आलोक कुमार
पटना.अब बिहार में दो ही ऑप्शन रह गया है.पहला सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार अविलम्ब विशेष पिछड़ा आयोग का गठन कर ट्रिपल टेस्ट के आधार पर पिछड़े वर्गों की सूची तैयार करें. अन्यथा मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र की तरह बिना पिछड़ा आरक्षण के नगर निकाय चुनाव कराने की नौबत आ सकती है.यहां पर बिहार राज्य निर्वाचन आयोग के द्वारा दिशा-निर्देश जारी कर दिया गया है. अब तो सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णय ने बिहार राज्य निर्वाचन आयोग (Bihar State Election Commission) के हाथ भी बांध दिए हैं.
बता दें कि नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की सूची संविधान की धारा 15(4) एवं 16 (4) के तहत बनायी गयी है. बिहार में इसी सूची को पंचायत और नगर निकाय में लागू किया गया है.इस बार बिहार में नगर निकाय चुनाव ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) आरक्षण के पेच में फंसता जा रहा है.मध्य प्रदेश सरकार (Madhya Pradesh Government) के संबंध में मंगलवार को दिए गए निर्णय में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने फिर से दोहराया है कि कोई भी राज्य सरकार बिना ट्रिपल टेस्ट (Tripple) कराए ओबीसी वर्ग को स्थानीय निकाय चुनाव में आरक्षण नहीं दे सकती है.
बता दें कि बिहार में नगर निकाय चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है.राज्य निर्वाचन आयोग, बिहार द्वारा जारी दिशा-निर्देश के प्रारूप प्रकाशन के उपरांत दिनांक-28.04.2022 से 11.05.2022 तक आपत्तियां प्राप्त की गयी. दिनांक- 30.04.2022 से 20.05.2022 तक प्रारूप प्रकाशन के दौरान प्राप्त आपत्तियों का निष्पादन किया जायेगा. दिनांक- 21.05.2022 से 27.05.2022 तक वार्डो की सूची तैयार कर उस पर प्रमंडलीय आयुक्त महोदय से अनुमोदन प्राप्त किया जायेगा. अंतिम रूप से गठित वार्डों का जिला गजट में प्रकाशन दिनांक-30.05.2022 को होगा.साथ ही राज्य सरकार (नगर विकास एवं आवास विभाग) एवं राज्य निर्वाचन आयोग को जिला गजट में प्रकाशित वार्डों की सूची एवं मानचित्र प्राप्त करने की अंतिम तिथि दिनांक-02.06.2022 निर्धारित है.
इस प्रारूप के जारी होने के बाद महत्वपूर्ण यह निर्णय है कि कोई भी राज्य सरकार बिना ट्रिपल टेस्ट कराए ओबीसी वर्ग को स्थानीय निकाय चुनाव में आरक्षण नहीं दे सकती है.इस आदेश से बिहार राज्य निर्वाचन आयोग के हाथ भी बांध दिए हैं. अभी तक राज्य सरकार की ओर से नगरपालिका व स्थानीय निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण देने के लिए ट्रिपल टेस्ट की पहल ही नहीं हुई है.
ट्रिपल टेस्ट के तहत राज्य सरकार को 1- राज्य के भीतर स्थानीय निकायों के रूप में पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ की कठोर जांच करने के लिए एक आयोग की स्थापना की जानी है.2- आयोग की सिफारिशों के मुताबिक स्थानीय निकाय-वार प्रावधान किए जाने के लिए आवश्यक आरक्षण के अनुपात को निर्दिष्ट करना, ताकि अधिकता का भ्रम न हो.3- किसी भी मामले में ऐसा आरक्षण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के पक्ष में आरक्षित कुल सीटों के कुल 50% से अधिक नहीं होगा.
पूर्व मुख्यमंत्री सह राज्य सभा के सांसद सुशील कुमार मोदी ने ट्वीट कर कहा है कि नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की सूची संविधान की धारा 15(4) एवं 16 (4) के तहत बनायी गयी है. बिहार में इसी सूची को पंचायत और नगर निकाय में लागू किया गया है. कोर्ट के अनुसार राजनैतिक प्रतिनिधित्व की सूची नौकरी और शिक्षा की सूची से अलग होगी.
उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार अविलम्ब विशेष पिछड़ा आयोग का गठन कर ट्रिपल टेस्ट के आधार पर पिछड़े वर्गों की सूची तैयार करना चाहिए अन्यथा मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र की तरह बिना पिछड़ा आरक्षण के नगर निकाय चुनाव कराने की नौबत आ सकती है.आगे कहा कि जून माह में नगर निकायों का कार्यकाल पूरा हो रहा है.यदि जून के पहले चुनाव नहीं हुए तो नगर निकायों को भंग कर प्रशासक नियुक्त करना पड़ सकता है.सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया है कि कार्यकाल पूरा होने के पूर्व चुनाव सम्पन्न कराएँ तथा पिछड़ा आरक्षण के लिए ट्रिपल टेस्ट अनिवार्य है.कोर्ट के अनुसार राजनैतिक प्रतिनिधित्व की सूची नौकरी और शिक्षा की सूची से अलग होगी.
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