आलोक कुमार
पटना.बिहार में 70 हजार प्राथमिक और मध्य विद्यालय हैं.इनमें 1773 विद्यालयों के पास अपना भवन नहीं है.पटना जिले में ही 190 विद्यालय भवनहीन हैं, जो दूसरे विद्यालयों में चलाए जा रहे हैं.पटना क्षेत्र में 74 ऐसे विद्यालय है, जिनका अपना भवन नहीं है. इसमें 13 मध्य विद्यालय लड़कियों के हैं.ऐसे सभी विद्यालयों को मर्ज करने का निर्णय लिया गया है. प्रदेश में प्राथमिक और मध्य विद्यालयों की संख्या 70 हजार है. इनमें प्राथमिक विद्यालयों की संख्या 38 हजार और मध्य विद्यालयों की संख्या 32 हजार है. पटना में 3339 प्राथमिक और मध्य विद्यालय हैं, जिसमें 2183 प्राथमिक और 1140 मध्य विद्यालय हैं.अल्पसंख्यकों के लिए 16 मध्य विद्यालयों और 12 प्रस्वीकृत विद्यालय है.
अपनी जमीन अपना भवन का यह सपना शिक्षा विभाग 1999 से दिखा रहा है. इसके बाद भी भवनहीन विद्यालयों के लिए 23 साल से जमीन की तलाश पूरी नहीं कर सका है. 1999 में शिक्षा विभाग ने लोगों तक शिक्षा पहुंचाने के लिए प्रदेश में लगभग 20 हजार विद्यालयों बनाए थे. यहां-वहां की तर्ज पर बनाए गए विद्यालयों का निर्माण किया गया था. योजना थी कि दो-तीन साल में अपनी जमीन खोज कर स्कूल को भवन उपलब्ध कराया जा सके. लेकिन, 23 साल खत्म हो चुके है इसके बाद भी 1773 स्कूलों को अपना भवन नहीं मिला है. एक नए नियम के तहत स्कूल मर्ज करने पर कहीं एक किलोमीटर में दो-तीन विद्यालय और कहीं पर तीन से चार में एक भी विद्यालय नहीं होंगे.
पटना में लगभग 100 विद्यालयों को मर्ज किया जा चुका है.लगभग 90 विद्यालयों को मर्ज किए जाने के लिए जमीन की तलाश की जा रही है. कई विद्यालय ऐसे है जहां पर भवन की अपेक्षा लड़की संख्या काफी अधिक है. ऐसे में इनको मर्ज किए जाने पर शिक्षकों को संख्या कम पड़ जाएगी. इसको देखते हुए विद्यालयों के लिए जमीन की तलाश की जा रही है.
इस बीच शिक्षा विभाग,बिहार के प्राथमिक शिक्षा निदेशक रवि प्रकाश ने सभी जिला शिक्षा पदाधिकारियों को दिनांक 11 अप्रैल 2022 को पत्र लिखा है कि राज्य में वैसे दो या दो से अधिक विघालय जो एक ही विघालय के भवन में संचालित है उन्हें एक विघालय में सामजित कर अतिरिक्त शिक्षकों को अन्यत्र स्थानांतरित कर दें.आगे कहा गया है कि इस कार्यालय के पत्रांक 1772 दिनांक 21.12.2021,पत्रांक1533 दिनांक 19.11.2021,पत्रांक 256 दिनांक 13.03.2019,पत्रांक 1546 दिनांक 18.09.2017,पत्रांक 488 दिनांक 15.03.2018 एवं पत्रांक 880.प्रांसगिक पत्र के आलोक में 15 जिला यथा जहानाबाद, किशनगंज,पश्चिम चम्पारण, वैशाली, औरंगाबाद, सीतामढ़ी, कैमूर,जमुई, बांका, पूर्वी चम्पारण, खगड़िया, बेगूसराय, कटिहार,सहरसा एवं नवादा से प्रतिवेदन हार्ड कोपी में प्राप्त हुआ है लेकिन उसका साफ्ट कोपी उपलब्ध नहीं कराया गया है,शेष जिला से अब तक अघतन प्रतिवेदन अप्राप्त है. प्राथमिक शिक्षा निदेशक रवि प्रकाश ने निर्देश दिया है कि वैसे जिला,जिनके द्वारा प्रतिवेदन अब तक उपलब्ध नहीं कराया गया है, वे एक सप्ताह के अंदर उपलब्ध कराना सुनिश्चित करें. जिलके द्वारा हार्ड कोपी में उपलब्ध कराया गया है, वे उसका साफ्ट कोपी उपलब्ध कराना सुनिश्चित करें.
आनन्द माधव चेयरमैन, रिसर्च व मैनिफेस्टो कमेटी एवं प्रवक्ता, बिहार प्रदेश काँग्रेस कमेटी ने कहा है कि एक ओर बिहार सरकारी उच्च विद्यालय हर पंचायत में खोलनें की घोषणा सरकार कर रही है तो दूसरी ओर धीरे-धीरे सरकारी स्कूलों को बंद करनें की साजिश रच रही है.आज सुबह एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार, बिहार के 1885 प्राथमिक विद्यालयों को पिछले 1 वर्षों में बंद कर दिया गया है. जब इस संबंध में शिक्षा मंत्री से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि विद्यालयों को बंद नहीं बल्कि मर्ज किया जा रहा है.
चेयरमैन, रिसर्च विभाग व प्रवक्ता, बिहार प्रदेश काँग्रेस कमेटी, आनन्द माधव ने कहा कि यह पूरी तरह से ही भ्रामक और गैर जिम्मेदाराना बयान है.शिक्षा मंत्री शब्दजाल में जनता को उलझा रहे हैं.सरकार ने स्पष्ट रूप से समग्र शिक्षा अभियान के प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड की बैठक में 1885 विद्यालयों को बंद कर दूसरे विद्यालय में समाहित करने की बात कही है.दो दिन पूर्व प्राथमिक शिक्षा निदेशक ने भी इसी आशय में सभी जिला शिक्षा पदाधिकारियों को आदेश निर्गत किया है कि भवनहीन या भूमिहीन विद्यालयों को नजदीकी विद्यालय में समाहित करते हुए अतिरिक्त शिक्षकों को किसी अन्य विद्यालय में स्थानांतरित किया जाय.
ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर 15 सालों तक भवनहीन या भूमिहीन विद्यालय पेड़ों के नीचे या अस्थायी भवन या पंचायत भवन में चलाये ही क्यों गए? या फिर इन विद्यालयों के पास अगर भूमि या भवन ही नहीं था तो इन 15 सालों में विद्यार्थियों को इन विद्यालयों में कैसे पढ़ाया गया? क्या सरकार ने उन बच्चों के भविष्य को बर्बाद नहीं किया? सच्चाई यह है कि सरकार के पास शिक्षा को लेकर के कोई स्पष्ट नीति नहीं है. चुनाव के दौरान जब वोट लेने के बारी आती है तो हर टोले में प्राथमिक विद्यालय और हर पंचायत में उच्च विद्यालय खोलने की घोषणा कर दी जाती है. ना तो उनके लिए भूमि या भवन की व्यवस्था की जाती है और ना ही उन विद्यालयों में शिक्षकों की व्यवस्था होती है.
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने शिक्षा व्यवस्था को वोट बैंक की राजनीति के चक्कर में चौपट कर दिया है. अगर सरकार को शिक्षा व्यवस्था की चिंता होती और सही मायने में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा चाहती तो विद्यालय खोलने की घोषणा करने से पहले उनके लिए भवन और पर्याप्त संख्या में शिक्षकों की व्यवस्था करती. लेकिन सरकार तो चुनावों में वोट और तालियां बटोरने के लिए घोषणा कर देती है. उसका फलाफल यह होता है कि 10-15 साल तक भवनहीन एवं शिक्षक विहीन विद्यालय चलने के बाद उन्हें बंद करने की घोषणा करनी पड़ती है.
एक ओर तो कोरोना के कारण सरकारी स्कूल के बच्चों की दो साल पढ़ाई बंद रही और अब स्कूल बंद कर उनका भविष्य और बर्बाद कर रहे. सच यह है कि शिक्षा विभाग स्कूल विहीन शिक्षा की बात सोच रही है और धीरे धीरे उस कदम बढ़ा रही है.यह व्यवस्था निजी स्कूलों को बढ़ावा देनें की तथा सरकारी स्कूलों को और कमजोर करनें की एक सोची समझी चाल है और हम इस जाल में फँसते चले जा रहे हैं.
आनन्द माधव ने प्रश्न पूछते हुए कहा कि सरकार स्पष्ट करे कि कितनें स्कूलों को कितने समय सीमा में ये बंद करनें जा रही है.उन्होंने माँग किया कि एक भी विद्यालय बंद नहीं होनें चाहिये तथा उनके लिए उचित भूमि और भवन की व्यवस्था की जाए.अगर इस तरह से सरकारी विद्यालय को बंद करने से आने वाले भविष्य में गरीब एवं पिछड़े तबकों को शिक्षा से वंचित होना पड़ेगा.जरूरत है आज सरकारी शिक्षा तंत्र को मजबूती प्रदान करने की ना तो उसे कमजोर करने की.
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