आलोक कुमार
रांची.बिहार सरकार की ओर से जारी अधिसूचना 11 मई 2022 तक प्रभावित है.इस तरह की अधिसूचना जारी न हो और एकीकृत बिहार के समय 1954 में मैनूवर्स फील्ड फायरिंग आर्टिलरी प्रैक्टिस एक्ट, 1938 की धारा 9 के तहत नेतरहाट पठार के 7 राजस्व ग्राम को तोपाभ्यास (तोप से गोले दागने का अभ्यास) के लिए अधिसूचित किया गया था.इसे रद्द करने की मांग को लेकर टूटूवा पानी गुमला (नेतरहाट के नजदीक) से 21 अप्रैल से पदयात्रा करके 25 अप्रैल को रांची पहुंचे.केंद्रीय जनसंघर्ष समिति के बैनर तले राजभवन के समक्ष धरना के बाद राज्यपाल श्री रमेश बैस को ज्ञापन दिया.
केंद्रीय जनसंघर्ष समिति के केंद्रीय सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर ने कहा कि पदयात्रा समाप्त हो गयी.केंद्रीय जनसंघर्ष समिति के केंद्रीय सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर ने बताया कि पदयात्री टूटूवापानी गुमला (नेतरहाट के नजदीक) से रांची राजभवन तक आए. पदयात्रा 21 अप्रैल को सुबह 7 बजे आरंभ की गयी और 25 अप्रैल को रांची पहुंच गयी. इसके बाद राजभवन के समक्ष धरना के बाद राज्यपाल को ज्ञापन दिया गया.
उन्होंने कहा कि पदयात्रा आंदोलन में सबसे बुजुर्ग साथी एमानुएल (उम्र 95 साल), मगदली कुजूर, दोमनिका मिंज, मो. खाजोमुद्दीन खान, बलराम प्रसाद साहू, रामेश्वर प्रसाद जायसवाल झंडा दिखा कर रवाना किये थे. पदयात्रा में प्रभावित क्षेत्र के करीब 200 से अधिक महिला- पुरुष शामिल थे.
पदयात्रा में शामिल प्रभावित लोगों ने गगनभेदी नारा लगाते चल रहे थे.जो टूटूवा पानी से शुरू हुआ."जान देंगे जमीन नहीं देंगे"
"जन-जन का ये नारा है जल-जंगल-जमीन हमारा है"
"नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अधिसूचना रद्द करो"
"हमर गांव में हमर राईज, दिल्ली पटना तोहर राईज"आदि नारा लगाकर बनारी, बिशुनपुर, आदर, घाघरा, टोटाम्बी, गुमला, सिसई और भरनो के बाद बेड़ो में चौथा दिन रूके.यह पदयात्रा का चौथा दिन था.बेड़ो में थोड़े विश्राम एवं जलपान के लिए रूका हैं कारवां.स्थिति प्रतिकूल होती जा रही है, जब पैरों के छाले, दोनों पैरों के मध्य घाव, जोड़ों में अथाह दर्द, ऊपर से चिलचिलाती गर्मी, फिर भी हिम्मत नहीं हारा है किसी साथी ने.
आशाएं बस इतनी है बहरी/अंधी/गूंगी बनी सरकारें सुन/देख/बोल पाएं.इसके बाद गुटुवा तालाब, कठहल मोड़, पिस्का मोड़, रातू रोड होते हुए राजभवन पहुंचे.
बीच-बीच में यह जोश बढ़ाने के कहा जाता रहा कि " हमने फिर कदम बढ़ाया है नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अधिसूचना रद्द कराने के लिए", "180 किलोमीटर का सफर भी हमारे जज्बात हिला नहीं सकते" , "रास्ते के कांटे डरा नहीं सकते, चल पड़े हैं अस्तित्व की लड़ाई के लिए","तुम्हारे लिए, अपने लिए, हमारे आने वाले पीढ़ी की लिए सैकड़ों की संख्या में","जन जन का नारा है जल जंगल जमीन हमारा है","सदियों से हैं हम आदिवासी प्राकृतिक प्रेमी", "प्राकृतिक रक्षक, हमसे हमारा घर-बार ना छीनो","तपती धरती, चिलचिलाती धूप से लड़कर आ रहे हैं पैदल","ना रुकेंगे, ना थकेंगे लगातार बढ़ते रहेंगे हम","चलो फिर उलगुलान करें हम, अस्तित्व की रक्षा के लिए ,अस्मिता को बचाने के लिए संघर्ष ,संघर्ष ,संघर्ष करते रहेंगे हम","पता है हमें पांव सूज जायेंगे, छाले पड़ जायेंगे संघर्ष के रास्ते पर तुम्हारे,
लेकिन कदम ना डगमगाएंगे","रास्तों पर अडिग चलते जायेंगे
ना रुकना तू ना थकना तू संघर्ष के रास्ते पर अविरल चलते चलना तू".
केंद्रीय जनसंघर्ष समिति के केंद्रीय सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर कहते हैं- नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज रद्द करने के लिए पिछले 31 सालों से आंदोलन चला आ रहा है. एकीकृत बिहार के समय 1954 में मैनूवर्स फील्ड फायरिंग आर्टिलरी प्रैक्टिस एक्ट, 1938 की धारा 9 के तहत नेतरहाट पठार के 7 राजस्व ग्राम को तोपाभ्यास (तोप से गोले दागने का अभ्यास) के लिए अधिसूचित किया गया था. 1991 और 1992 में तत्कालीन बिहार सरकार ने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के लिए अधिसूचना जारी की थी, जिसमें अवधि विस्तार करते हुए इसकी अवधि 1992 से 2002 तक कर दी गयी थी. इस अधिसूचना के तहत केवल अवधि का ही विस्तार नहीं किया गया, बल्कि क्षेत्र का विस्तार करते हुए 7 गांव से बढ़ाकर 245 गांव को भी अधिसूचित किया गया था. People’s Union for Democratic Rights (दिल्ली, अक्टूबर 1994) की रिपोर्ट के अनुसार सरकार की मंशा पायलट प्रोजेक्ट के तहत स्थायी विस्थापन एवं भूमि-अर्जन की योजना को आधार दिया जाना था.
केंद्रीय जनसंघर्ष समिति के केंद्रीय सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर आगे कहते है कि जनजुटान व आक्रोशित लोगों के तेवर के कारण 22 मार्च 1994 को फायरिंग अभ्यास के लिए आयी सेना को बिना अभ्यास के वापस जाने पर आंदोलनकारियों ने मजबूर कर दिया.तब से आज तक सेना नेतरहाट के क्षेत्र में तोपाभ्यास के लिए नहीं आयी है. कुजूर कहते हैं- आंदोलन के साथ ही हमने हमेशा ही बातचीत का दरवाजा खुला रखा है. हमारे इस जोरदार विरोध को देखते हुए स्थानीय प्रशासन गुमला और पलामू की पहल पर प्रशासनिक अधिकारी, सेना के अधिकारी व केंद्रीय जनसंघर्ष समिति के साथ तीन बार वार्ता हुई. वार्ता के दौरान जनसंघर्ष समिति के प्रतिनिधियों ने कहा कि समिति किसी भी तरह के फायरिंग अभ्यास को पायलट प्रोजेक्ट नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज का ही रूप मानती है. अत: समिति बिहार सरकार के द्वारा पायलट प्रोजेक्ट को विधिवत अधिसूचना प्रकाशित कर रद्द करने की मांग करती है.
उन्होंने कहा कि 1991 व 1992 की अधिसूचना के समाप्त होने के पूर्व ही तत्कालीन बिहार सरकार ने 1999 में अधिसूचना जारी कर इसका अवधि का विस्तार दे दिया था. जिसके आधार पर यह क्षेत्र 11 मई 2022 तक प्रभावित है.अब केवल 15 दिन ही बाकी है.जन संगठन को डर है कि कहीं राज्य सरकार परियोजना का अवधि का विस्तार न कर दे. क्योंकि अभी तक नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को रद्द करने की अधिसूचना राज्य सरकार द्वारा जारी नहीं की गई है.
केंद्रीय जनसंघर्ष समिति के केंद्रीय सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर कहते हैं- यह पूरा इलाका भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत आता है और यहां पेसा एक्ट 1996 भी लागू है. जिस कारण ग्राम सभाओं को अपने क्षेत्र के सामुदायिक संसाधन, जंगल, ज़मीन, नदी-नाले और अपने विकास के बारे में हर तरह के निर्णय लेने का अधिकार है. प्रभावित क्षेत्र की ग्रामसभा ने अपनी ज़मीन नहीं देने का जो निर्णय लिया है उसकी कॉपी राज्यपाल श्री रमेश बैस को समर्पित किया गया है.उनसे हमलोगों ने विनम्र आग्रह किये कि पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में ग्रामसभाओं के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करें और उसके निर्णय का सम्मान करते हुए उचित कार्यवाही करने की कृपा करें.
राज्यपाल श्री रमेश बैस महोदय से मुलाकात कर उन्हें अपनी मांग पत्र सौंपा गया.फिर लोग उम्मीदों की गठरी बांधे वापस अपने घरों को लौट गए.पर सवाल अभी भी सवाल ही हैं,
क्या झारखंड सरकार नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अधिसूचना रद्द करेगी?क्या अनुसूचित क्षेत्रों को प्रदत अधिकारों की ईमानदार व्याख्या और उसका अनुपालन होगा?
क्या ग्राम सभाओं को उसके अधिकारों से अवगत कर उन्हें मजबूत एवं स्वतंत्र बनाया जाएगा?क्या आदिवासियों के संरक्षण एवं संवर्धन की सीमाएं तय की जाएंगी?क्या आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन पर अधिकार सुनिश्चित किए जाएंगे?या फिर जैसे सबकुछ तहस नहस किया जा रहा है वो चलता रहेगा?सरकारें लैंड पूल बनाकर आदिवासियों की सामुदायिक जमीनें लूट लेंगी?आदिवासियों के हितकर कानूनों को तोड़ने मरोड़ने की साजिश चलती रहेगी?विकास का नाम ले आदिवासियों को उजाड़ने की साजिश चलती रहेगी?
आदि अनादि.मंथन कीजिएगा.
अपने जल जंगल जमीन की रक्षा के लिए 31 वर्षों से चल रही लड़ाई.जिसमे 245 आदिवासी गांवों को विस्थापित करने की बात है. उसके विरोध में मजबूरन लोग 180 किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर ताकि बहरी केंद्र सरकार की कानों तक आवाज पहुँच सके.इस दौरान बेड़ो के हमारे सामाजिक अगुवों ने देवनिष दादा की अगवाई में जोरदार स्वागत साथ ही साथ स्वादिष्ट भोजन का प्रबन्ध किया दिल से धन्यवाद. बेड़ो के सभी अगुवा साथियों को आप सभों ने जो किया उसके लिये तारीफ के शब्द कम पड़ जायेंगे.
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