शिक्षक नियुक्तियों में नियम कानून ताक पर

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शिक्षक नियुक्तियों में नियम कानून ताक पर

ओम प्रकाश सिंह

अयोध्या.  राम नगरी के डॉक्टर राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में कुलपति ने अपने लोगों की नियुक्ति के लिए रोस्टर ही बदला दिया.  कुलसचिव सहित सभी जिम्मेदार लोगों ने अपने सगे संबंधियों को नौकरी देने के लिए नियम कानून ताक पर रख दिया.  कार्य परिषद में लिफाफा खुलने के तुरंत बाद चयनित शिक्षकों को ज्वाइन भी करा दिया गया ताकि शिकायत होने पर मामले को लटकाया जा सके.  जिस प्रकार से चयन हुआ है कहा जा सकता है कि अंधा बांटे रेवड़ी फिर फिर अपने को दे. 

डॉ राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में छह अप्रैल को कार्यपरिषद की बैठक हुई.  आशंका जाहिर की जा रही थी कि छह विभागों में होने वाली शिक्षकों की नियुक्तियों में गड़बड़ी होगी.  जब लिफाफा खुला तो आशंका सच साबित हुई.  इतना ही नहीं काले कारनामों पर पर्दा डालने के लिए चयनित शिक्षकों को तुरंत ज्वाइन भी करा दिया गया.  रोज प्रेसनोट जारी करने वाले अवध विश्वविद्यालय प्रशासन ने कार्यपरिषद की बैठक का प्रेसनोट आज तक नहीं जारी किया गया.  साकेत महाविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर जनमेजय तिवारी सहित कई संभ्रांत लोगों ने राज्यपाल, मुख्यमंत्री को मेल,पत्र भेजकर कुलपति को बर्खास्त कर नियुक्तियों को निरस्त करने की मांग किया है. 


विश्वविद्यालय में हुई नियुक्तियों का सारा खेल कुलपति के ओएसडी ने किया है.  आपको बता दें कि कुलपति विश्वविद्यालय में जब नियुक्त होकर आए तो वह अपने साथ अपने खास व्यक्ति शैलेंद्र सिंह पटेल को लेकर आए थे लगभग छह महीने तक शैलेंद्र सिंह अनिधिकृत रुप से विश्वविद्यालय के तमाम गोपनीय कार्यों को देखते रहे.  फिर उनकी नियुक्ति इंजीनियरिंग विभाग में संविदा के तौर पर करके उन्हें कुलपति ने ओएसडी बना लिया.  खेल देखिए, भूगोल के विद्यार्थी रहे ओएसडी को अर्थशास्त्र विषय वाले अंबेडकर चेयर में नियमित शिक्षक की नौकरी दे दी गई. 


यही नहीं प्रौढ़ एंव सतत शिक्षा विभाग में भी उन्हें टाप करवाया गया.  इसके पीछे खेल यह था कि प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा विभाग से ओएसडी इस्तीफा देंगे तो नंबर दो पर रही, खेलकूद विभाग के प्रभारी मुकेश वर्मा की पत्नी को ज्वाइन करा दिया जाएगा.  यही हुआ भी, मुकेश वर्मा संविदा पर और पत्नी नियमित शिक्षक बन गईं.  यह भी अवध विश्वविद्यालय का इतिहास बन गया. 


कुलाधिपति द्वारा जारी दिशा निर्देशों के क्रम में सहायक प्रोफेसर के पदों पर नियुक्ति हेतु लिखित परीक्षा का आयोजन विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक द्वारा कराया जाना था.  प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा विभाग में विश्वविद्यालय के कुलसचिव व परीक्षा नियंत्रक के सगे भाई ने परीक्षा दी, किन्तु मेरिट में न आ पाने के कारण साक्षात्कार में सम्मिलित नहीं हो सके.  नियम है कि ब्लड रिलेशन का कोई शख्स अभ्यर्थी होगा तो उक्त अधिकारी ऐसे कार्यों से दूर रहेगा.  


शिकायत में यह भी आरोप है कि कुलपति के भाई की बहू भी लिखित परीक्षा में सम्मिलित हुई और गणित एवं सांख्यिकी विभाग में उसे नियुक्ति प्रदान की गई.  आइक्यूएसी निदेशक प्रो० नीलम पाठक की रिश्तेदार, डॉ० अंबेडकर चेयर की लिखित परीक्षा में सम्मिलित हुई और साक्षात्कार के उपरांत प्रतीक्षा सूची में क्रम एक पर चयनित हुई .  ऐसी स्थिति में लिखित परीक्षा का उत्तरदायित्व  विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक, कुलपति और निदेशक आइक्यूएसी के द्वारा आयोजित नहीं किया जा सकता था.  


लिखित परीक्षा के पेपर बनाने की जिम्मेदारी भी दो विभागों में चयनित विश्वविद्यालय के कुलपति के ओएसडी डॉ० शैलेंद्र सिंह पटेल के जिम्मे थी जो स्वयं लिखित परीक्षा में सम्मिलित हो रहे थे.  बाद में प्रश्नपत्रों का मॉडरेशन डॉ० नीलम पाठक के द्वारा कराया गया जिससे पूरी परीक्षा की शुचिता सवालों के घेरे में है.  एसोसिएट प्रोफेसर के पदों पर साक्षात्कार में बुलाए गए अभ्यर्थियों की स्क्रीनिंग में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा जारी यूजीसी रेगुलेशन-2018 की उपधारा- 10.0 और 13 की जमकर अवहेलना की गई और अन्हर्य अभ्यर्थियों को साक्षात्कार हेतु अर्ह ठहराया गया .  इन अभ्यर्थियों की स्क्रीनिंग में विभागाध्यक्ष एवं संकायाअध्यक्ष को शामिल नहीं किया गया और न ही कुलपति द्वारा गठित स्क्रीनिंग कमेटी के सभी सदस्यों के हस्ताक्षर कराए गए .  


इन्हीं अभ्यर्थियों में से इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में डॉ० अवध नारायण, पर्यावरण विज्ञान विभाग में डॉ० महिमा चौरसिया एवं गणित एवं सांख्यिकी विभाग में डॉ० प्रद्युम्न नारायण द्विवेदी को चयनित कर कार्यभार ग्रहण कराया गया .  यह तीनों अभ्यर्थी यूजीसी रेगुलेशन-2018 की धारा 10.0 द्वारा निर्धारित न्यूनतम 08 वर्ष की सेवा की अर्हता पूरी नहीं करते.  विज्ञापन के पूर्व, पूर्व निर्धारित रोस्टर को परिवर्तित कर नया रोस्टर लागू किया गया जो उत्तर प्रदेश आरक्षण अधिनियम- 1994 के विपरीत था.  


इसी नवनिर्मित रोस्टर के आधार पर विज्ञापन किए गए और कुछ विभागों के विज्ञापन में अपने ही द्वारा निर्धारित रोस्टर का अनुपालन नहीं किया गया.  अपने लोगों को मनचाहे विभागों में नियुक्ति देने के लिए रोस्टर में मनमाने ढंग से बदलाव किया गया .  रोस्टर समिति में शामिल लखनऊ विश्वविद्यालय के एक सहायक प्रोफेसर को प्रोफेसर दर्शाकर रोस्टर निर्धारण समिति का अध्यक्ष बना दिया गया .  इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर चयनित डॉ० अवध नारायण डॉ०अम्बेडकर चेयर और प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा विभाग में लिखित परीक्षा में शामिल हुए किन्तु साक्षात्कार हेतु अर्ह नहीं पाए गए . 


इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में ईडब्ल्यूएस कोटे में सहायक आचार्य के पद पर चयनित डॉ०प्रीती सिंह का ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र ही तथ्यों का गोपन कर बना है.  डाक्टर प्रीती सिंह कुलपति ओएसडी की अति करीबी हैं. 


भाजपा नेता डाक्टर रजनीश सिंह ने राज्यपाल को पत्र भेजकर तथ्यों के आलोक में सम्पूर्ण चयन प्रक्रिया की उच्च स्तरीय जाँच कराने व विभिन्न विभागों में हुई नियुक्तियों को रद्द करने की मांग किया है.  साथ ही साथ नवनियुक्त सभी शिक्षकों का वेतन भुगतान, जाँच होने तक स्थगित रखने एवं शेष विभागों में होने वाली शिक्षकों की नियुक्तियों पर तत्काल रोक लगाने की भी मांग किया है. 


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