यशवंत सिन्हा बने विपक्ष के उम्मीदवार

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यशवंत सिन्हा बने विपक्ष के उम्मीदवार

आलोक कुमार

दिल्ली.राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के उम्मीदवार के तौर पर पूर्व टीएमसी नेता यशवंत सिन्हा के नाम पर मुहर लग गई है.एनसीपी नेता शरद पवार की अध्यक्षता में विपक्षी दलों की मीटिंग में यह फैसला लिया गया है. इस बैठक में यशवंत सिन्हा भी मौजूद थे. इससे पहले विपक्ष ने जिन तीन नामों को आगे किया था उन्होंने उम्मीदवार बनने से इनकार कर दिया था. इनमें शरद पावर, फारूक अब्दुल्ला और गोपालकृष्ण गांधी का नाम शामिल था. यशवंत सिन्हा ने पहले ही पार्टी से इस्तीफे की पेशकश की थी.उन्होंने कहा था कि समय आ गया है कि अब वह एक बड़े राष्ट्रीय उद्देश्य के लिए पार्टी से हटकर विपक्षी एकता के लिए काम करें.


विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का जन्म 6 नवंबर 1937 को बिहार की राजधानी पटना में हुआ था. उनकी स्कूल और विश्वविद्यालय की शिक्षा पटना में हुई. उन्होंने 1958 में राजनीति विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएशन की. इसके बाद वे 1958 से 1960 तक पटना विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के टीचर रहे. सिन्हा 1960 में एक कठिन प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से भारतीय प्रशासनिक सेवा (प्।ै) में शामिल हुए और अपने सेवा कार्यकाल के दौरान महत्वपूर्ण पदों पर 24 वर्षों से अधिक समय बिताया. उन्होंने 4 साल तक उप-मंडल मजिस्ट्रेट और जिला मजिस्ट्रेट के रूप में कार्य किया. वह 2 साल तक बिहार सरकार के वित्त विभाग में अवर सचिव और उप सचिव थे.


विपक्षी दलों की ओर से मंगलवार को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर हुई बैठक में अहम फैसला हुआ.इसमें सर्वसम्मति से यशवंत सिन्हा को विपक्षी दलों की ओर से राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाने का फैसला किया गया. माना जा रहा है कि यशवंत सिन्हा 27 जून को अपना नामांकन दाखिल करेंगे. गौरतलब है कि विपक्षी दलों की पिछली बैठक में एनसीपी प्रमुख शरद पवार का नाम भी तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी की ओर से प्रस्तावित किया गया था, लेकिन पवार ने दावेदारी स्वीकार करने से इनकार कर दिया था. इसके अलावा गोपाल कृष्ण गांधी का नाम भी आया था. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि यशवंत सिन्हा के कंपेन को आगे बढ़ाने के लिए एक कमेटी का गठन किया गया है. वरिष्ठ कांग्रेस सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि हम चाहते हैं कि ऐसा प्रत्याशी सामने रखा जाए जो लोकतंत्र की रक्षा कर सके. खड़गे ने आरोप लगाया कि सरकार ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए आम सहमति बनाने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया.


कुछ विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर पिछले साल तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए बीजेपी के पूर्व नेता सिन्हा के नाम का प्रस्ताव रखा, जिस पर सर्वसम्मति से सहमति बन गई. यशवंत सिन्हा ने मंगलवार को तृणमूल कांग्रेस को छोड़ने का ऐलान करते हुए कहा कि अब वह विपक्षी एकता के राष्ट्रीय उद्देश्य के लिए काम करेंगे. सिन्हा ने ट्वीट करते हुए लिखा था कि ममता जी ने जो सम्मान मुझे तृणमूल कांग्रेस में दिया.मैं उसके लिए उनका आभारी हूं अब समय आ गया है जब वृहद विपक्षी एकता के व्यापक राष्ट्रीय  उद्देश्य के लिए मुझे पार्टी से अलग होना होगा. मुझे यकीन है कि वह ममता इसकी अनुमति देगी.                          


इस बैठक में कांग्रेस,एनसीपी, तृणमूल कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी,समाजवादी पार्टी, नेशनल कांफ्रेंस,ऑल इंडिया मजलिस- ए- इत्तेहाद मुस्लिमीन,राष्ट्रीय जनता दल और असम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के प्रतिनिधि शामिल हुए. बैठक में शामिल होने वाले कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे और जयराम रमेश,तृणमूल कांग्रेस के अभिषेक बनर्जी,डीएमके के तिरूचि शिवा आदि शामिल रहे.


जयराम रमेश ने संयुक्त विपक्ष का बयान पढ़ते हुये कहा कि हमें खेद है कि मोदी सरकार ने राष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर आम सहमति बनाने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किया. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि यशवंत सिन्हा राष्ट्रपति पद के लिए साझा विपक्ष के उम्मीदवार चुने गए, वह भारत के धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक ताने-बाने को बनाए रखने के लिए योग्य हैं.


जानकारों का कहना है कि यशवंत सिन्हा के नाम पर मुहर इसलिए लगाई गई क्योंकि विपक्ष जिनका नाम प्रस्तावित करता था, वे इनकार कर रहे थे. ऐसे में किसी ऐसे चेहरे की जरूरत थी जो कि तैयार भी हो और उसपर विवाद भी न हो. वहीं यह भी कहा जा रहा है कि यशवंत सिन्हा का समर्थन जेडीयू भी कर सकती है क्योंकि वह बिहार से आते हैं. दो बार ऐसा हो चुका है कि नीतीश कुमार ने लीक से हटकर उम्मीदवार का समर्थन किया है. एनडीए का हिस्सा होते हुए भी उन्होंने प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया था. वहीं बात करें पिछले चुनाव की तो उन्होंने रामनाथ कोविंद का समर्थन किया जबकि वह उस समय महागठबंधन का हिस्सा थे.


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