प्रवीण मल्होत्रा
मध्यप्रदेश की राजधानी की 'लुटियंस हिल' यानी श्यामला हिल्स पर ग्वालियर के भूतपूर्व महाराजा का महल सज कर तैयार हो गया है और ग्वालियर रियासत के राजपुरोहित ने गृहप्रवेश का कार्य भी सम्पन्न कर दिया है. राजनीतिक क्षेत्रों में इससे यह संकेत मिल रहे हैं कि ग्वालियर रियासत के उत्तराधिकारी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्यप्रदेश की राजनीति में न सिर्फ औपचारिक रूप से प्रवेश कर लिया है, बल्कि उन्होंने मध्यप्रदेश का अगला मुख्यमंत्री बनने के लिये कमर भी कस ली है. इस राजनीतिक घटनाक्रम से तीन बातें मोटे तौर पर उभर रही हैं :
पहली बात तो यह कि हमारे प्रदेश की जनता राजा-महाराजाओं के प्रभामण्डल से आजादी के 75 साल बाद और लोकतांत्रिक संविधान को अपनाने के 72 साल बाद भी मुक्त नहीं हो पायी है.
दूसरा यह कि, ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्यप्रदेश कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय और प्रभावशाली नेता थे जिन्हें कांग्रेस के दो बुड्ढों ने षडयंत्र कर अपनी औलादों की खातिर पार्टी से बाहर करवा दिया था.
तीसरा, यह कह कि, यह कयास लगाए जा रहे हैं कि अगला विधानसभा चुनाव "सिंधिया वि. कमलनाथ'' होने वाला है. इस सम्बन्ध में मुझे यह लिखने में कोई हिचक नहीं है कि 2023 का विधानसभा चुनाव कमलनाथ और दिग्विजयसिंह की राजनीतिक पारी को समाप्त कर देगा और उसके बाद इन्हें इनकी पार्टी में भी कोई पूछेगा तक नहीं.
इन दोनों बुड्ढों ने बहुत चालाकी और मक्कारी के साथ प्रदेश में कांग्रेस के युवा नेतृत्व को उभरने नहीं दिया है ताकि इनके बाद उनकी राजनीतिक विरासत इनके बेटों को मिल जाये. पुत्र मोह ने ही दिग्विजयसिंह को अपने भाई लक्ष्मणसिंह से भी दूर कर दिया है. ये दोनों खुद तो डूबेंगे ही, मध्यप्रदेश में कांग्रेस को भी डुबो देंगे.
2019 के चुनाव में कांग्रेस को 40% वोट मिले थे. यह वोट प्रतिशत निश्चितरूप से धरातल की ओर ही जाने वाला है. मध्यप्रदेश में यदि अन्य राज्यों की तरह तीसरा विकल्प होता तो कांग्रेस की और बुरी हालत होती. लेकिन यहां मजबूरी यह है कि जो मतदाता बीजेपी से असंतुष्ट हैं, उन्हें मन मार कर कांग्रेस को ही वोट देना पड़ता है. क्योंकि उनके समक्ष अन्य कोई विकल्प नहीं है.
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