प्रेमकुमार मणि
पिछले महीने से ही लंका से भयावह खबरें आ रही थीं . देश का आर्थिक संकट चरम स्थिति में है और उसने सम्पूर्ण जनजीवन को तबाह कर रख दिया है . राजनीतिक स्थिति डगमग हो चुकी है . लेकिन परसों वहां के प्रधानमंत्री राजपक्षे ने जिन स्थितियों में इस्तीफा किया वह राजनीतिक यथार्थ का एक नया पक्ष है . लोग सडकों पर निकल चुके हैं और सार्वजनिक सम्पत्तियों को तोड़फोड़ रहे हैं . नेताओं के घरों पर हमले हो रहे हैं . भीड़ से घिरे हुए एक संसद सदस्य ने खुद को गोली मार लेना बेहतर समझा . उन्हें शायद मुसोलिनी का इतिहास मालूम था कि किस तरह भीड़ ने उसकी हत्या की थी .
श्रीलंका डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट गणराज्य है ,लेकिन व्यवहार में वहां एक परिवार का शासन है . लोकतान्त्रिक ढांचे में पारिवारिक राजवंशों का फलना -फूलना दक्षिण एशिआई मुल्कों में आम तौर पर व्याप्त है . भारत ,पाकिस्तान, श्रीलंका, बंगलादेश सब इस राजनीतिक व्याधि से आक्रांत हैं. श्रीलंका में जिस तरफ देखिए राजपक्षे परिवार ही नजर आता है . अब जाकर जनता का ध्यान गया है कि हमारी दुर्दशा का कारण हमारी यह राजनीतिक व्यवस्था है ,जिसे हमने ही पाला -पोसा है. जनता को मुफ्तखोरी की आदत देकर राजनेता उनके वोट ले लेते हैं और यह नहीं देखते कि इससे अर्थ -व्यवस्था कितनी लचर हो रही है . 2014 तक जिस लंका की आर्थिक स्थिति ठीक थी ,वह कुछ ही वर्षों में इतनी भयावह हो गई इसका कारण और कुछ नहीं , अबाध रूप से राजकीय तामझाम और उसके खर्चे हैं . आज उन्ही सरकारी इमारतों को जनता तोड़फोड़ रही है तो कुछ गलत नहीं कर रही है . वह जानती है कि हमारी दुर्दशा के कारण यही हैं ,जिन्हें हमारे विकास का प्रतिमान बतलाया जा रहा था .
श्रीलंका छोटा -सा देश है . लगभग सवा दो करोड़ आबादी है . सत्तर फीसद लोग बौद्ध हैं . शेष में हिन्दू ,मुस्लिम ,ईसाई हैं . सिंहलियों का बोलबाला है ,लेकिन कुछ दूसरे नस्लों के लोग भी वहां रहते हैं . सांस्कृतिक रूप से यह भी ध्यान देने लायक है कि भारत में भले ही बौद्ध धर्म का विलोप हो गया था ,इसके उत्तर और दक्षिण में यह धर्म तिब्बत और श्रीलंका में मजबूती से बना रहा . तिब्बत महायान और श्रीलंका हीनयान का केंद्र रहा . दोनों में भरपूर पाखण्ड है ,जिसकी कहानी से आज की अफरा- तफरी का कोई सम्बन्ध नहीं है . इसीलिए उसकी चर्चा का कोई मतलब नहीं है. मेरे कहने का तात्पर्य केवल इतना है कि धर्म कोई भी हो इस्लाम ,हिन्दू ,बौद्ध या कुछ और पाखण्ड हर जगह है और जनता के बुनियादी सामाजिक -आर्थिक सवाल अधिक महत्वपूर्ण हैं .
श्रीलंका की घटनाएं हमारे लिए नसीहत हो सकती हैं . आबादी के मामले में उसकी हमारे देश से कोई तुलना नहीं है . हम पचास गुना आबादी वाले देश हैं . लेकिन हमारी आर्थिक स्थिति भी बदतर हो चुकी है . सरकारें अनाप -शनाप खर्चे कर रही हैं . शिक्षा ,स्वास्थ्य , रोजगार हमारे बुनियादी ढाँचे हैं . इसकी उपेक्षा कर जिस भव्यता को संवारा जा रहा है ,वह हमारे लिए खतरनाक है . एक उदाहरण मोदी सरकार द्वारा संसद परिसर को हजारों करोड़ की लागत से बनाया जाने वाला सेंट्रल विस्टा योजना है. जनता को जानना चाहिए कि इस तरह की जितनी योजनाएं होती हैं उसका मकसद राजनेताओं द्वारा कमीशन खोरी है. ये कमीशन अब विदेशों में भुगतान होते हैं . तमाम राजनेताओं के बसेरे दूर देशों में बनते जा रहे हैं . जनता को उलझने केलिए उन्होंने धर्म और जाति के टंटे बिखेर दिए हैं.
श्रीलंका की घटनाओं से भारत की जनता को सचेत हो जाना चाहिए . वहां हजार रुपए किलो चीनी और चावल हो गए ,तब यह स्थिति हुई है . हमारे देश में पेट्रोल ,गैस और खाद्य सामग्रियों की महंगाई जिस रफ़्तार से भाग रही हैं उसे अनदेखा करना मूर्खता होगी . हम भारत में लंकाई अफरा -तफरी नहीं चाहेंगे .
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