प्रेमकुमार मणि
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अपने देश के नाम अपने सम्बोधन में जिस तरह भावुक हो रहे थे ,उससे न केवल उस मुल्क की बल्कि तीसरी दुनिया के मुल्कों की राजनीति का अंदरूनी हाल उजागर हो रहा था. मैं उन्नीस सौ सत्तर के दशक के 'तीसरी दुनिया ' का उल्लेख कर रहा हूँ तो इस कारण कि एकबार फिर दुनिया दो गोलों में बंटती नजर आ रही है. उक्रेन मामले पर रूस और अमेरिका के कैंप अलग -अलग ध्रुवीकृत हो रहे हैं. तीस वर्षों की शीतनिष्क्रियता के बाद रूस का एकबार फिर एक पावर के रूप में उभरना कुछ मतलब रखता है. यह अलग बात है कि वैचारिक रूप से रूस आज वह नहीं है ,जो सोवियत दौर में था. लेकिन इस विषय पर अभी उलझना विषयांतर होना होगा.
इमरान खान ने अमेरिका की पोल -पट्टी खोल कर रख दी है. अपने मुल्क की पॉलिटिक्स का भी असली चेहरा दिखा दिया है. परसों 3 अप्रैल को उनकी सरकार के खिलाफ विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव ला रहा है. विपक्ष और फौजी आला अधिकारी उन्हें इस्तीफा देने की सलाह दे रहे हैं. इमरान ने घोषणा की है कि वह आख़िरी गेंद और लहू की आखिरी बूँद तक संघर्ष करेंगे. उन्होंने सीधा अमेरिका पर आरोप लगाया है कि वह मुल्क के अंदरूनी मामले में दखल दे रहा है . इमरान के अनुसार उनपर आरोप है कि मैंने रूस की यात्रा क्यों की . वह कह रहे हैं कि इस पर किसी दूसरे मुल्क को पूछने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए . अपने सम्बोधन में इमरान रोने -रोने हो रहे थे. यह किसी राजनेता का भाषण नहीं ,एक आम इंसान का भाषण लग रहा था ,जो चारों तरफ से घिर चुका है. वह बोलते ही जा रहे थे. अमेरिका के बाद नवाज शरीफ उनके निशाने पर थे. उन्होंने बतलाया नरेंद्र मोदी और वह छुप -छुप कर मिलते रहे हैं. नवाज शरीफ के भ्रष्टाचारों की फेहरिस्त का हम भारतीयों केलिए इतना ही मतलब है कि अमेरिका उसे इसलिए सत्ता में लाना चाहता है कि उसे खरीदा जाना आसान है. इमरान ने अपने जनप्रतिनिधियों के करोड़ों में होने वाली सौदेबाजी का भी जिक्र किया.
इमरान के हाव -भाव बता रहे थे कि यह उनका विदाई भाषण है. बल्कि भाषण से अधिक उसे भड़ास कहा जाना चाहिए. भारत केलिए यह चिन्ताजनक इसलिए है कि पडोस का मामला है. भारत के पक्ष में यही होगा कि पाकिस्तान में लोकतंत्र मजबूत हो. लेकिन इस्लाम या हिन्दुत्व का साइनबोर्ड लगा कर किसी भी मुल्क में लोकतंत्र मजबूत नहीं किया जा सकता. पाकिस्तान की राजनीति जबतक सेकुलर नहीं होगी, वहाँ लोकतंत्र मजबूत नहीं होगा. वहाँ जैसे ही लोकतंत्र मजबूत होगा अमेरिका या किसी को वहाँ दखल देने की हिम्मत नहीं होगी. अमेरिका पाकिस्तान की राजनीति में दखल देकर भारत को संदेश देना चाहता होगा. लेकिन भारत में अमेरिकन दाल न कभी गली है, न गलेगी.
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