तोमर ने बागियों को सम्मानित किया

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तोमर ने बागियों को सम्मानित किया

आलोक कुमार

जौरा.(मध्यप्रदेश)चंबल के बीहड़ में गुरुवार को 50 साल पुरानी वह याद ताजा हो गई, जब देश भर में खौफ के पर्याय बने 654 दस्युओं ने एक साथ आत्मसमर्पण किया था.गुरुवार को आत्मसमर्पण की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर तीन दिवसीय स्वर्ण जयंती समारोह की शुरुआत हुई, जिसमें मुख्य अतिथि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि तमाम अपमान, विरोध और उपहास के बाद भी गांधीजी ने सत्य, अहिंसा व धर्म का रास्ता नहीं छोड़ा। शांति व अहिंसा की ताकत बंदूक में नहीं है। यह ताकत त्याग, तपस्या और क्षमादान से आती है। कार्यक्रम में आए पूर्व दस्युओं ने एक तरफ समर्पण के बाद उन्हें समाज में मिले सम्मान का जिक्र किया, वहीं उस समय मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सरकारों द्वारा किए गए वादों के पूरे न किए जाने पर नाराजगी भी जताई.


देश के सबसे बड़े बागी समर्पण दिवस की वर्षगाठ मनाई जा रही है. यह वर्षगांठ समर्पण दिवस के पचास वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित है. मुरैना के जौरा के गांधी सेवा आश्रम में विशाल कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने शिरकत की तथा बागियों को सम्मानित किया.


चंबल बीहड़ डाकुओं के लिए कुख्यात रही है, तो इसी चंबल की धरती ने पूरी दुनिया को शांति व अहिंसा का संदेश दिया था, जब जौरा के गांधी सेवा आश्रम में 654 डाकुओं ने आत्मसर्पण किया था.डकैतों का यह दुनिया का सबसे बड़ा समर्पण था, जिसे 50 साल हो रही है. बागी आत्मसमर्पण की स्वर्ण जयंती को 12 से 16 अप्रैल तक मनाया जाएगा, इसमें देशभर से गांधीवादी शामिल होंगे.पत्रकारों से चर्चा करते हुए यह जानकारी सर्वोदय समाज के राष्ट्रीय संयोजक व प्रख्यात गांधीवादी राजगोपाल पीवी ने कहीं.


सर्वोदय समाज के राष्ट्रीय संयोजक राजगोपाल पीवी ने बताया, कि गांधीवादी डा. एसएन सुब्बाराव की प्रेरणा से 14 अप्रैल 1972 को जौरा में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के समक्ष 654 बागी दस्युओं ने अपने हथियार महात्मा गांधी के चित्र के समक्ष डाले थे.यह घटना पूरी दुनिया के लिए अहिंसक मूल्यों पर रचनात्मक समाज की स्थापना की ओर एक महत्वपूर्ण कदम था. कालांतर में इन सभी समर्पित बागियों और पीड़ितों के परिवारों के लिए महात्मा गांधी सेवा आश्रम के द्वारा पुनर्वास का कार्य किया गया. पत्रकार वार्ता में महात्मा गांधी सेवा आश्रम के सचिव रन सिंह परमार ने बताया कि पूरी दुनिया में हृदय परिवर्तन का यह एक अनूठा प्रयोग था. डा. सुब्बाराव की इच्छा थी कि बागियों के हृ्‌दय परिवर्तन की इस घटना के 50 वर्ष पूरे होने पर इस दिन दुनिया को जौरा से शांति व अहिंसा का चम्बल घाटी से प्रचार प्रसार हो, इसलिए बागी आत्मसमर्पण की स्वर्ण जयंती के अवसर पर 12 से 16 अप्रैल के बीच राष्ट्रीय युवा नेतृत्व शिविर, 14 अप्रैल को बागी आत्मसमर्पण दिवस और 14 अप्रैल से 16 अप्रैल के बीच अखिल भारतीय सर्वोदय समाज सम्मेलन का आयोजन किया गया है. स्वर्ण जयंती कार्यक्रम में चंदनपाल अध्यक्ष सर्व सेवा संघ, अमरनाथ भाई राष्ट्रीय युवा संगठन, जल पुरुष राजेन्द्र सिंह, पर्यावरणविद डाक्टर वंदना शिवा, डा. रजनीश अध्यक्ष गांधी दर्शन समिति राजघाट नई दिल्ली, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डा. प्रदीप शर्मा के अलावा केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, समाजवादी चिंतक मोहन प्रकाश, पूर्व सांसद सदस्य भक्त चरण दास आदि मौजूद थे.


स्वर्ण जयंती समारोह में बागी सरगना सरूसिंह, माधो सिंह, मोहर सिंह, माखन सिह उर्फ छिद्वा, हरविलास सिंह, राजस्थान के रामसिंह गिरोह के सदस्य रहे आत्मसमर्पित बागी मानसिंह, मेहरबान सिंह, गंगा सिंह, संतोष सिंह, उम्मेद सिंह, रामभरोसी, घमण्डी सिंह, बूटा सिंह, अजमेर सिंह यादव, बहादुर सिंह कुशवाहा, सोबरन सिंह, सोनेराम गौड़, रामस्वरूप सिकरवार, तथा 80 के दशक के आत्मसमर्पित दस्यु रमेश सिंह सिकरवार, बाबू सिंह, प्रभू सिंह.राजस्थान आत्मसमर्पित महिला बागी कपूरी बाई आदि को केंद्रींय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सम्मानित किया.


इस दौरान पूर्व दस्यु रमेश सिंह ने कहा कि जब बीहड़ में थे तब गोला-बारूद की बारिश हम पर होती थी और यहां फूलों की बारिश हो रही है. हमने हथियार फेंककर, अहिंसा का रास्ता अपनाकर यह पाया है, जो बंदूक से किसी को नहीं मिला. आत्मसमर्पित डकैत सोनाराम सिंह ने बताया कि समाज ने पूरा मान, सम्मान मिला, लेकिन सरकार ने जो वादा किया वह पूरा नहीं किया, उन्हें शिवपुरी जिले में जमीन का पट्टा तो मिला, पर यह जमीन आज तक नहीं मिली.पूर्व डकैत कूटा सिंह की भी यही परेशानी है और जमीन पर कब्जा नहीं मिला. 40 साल से जमीन के लिए लड़लड़ कर हार चुके कूटा सिंह जीवनयापन के लिए पट्टे की जमीन को बेचने को तैयार है, लेकिन यह बिक भी नहीं रही. उप्र से आए पूर्व डकैत रामकिशन राठौर के बेटे ओमप्रकाश ने बताया कि उनके पिता को मिली पट्टे की जमीन उप्र सरकार ने आज तक नहीं दी. वह 12 हजार रुपये महीने में सुरक्षा गार्ड की नौकरी करके परिवार पाल रहे हैं.

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