फ़ज़ल इमाम मल्लिक
बिहार में 24 सीटों पर हुए चुनाव के नतीजों से भले एनडीए बमबम हो कि उसने 13 सीटें जीत कर बिहार में महागठबंधन को मात दे दी लेकिन सच यह है कि चुनाव के नतीजों ने उसके पैरों के नीचे से जमीन सरका दी है. पिछली बार उसके पास 21 सीटें थीं लेकिन इस बार उसे 13 सीटें पर संतोष करना पड़ा. राजद की सीटों में जरूर इजाफा हुआ है. लेकिन नतीजों ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व और फैसलों पर भी सवाल खड़ा किया है. नतीजों से पहले 22 सीटों पर जीत का दावा करने वाले तेजस्वी नतीजों के बाद प्रतिक्रिया तक देने से बचते रहे. कांग्रेस ने फिर खेल किया. उसने राजद को हाशिए पर धकेला. न सिर्फ यह कि उसने एक सीट जीती और एक पर उसके समर्थन वाले निर्दलीय उम्मीदवार ने बाजी मारी. जाहिर है कि कांग्रेस ज्यादा खुश है. उसने कुछ सीटों पर अच्छा वोट लाया, इस सच के बावजूद कि जमीनी स्तर पर उसके पास कार्यकर्ताओं का टोटा है. दरअसल इस चुनाव में पैसा ही बोला. पहले भी बोलता था और इस बार भी बोला. जिसने पैसा खर्च किया उसने अप्रत्याशित जीत दर्ज कर तमाम दलों को चौंकाया. पार्टियों का भीतरघात भी सामने आया. गठबंधन का पेंच भी कई सीटों पर नतीजों को प्रभावित कर गया.
दिलचस्प यह है कि विधान परिषद चुनाव में राजनीतिक दलों के दिग्गजों को उनके घर में ही मात मिली. तेजस्वी यादव राघोपुर से विधायक हैं लेकिन वैशाली सीट पर उनके उम्मीदवार की हार हुई. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर संजय जयसवाल और उप मुख्यमंत्री रेणु देवी चंपारण से आते हैं. इसके बावजूद वहां भाजपा की हार हुई. मुंगेर से जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह सांसद हैं इसके बावजूद मुंगेर-जमुई-लखीसराय-शेखपुरा सीट पर उनकी पार्टी के उम्मीदवार जीत नहीं पाए. भाजपा देश भर में कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देख रही है लेकिन पाकिस्तान भेजने वाले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के संसदीय क्षेत्र बेगुसराय से कांग्रेस उम्मीदवार ने जीत दर्ज कर सियासी पंडितों का चौंकाया.
संजय जायसवाल और ललन सिंह को उनके किले में मात मिली तो सवाल भी उठ रहे हैं. चंपारण (इसे पूर्वी व पश्चिमी चंपारण पढ़ें) की सियासत में पूर्व केंद्रीय मंत्री राधामोहन सिंह का भी दबदबा है लेकिन इस चुनाव में भाजपा नेताओं ने ही उन्हें एक तरह से चिढ़ाया. जाहिर है कि गुटबाजी ने एनडीए को दोनों सीटों से पैदल कर डाला. ललन सिंह के लिए हार यह जरूर सालने वाली रही. इसकी टीस वे अरसे तक महसूस करते रहेंगे. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने मुंगेर सीट पर संजय प्रसाद को उम्मीदवार बनाया था. संजय प्रसाद चकाई से विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके थे. चकाई में उन्हें निर्दलीय सुमित सिंह से हार का सामना करना पड़ा था. निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर सुमित सिंह ने जीत हासिल करने के बावजूद नीतीश कैबिनेट में जगह बनाई. विधानसभा के गणित को देखते हुए नीतीश कुमार ने सुमित सिंह को अपने पाले में कर लिया. मंत्री बनने के बावजूद सुमित सिंह ने संजय प्रसाद का विरोध नहीं छोड़ा. संजय प्रसाद और सुमित सिंह के बीच टकराव की खबरें अक्सर आती रहतीं थीं. ऐसा कहा जा रहा है कि विधान परिषद चुनाव में सुमित सिंह में संजय प्रसाद का समर्थन नहीं किया. इस वजह से संजय प्रसाद हारे. फिर ललन सिंह के लिए दूसरी परेशानी लखीसराय में थी. लखीसराय के विधायक और बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा और ललन सिंह के बीच रिश्ते जग-जाहिर हैं. विधानसभा में नीतीश कुमार और विजय कुमार सिन्हा के बीच जो कुछ हुआ उसका असर भी परिषद चुनाव पर हुआ. विधानसभा अध्यक्ष होने के बावजूद ललन सिंह के करीबी और उनके समर्थक लगातार विजय कुमार सिन्हा पर निशाना साधते रहे. शुरू में इस सीट पर कोई लड़ाई नजर नहीं आ रही थी. माना जा रहा था कि जदयू उम्मीदवार संजय प्रसाद आसानी से जीत जाएंगे. लेकिन विजय कुमार सिन्हा और उनका गुट जदयू के खिलाफ धीरे-धीरे लामबंद हुआ. संजय प्रसाद की हार में विजय सिन्हा की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता. एनडीए के अंदरूनी कलह की वजह से मुंगेर की सीट जदयू ने गंवा डाली. चुनाव से पहले एक तसवीर भी वायरल हुई. तसवीर में राजद उम्मीदवार अजय सिंह और विजय सिन्हा एक साथ मंदिर जाते हुए दिख रहे थे. जदयू के स्थानीय नेताओं ने इस तसवीर के बहाने विजय सिन्हा को निशाना बनाया. लेकिन इसका संदेश सही नहीं गया. और नतीजा सामने है. ललन सिंह को उनके किले में ही शिकस्त मिल गई. वैसे अब चर्चा इस बात की है कि देर-सवेर विजय सिन्हा को स्पीकर के पद से हटा कर मंत्री बनाया जाएगा.
जदयू उम्मीदवार की हार उस सीट पर हुई जिस सीट पर किसी ने कल्पना तक नहीं की थी. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो कैबिनेट में शामिल नीतीश कुमार के बेहद करीबी मंत्री ने भी जदयू उम्मीदवार के लिए पूरा जोर नहीं लगाया. दरअसल सियासी दबदबे को लेकर जो इबारत लिखी जानी थी, उसने जदयू की मट्टी पलीद कर दी. जदयू बनाम भाजपा ही नहीं जदयू बनाम जदयू ने भी पार्टी उम्मीदवार की आसान जीत को हार में बदल डाला. जदयू अब इस हार पर मंथन कर रही है लेकिन कई तरह के सवाल उछाले जा रहे हैं. इसी तरह के सवाल भाजपा वाले पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल से भी पूछ रहे हैं. सारण, सीवान, बेतिया, मोतिहारी और बेगुसराय में मिली करारी शिकस्त ने भाजपा को बैकफुट पर ला दिया है.
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