हिसाम सिद्दीकी
लखनऊ! लोक सभा से इस्तीफा देकर समाजवादी पार्टी के सदर अखिलेश यादव और उनकी पार्टी के सीनियर लीडर मोहम्मद आजम खान ने वाजेह कर दिया है कि वह दोनों उत्तरप्रदेश की ही सियासत में रहेंगे और भारतीय जनता पार्टी के साथ सियासी जंग जारी रखेंगे. अखिलेश यादव पहली बार असम्बली के मेम्बर बने है. इससे पहले 2012 से 2017 तक जब वह वजीर-ए-आला थे तो एमएलए का एलक्शन जीत कर ऐवान में पहुंचने के बजाए वह एमएलसी बने थे. इस बार वह करहल हलके से जीत कर असम्बली पहुंचे हैं तो उन्होने लोक सभा से इस्तीफा देकर असम्बली में रहने का फैसला किया. उन्होने कहा है कि असम्बली में रहकर वह योगी आदित्यनाथ सरकार और भारतीय जनता पार्टी पर पूरी तरह नजर (अंकुश) रखने का काम करेंगे. अखिलेश असम्बली में रहेंगे तो जाहिर है कि ऐवान में अपनी पार्टी के लीडर वही होंगे और लीडर आफ अपोजीशन भी वही बनेंगे. लीडर आफ अपोजीशन की हैसियत से वह योगी सरकार पर सख्त नजर रखेंगे ही साथ ही अपनी पार्टी को मजबूत करने का काम भी करते रहेगे. उनके गठजोड़ में सवा सौ असम्बली मेम्बर हैं जो सरकार की नाक में दम करने के लिए काफी हैं. असम्बली में सरकार के साथ सियासी लड़ाई में अखिलेश अकेले ही नहीं हांगे उनके साथ आजम खान, शिवपाल यादव, माता प्रसाद पाण्डेय और ओम प्रकाश राजभर जैसे सीनियर और संजीदा किस्म के लीडरान भी होंगे. आजम खान पर योगी आदित्यनाथ ने भैंस मुर्गी और किताबों की चोरी समेत जो चौरासी मुकदमात दर्ज करा कर उन्हें जेल भेजा था उनमें एक के अलावा बाकी तमाम मुकदमात में उन्हें जमानत मिल चुकी है.र् आखिरी मुकदमे में भी जल्द ही उहें जमानत मिलने की उम्मीद है. सियासी माहिरीन का ख्याल है कि लोक सभा के बजाए असम्बली में रहने का अखिलेश यादव का फैसला सियासी एतबार से एक बेहतर फैसला है.
वैसे तो योगी आदित्यनाथ हुकूमत के दौरान असम्बली और विद्दान परिषद की कोई खास अहमियत नही रही है. पांच सालों में शायद कुल मिलाकर दो महीने से कम का ही एजलास (सत्र) बुलाया गया था अगर इस बार भी असम्बली एजलास बुलाने में योगी का पुराना रवैय्या ही रहा तो असम्बली के अंदर रहकर प्रदेश के लिए लड़ने का मौका अगले लीडर आफ अपोजीशन के पास शायद कम ही होगा लेकिन अगर अखिलेश यादव लीडर आफ अपोजीशन बने तो असम्बली के अंदर हां या बाहर प्रदेश के मफाद में वह ज्यादा बेहतर और असरदार तरीके से लड़ सकेंगे. योगी आदित्यनाथ का सरकार चलाने में जो तानाशाही रवैय्या रहता है उसका अच्छी तरह से मुकाबला अखिलेश यादव जैसा लीडर ही कर सकता है. अखिलेश पांच सालों तक प्रदेश की सरकार चला चुके है. उन्हें नौकरशाही की भी मुकम्मल मालूमात है. इसका भी फायदा अगले लीडर आफ अपोजीशन की हैसियत से उन्हें हासिल हो सकता है. अखिलेश के वालिद मुलायम सिंह यादव भी प्रदेश के लीडर आफ अपोजीशन रहे थे. उससे पहले वह प्रदेश के वजीर-ए-आला तो नहीं रहे थे लेकिन लीडर आफ अपोजीशन रहने की ही असल वजह थी कि 1989 में वह प्रदेश के वजीर-ए-आला बन सके थे.
असम्बली एलक्शन में भले ही समाजवादी पार्टी को हरा दिया हो और अखिलेश की अपनी पार्टी के एक सौ ग्यारह मेम्बरान ही जीत कर असम्बली पहुंचे हों उन्होने बेखौफ होकर इस एलक्शन में हुई बेईमानियांं पर उंगली उठाई हैं. उन्होने अपनी पार्टी के लोगों की हौसलाअफजाई करते हुए कहा कि हम यह एलक्शन हारे नहीं हैं हमें हराया गया है. इसके बावजूद हमारी सीटों में तीनगुना इजाफा हुआ है और दस फीसद से ज्यादा वोटों में भी इजाफा हुआ है. इस किस्म का बयान देकर अखिलेश यादव ने हालिया एलक्शन के फौरन बाद अगले 2027 के एलक्शन की तैयारी अभी से शुरू कर दी है. इतना तो तय समझा जा रहा है कि अगर अखिलेश यादव ने एलक्शन मुहिम की तरह ही काम और इंतखाबी मुहिम जारी रखी तो 2024 के लोक सभा एलक्शन में भी वह वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी के लिए उत्तरप्रदेश से एक बड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं.
भारतीय जनता पार्टी ने असम्बली एलक्शन जीत लिया या लूट लिया इसपर उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर हर समाज में बहस चल रही है. समाजवादी पार्टी के हामियों और लीडरान को यह शिकायत है कि इस एलक्शन में एडमिनिस्ट्रेशन के जरिए बड़े पैमाने पर बेईमानी कराई गई है और एलक्शन कमीशन ने भी डायरेक्ट और इनडायरेक्ट तरीके से बीजेपी का ही साथ दिया है. ऐसे हालात में अखिलेश यादव के लिए अपने हामियों को मजबूती के साथ मुत्तहिद करने में आसानी होगी. इसका असर 2024 के लोक सभा एलक्शन में भी दिख सकता है. कुल मिलकार आने वाले दिनों में्र उत्तरप्रदेश असम्बली का एजलास भी काफी बदला-बदला सा नजर आने वाला है.जदीद मरकज़
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