आलोक कुमार
पटना. जातिगत जनगणना कराए जाने को लेकर बिहार विधानसभा ने वर्ष 2019 तथा 2020 में सर्वसम्मति से इस आशय के प्रस्ताव को अपनी मंजूरी दी थी। भाजपा ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया था.आखिरकार 01 जून को बिहार में राज्य सरकार के अपने संसाधन पर जातिगत जनगणना कराए जाने का स्वरूप तय करने को ले सर्वदलीय बैठक हुई.
बिहार में राज्य सरकार के अपने संसाधन पर जातिगत जनगणना कराए जाने का स्वरूप तय करने को ले बुधवार को सर्वदलीय बैठक हुई.बैठक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में मुख्यमंत्री सचिवालय स्थित संवाद कक्ष में शाम 4 बजे में हुई. मीटिंग में 9 दल के नेता शामिल हुए. मुकेश सहनी,चिराग पासवान और पशुपति पारस के दल को नहीं बुलाया गया.बावजूद, इसके बैठक में मंथन हुआ कि जातियों की गिनती कैसे होगी? इसी मीटिंग में तय हुआ.इस मीटिंग में जो आम राय निकलकर आयी, उसके आधार पर प्रस्ताव बनाकर राज्य की कैबिनेट के पास भेजा जाएगा.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज घोषणा की कि बिहार में जाति-आधारित जनगणना की जाएगी. आज इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक हुई, जिसमें सरकार में शामिल भारतीय जनता पार्टी सहित सभी दलों ने सर्वसम्मति से इस पर सहमति जताई.
इस आशय का एक प्रस्ताव राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में विचार के लिए रखा जाएगा.बैठक के बाद संवाददाताओं से बातचीत में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि एक निर्धारित समय के भीतर जाति-आधारित जनगणना के लिए सभी दलों ने सहमति जताई है. श्री कुमार ने कहा कि जाति-आधारित जनगणना पर होने वाला खर्च का वहन राज्य सरकार करेगी.जाति आधारित जनगणना पर फैसला लेने के लिए बुलाई गई बैठक में निमंत्रित करने के लिए सरकार ने विधानसभा में प्रतिनिधित्व को आधार बनाया है. मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी, चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) और पशुपति पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी का विधानसभा में प्रतिनिधित्व नहीं है.हालांकि, मुकेश सहनी और पशुपति पारस की पार्टी का विधान परिषद में प्रतिनिधित्व है.
बुधवार को हुई बैठक में भाजपा, राजद, जदयू, कांग्रेस, वाम दलों, हम और एआइएमआइएम को निमंत्रण दिया गया.बैठक में भाजपा की तरफ से उपमुख्यमंत्री तार किशोर प्रसाद, राजद से तेजस्वी यादव सहित तमाम दलों के बड़े नेता मौजूद रहे. इसकी अध्यक्षता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने की. पिछले वर्ष 23 अगस्त को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार से 10 लोगों के सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से जातिगत जनगणना कराए जाने की मांग की थी. जनगणना के साथ ही जातिगत जनगणना कराए जाने की बात कही गई थी.सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव व भाजपा के प्रतिनिधि के रूप में राज्य सरकार में खान एवं भू-तत्व मंत्री जनक राम भी शामिल थे. कांग्रेस सहित सभी वाम दलों व एआइएमआइएम का प्रतिनिधित्व था.
प्रधानमंत्री ने प्रतिनिधिमंडल की बात को गंभीरता से सुना था, लेकिन बाद में केंद्र सरकार की ओर से यह कहा गया कि जातिगत जनगणना संभव नहीं है.केंद्र के इनकार के बाद राज्य सरकार ने अपने संसाधन से जातिगत जनगणना कराए जाने का निर्णय लिया. संपूर्ण विपक्ष भी इस पर सहमत है.
केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के फायर ब्रांड नेता गिरिराज सिंह ने कहा कि अल्पसंख्यक शब्द की समीक्षा की जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि अब वो वक्त आ गया है जब इस शब्द पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए. साथ ही उन्होंने ने एक महत्वपूर्ण सवाल भी उठाया.उन्होंने ने कहा जब मुसलमानों को लाभ दिया जाता है तो ऐसे में मुसलमानों को भी जाति की श्रेणी में रख कर उनकी जनगणना जाति के आधार पर कराई जानी चाहिए.
ऐसे में बीजेपी के कद्दावर नेता और सांंसद गिरिराज सिंह का बयान महत्वपूर्ण है.गिरिराज सिंह ने कहा कि कहा कि जो लोग जाति और मुसलमान होने का लाभ लेते हैं.उनकी भी जनगणना की जानी चाहिए.उन्होंने कहा, घुसपैठियों को जाति जनगणना से अलग किया जाना चाहिए.गिरिराज सिंह ने कहा कि बिहार में रोहिंग्या होंं या बांग्लादेशी घुसपैठिए इन्हें बिहार में होने वाली जातिगत जनगणना से बाहर रखे जाएं. उन्होंने कहा कि जातिगत जनगणना से 1991-92 में इस देश से निकाले गए लोगोंं और उनके परिवारों के भी गणना से बाहर रखा जाए.
उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक शब्द पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए.अल्पसंख्यक शब्द को ही हटा देना चाहिए. उन्होंने कहा कि बिहार सरकार जो जातीय जनगणना की बात कर रही है, हम उसके साथ खड़े हैं.हमें जातीय जनगणना से कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन जातीय जनगणना में मुसलमानों को जातियों के रूप में शामिल कर उनकी भी गणना की जानी चाहिए.उन्होंने कहा कि मुस्लिम वर्ग में भी कई जातियां हैं. उन्हें भी जातीय रूप से श्रेणीबद्ध करके उनकी गिनती की जानी चाहिए.
बीजेपी की फायर ब्रांड नेता ने सीएम नीतीश को सुझाव देते हुए कहा कि 1991 में बिहार के 11 जिलों में फर्जी मतदाताओं के नाम हटाए गए थे. इसे लेकर दो लोगों ने याचिका दायर की थी. तब करीब 3 लाख लोगों का नाम सूची से हटाया गया है.ऐसे में जातीय जनगणना के दौरान इन बातों का ध्यान रखा जाए. उन्होंंने कहा जो रोहिंग्या और बंगलादेशी घुसपैठिये यहां रह रहे हैं उन्हें जनगणना में शामिल नहीं किया जाए. साथ ही जिन 3 लाख लोगों का नाम हटाया गया था उन्हें भी जातीय जनगणना में जगह नहीं दी जानी चाहिए.
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