जम्मू के पंडित उमादत्त शर्मा जी का बेटा शिव तबला बजाता था और शास्त्रीय संगीत गाता था. उमादत्त शर्मा ने कश्मीरी संतूर पर शोध किया और अपने बेटे से कहा कि कश्मीरी संतूर बजाना सीखे. धीरे-धीरे कश्मीरी संतूर पर शिव कुमार शर्मा का हाथ बैठने लगा, तो संतूर पर शास्त्रीय संगीत बजाना शुरू हुआ, लेकिन संतूर शास्त्रीय संगीत के हिसाब से नहीं बना था.
शिव कुमार शर्मा कहते थे कि जब उनके पिता ने कहा कि अब से तुम सिर्फ़ संतूर बजाओंगे, तो वे कुछ समय के लिए सन्न रह गए, लेकिन गुरू की आज्ञा टाली नहीं जा सकती थी. शिव कुमार शर्मा ने संतूर पर काम करना शुरू किया. संतूर एक मात्र तार वाला वाद्य है, जो स्ट्राइकर से बजता है. बाकी के वाद्य या तो वायलिन या सारंगी की तरह गज से बजाए जाते हैं, या सितार की तरह मिजराब से.
पंडित जी ने संतूर को शास्त्रीय संगीत के लायक बनाने पर काफ़ी काम किया. उस पर मीड़ बजाने में काफी मेहनत लगी. कई लोगों ने शुरू में आलोचना में कहा कि इस पर शास्त्रीय संगीत नहीं बज सकता. बाद में कहा कि संतूर बजाने में क्या है एक बार ट्यून हो जाए फिर जहाँ हाथ मारो सुरीला ही लगेगा, जबकि संतूर बजाने में जिस मुद्रा में बैठना पड़ता है, वह बेहद थकाने वाली है.
खैर, उमादत्त जी ने संतूर और बेटे दोनों में जो भी देखा, शिव कुमार शर्मा और संतूर दोनों एक दूसरे का साथ पाकर अमर हो गए. कभी भी संतूर सुनिए, लगेगा पानी की फुहार के बीच संगीत बह रहा है.
शिव कुमार शर्मा ने हरि प्रसाद चौरसिया के साथ कई फिल्मों में संगीत दिया. सिलसिला, चाँदनी, डर और लम्हे जैसी फ़िल्मों का संगीत कालजयी की श्रेणी में रखा जा सकता है. हालाँकि, पंडित उमादत्त ने अपने बेटे को सिर्फ़ संतूर बजाने का आदेश दिया था, लेकिन शिव कुमार शर्मा ने गाइड फिल्म में मोह से छल किए जाए गीत के लिए तबला भी बजाया.
10 मई 2022 को पंडित जी का संतूर अमर हो गए. आने वाली नस्लों से लोग कहेंगे कि उन्होंने कश्मीर की वादियों से निकले संतूर को हिंदुस्तानी संगीत के शिखर पर पहुँचते देखा है.
अनिमेष मुखर्जी की फ़ेसबुक वॉल से।
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