आलोक कुमार
उज्जैन.उज्जैन आवह्वान के महामंडलेश्वर अतुलेशानंद और अखंड हिंदू सेना के अध्यक्ष ने दावा किया है कि उज्जैन के दानी गेट पर बनी बिना नींव की मस्जिद में प्राचीन शिव मंदिर है. इस मस्जिद में गणेश भगवान की मूर्ति मौजूद है.वर्ष 2007 में उन्होंने मस्जिद को अंदर से जाकर देखा था.उन्होंने वहां भगवान गणेश की मूर्तियां, हाथी- घोड़े व पत्थरों पर विशाल पहरेदार सैनिकों की मूर्तियां देखी थीं.महामंडलेश्वर ने कहा है कि मस्जिद की जांच कराई जाए.साथ ही यहां वीडियोग्राफी करके साक्ष्य जमा किए जाएं.
महामंडलेश्वर ने कहा कि राजा भोज शिव भक्त थे और उन्होंने 1026 में गजनबी को हराया था. उसी समय उन्होंने हमारे उज्जैन में एक शिव मंदिर का निर्माण कराया था, जिसे छोटी भोजशाला कहते हैं और एक भोजशाला धार में विराजित है जहां सरस्वती माता का मंदिर है. उज्जैन में उन्होंने शिव मंदिर का निर्माण कराया था, ऐसे कई मंदिर देशभर में बनवाए थे. उज्जैन में बने शिव मंदिर को 1600 में मुगल शासकों ने तोड़कर कब्जा कर लिया था और आज बिना नींव की मस्जिद के नाम से जाना जाता है.
महामंडलेश्वर ने कहा कि काशी में ज्ञानवापी मस्जिद की तरह उज्जैन में भी मंदिर को मस्जिद में परिवर्तित किए जाने का विवाद सामने आया है.यहां क्षिप्रा नदी के पास स्थित नींव की मस्जिद को राजा भोज द्वारा बनाने तथा यहां पर परमार कालीन स्तंभ और गणेश प्रतिमा स्थापित होने का दावा किया है.मंदिर को वापस लेने के लिए कोर्ट में याचिका लगाने के साथ हनुमान चालीसा पाठ किए जाने की घोषणा की गई है.
महामंडलेश्वर का कहना है कि राजा भोज ने धार में भोजशाला के साथ उज्जैन में गणेशजी व सरस्वती का मंदिर बनाया था. यहां पर संस्कृत का वेदपाठ होता था और संस्कृत के विद्वान रहते थे.मुगल शासन में इस मंदिर को तोड़कर मस्जिद में बदल दिया गया.मस्जिद में खड़े स्तंभ और मुख्यद्वार पर की गई नक्काशी परमार कालीन है.मस्जिद का गुंबद भी मंदिर की तरह है.महामंडलेश्वर ने इसके सबूत भी देते हुए फोटो भी जारी किए हैं.उन्होंने कहा कि इस मंदिर को वापस लेने के लिए वह कोर्ट में याचिका लगाने जा रहे हैं.जल्द ही मंदिर के सामने हनुमान चालिसा का पाठ भी करेंगे.
बना नींव की मस्जिद में स्तंभ और नक्काशी के परमारकालीन होने की पुष्टि पुरातत्वविद ने भी की है. पुरातत्वविद डा. रमण सोलंकी ने बताया कि मस्जिद में जो अवशेष स्तंभ और उस पर नक्काशी है, वह परमारकालीन होकर एक हजार वर्ष पुरानी है. डा. सोलंकी के मुताबिक राजा भोज के क्षिप्रा नदी तट से अनंतनारायण मंदिर तक का क्षेत्र सरस्वती कंढा भरण के रूप में थी। यहां पाठशाला लगती थी और देशभर से संस्कृतज्ञानी आते थे और वेद पुराणों पर विचार-विमर्श करते थे.
अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के बिहार अल्पसंख्यक विभाग के उपाध्यक्ष सिसिल साह ने कहा कि देशभर में कई धार्मिक स्थल ऐसे हैं जिनको लेकर सदियों से विवाद चल रहा है.संप्रदाय विशेष के इन धार्मिक स्थलों पर अक्सर दावे किए जाते हैं और यह तर्क दिया जाता है कि इनका निर्माण धार्मिक स्थल को तोड़कर किया गया था. इसलिए अब समय की मांग है कि हमलावारों के द्वारा बनाए गए इन धार्मिक स्थलों का कब्जा उनके वास्तविक हकदारों को सौंपा जाना चाहिए. लेकिन इस संबंध में 1991 में बनाए गए कानून पर गौर करना होगा, जिसमें धार्मिक स्थलों को लेकर स्थिति स्पष्ट की गई है.
उन्होंने ने जब कांग्रेस सत्तासीन थी तब 1991 में केंद्र में काबिज नरसिम्हा राव सरकार ने एक कानून बनाकर धर्मस्थलों के संबंध में स्थिति को स्पष्ट कर दिया था। प्लेसेज ऑफ़ वॉर्शिप एक्ट यानी उपासना स्थल अधिनियम को 18 सितंबर, 1991 को पारित किया गया था.यह भारतीय संसद का एक अधिनियम है.इस अधिनियम का मकसद 15 अगस्त 1947 तक अस्तित्व में आए हुए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित करने और किसी स्मारक के धार्मिक आधार पर बदलने पर रोक लगाता है.लेकिन मान्यता प्राप्त प्राचीन और ऐतिहासिक महत्व के स्मारकों पर धाराएं लागू नहीं होंगी.इसके साथ ही इस अधिनियम से उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या में स्थित राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद और उक्त स्थान या पूजा स्थल से संबंधित किसी भी वाद, अपील या अन्य कार्यवाही को भी छूट दी गई है. चूंकी इस कानून के बनाते वक्त राम जन्मभूमि विवाद काफी जोर पकड़ चुका था इसलिए तात्कालिक पीएम नरसिम्हाराव ने इस मुद्दे को हाथ लगाना उचित नहीं समझा, लेकिन इसके साथ ही इस कानून को बनाकर देशभर में फैले विवादित धर्मस्थलों को लेकर चल रही बहस और विवाद पर विराम लगा दिया.
आगे कहा कि इस कानून के बन जाने से अब किसी भी विवादित धार्मिक स्थल को लेकर अदालत में कानूनी चुनौती नहीं दी जा सकती है, लेकिन इस कानून को बदलने के लिए या इसको रद्द करने के लिए अदालत में चुनौती दी जा सकती है.अत: वर्तमान सरकार सख्त कानून बनाकर मसले को समाप्त कर दें.अभी काशी में ज्ञानवापी मस्जिद की तरह उज्जैन में भी मंदिर को मस्जिद में परिवर्तित किए जाने का विवाद सामने आया.
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