डा रवि यादव
हनुमान जयंती और राम नवमी पर जिस तरह देश के विभिन्न भागो में शोभा यात्राऐं निकाली गई और यात्राओं में शामिल लोगों ने हाथों में तलवार ,रिवाल्वर, हॉकिया लहराते हुए वर्ग विशेष के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी की वह देश के सामाजिक ताने बाने को बिगाड़ने के लिए तो ज़िम्मेदार है ही जिस तरह प्रशासन ने एकतरफ़ा कार्यवाही की वह देश में क़ानून के शासन का मखौल है .
दिल्ली जहांगीरपुरी में तो यूपी के योगी मॉडल को लागू करने के लिए प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट के स्थास्थिति बनाए रखने के आदेश पर भी बुलडोज़र चला दिया. भाजपा जहाँ भी शासन में है वहाँ मुसलमानो के मन में यह डर बिठाने का प्रयास करती रही है कि यदि उन्होंने जायज़ हक़ों के लिए भी सर उठाने की कोशिश की तो उसे हिंदूवादियों के कोप का शिकार तो होना ही है, क़ानून का साथ भी नहीं मिलेगा. इससे पार्टी को तीन तरह के लाभ है - एक तो वह अपने सेडिस्ट समर्थकों को संदेश देने में सफल हो जाती है कि मुस्लिम अब अपनी औक़ात में है और दूसरा यह दावा कि उसके शासन में क़ानून व्यवस्था इतनी चुस्त दुरुस्त रहती है कि साम्प्रदायिक झगड़े नहीं होते. भाजपा अपने इस मंसूबे में अब तक सफल होती दिखाई देती है.
तीसरा महत्वपूर्ण लाभ यह है कि ओबीसी एससी एसटी का हिंदुकरण करना आसान हो जाता है. ओबीसी एससी एसटी अपने अधिकारों पर हो रहे कुठाराघात से बेख़बर इस तरह के प्रदर्शनों में बढ़ चढ़ कर न केबल भागीदार बनता है ,ज़रूरत पड़ने पर अपने “क्षत्रिय” होने को प्रमाणित करने का अवसर भी प्राप्त कर रहा है. मुसलमानों ने यद्यपि हमेशा दलित पिछड़ों का साथ दिया है मगर मुस्लिमों से नफ़रत में दलित पिछड़ा इस क़दर अंधा होता जा रहा है कि उसे निजीकरण के नुक़सान, आरक्षण के ख़ात्मे , नौकरियों के ख़ात्मे की कोई परवाह नहीं है. यही सिलसिला चलता रहा और मुस्लिमों ने दलित पिछड़ों का साथ छोड़ दिया तो हिंदूवादी भी दलित पिछड़ों को सबक़ सिखाने के लिए मुस्लिमों के साथ गठजोड़ करने में संकोच नहीं करेंगे क्योंकि कथित उच्च वर्ण को मुस्लिमों से सिर्फ़ रणनीतिक नफ़रत है वास्तविक नफ़रत इन्हीं दलित पिछड़ों से है जो पहले सामने ज़मीन पर बैठने से पूर्व अनुमति का इंतिजार करते थे अब न केवल बिना अनुमति बराबर बैठ रहे है, संवैधानिक अधिकारों का लाभ प्राप्त कर ऊँची कुर्सियों तक पहुँच रहे है. मुस्लिम सवर्णो की नौकरियाँ नहीं बाट रहे , ये दलित पिछड़े ही है जो नौकरियों में सवर्णों के एकाधिकार को तोड़ हिस्सेदारी ले रहे है . पहले भी हिंदूमहासभा - मुस्लिमलीग मिलकर सरकार चला चुके है आगे भी चला लेंगे मगर दलित पिछड़ें तब तक बहुत कुछ खो चुके होंगे.
मुस्लिम विरोध न केवल दलितों पिछड़ों और सामाजिक सौहार्द के लिए ख़तरनाक है यह लोकतंत्र को ख़त्म कर चुनी हुई तानाशाही की तरफ़ बड़ चुका है . धर्मनिरपेक्षता दलितों पिछड़ों मुस्लिमों के लिए ही नहीं इस देश के सामाजिक ढाँचे लोकतंत्र और अर्थव्यवस्था के लिए अपरिहार्य है , इसलिए कि वह मूल है. यह स्थापित सत्य है कि समृद्धि के लिए शांति आवश्यक है फिर शिक्षा अस्पताल नौकरियाँ सब हासिलात अपने आप आते है.
पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने 21 अप्रेल को “टाइम्ज़ नेटवर्क इंडिया इकोनोमिक काँन्क्लेव” में बोलते हुए देश में मुस्लिमो के प्रति बढ़ रही नफ़रत पर चिंता ज़ाहिर की है. श्री राजन ने कहा कि “इससे भारत की क्षवि एक ऐसे देश की बन रही है जो अपने सभी नागरिकों के साथ समान सम्मानपूर्ण व्यवहार नहीं करता यह लोकतंत्र के ख़िलाफ़ तो है ही अंतरराष्ट्रीय संबंधो को प्रभावित कर आर्थिक नुक़सान पहुँचाने वाला है.” समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ उन्होंने कहा कि यह केवल उपभोक्ता नहीं है जो यह तय करे कि किसको संरक्षण देना है बल्कि अंतरराष्ट्रीय सम्बंधों मे गर्मजोशी भी इस तरह की धारणाओं से तय होती है कि सरकारें अल्पसंख्यको के साथ कैसा बर्ताव करती है.
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