर्मू का पलड़ा अभी से ही भारी दिख रहा है.एनडीए का पलड़ा शुरुआत से भारी दिख रहा है.        वोट की संख्या पर नज़र डालें तो नडीए के पास कुल मिलाकर 5 लाख  26  हजार वोट हैं जो कुल वोटों का लगभग 49 फीसदी है. नीतिश कुमार की पार्टी जेडीयू, नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी और मायवती की पार्टी बीएसपी ने पहले ही एनडीए उम्मीदवार को समर्थन देने का ऐलान कर दिया है. 


राष्ट्रपति चुनाव 18 जुलाई को होना है


राष्ट्रपति चुनाव 18 जुलाई को होना है. मुर्मू अगर राष्ट्रपति चुनाव जीतती हैं तो वह देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति होंगी. इसके अलावा, वह देश की सबसे युवा राष्ट्रपति भी होंगी. राष्ट्रपति पद पर अब तक सिर्फ एक महिला प्रतिभा पाटिल ही पहुंची हैं. द्रौपदी चुनाव जीतकर इस पद को पाने वाली दूसरी महिला बनेंगी. मुर्मू मूल रूप से ओडिशा की हैं और संताल जनजाति से ताल्लुक रखती हैं. वह झारखंड की राज्यपाल भी रह चुकी हैं.


उम्मीदवार बनने पर जनजातियों पर नजर


राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की ओर से द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद अब ध्यान जनजातियों पर टिक गया है, जिनका देश की आबादी में 8.67 फीसदी हिस्सा है.मुर्मू ओडिशा के संथाल समुदाय से हैं, जो भारत का तीसरा सबसे बड़ा जनजातीय समूह है. यदि मुर्मू राष्ट्रपति बनती हैं, तो राजनीतिक दल जनजातीय समुदाय को नजरअंदाज नहीं कर सकतीं.पर्यवेक्षकों को लगता है कि मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को ओडिशा विधानसभा चुनाव में फायदा होगा, जहां जनजातीय लोगों की अच्छी संख्या है खासकर संथालों की. पर्यवेक्षकों के मुताबिक मुर्मू के चयन को वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव और ओडिशा विधानसभा चुनाव में भाजपा की रणनीति के हिस्से के रूप में भी देखा जा सकता है, जहां जनजातीय आबादी कुल आबादी के 22 प्रतिशत से अधिक है.


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