अमिताभ श्रीवास्तव
हिंदी पट्टी के आम वोटर का मोदी पर भरोसा आठ साल बाद भी जस का तस क़ायम है. जन धन योजना से लेकर मुफ़्त राशन जैसी योजनाओं के जरिये गरीब , संसाधनहीन आबादी को लाभार्थी वर्ग में तब्दील करके एक बड़ी संख्या वाला वफ़ादार वोटर समुदाय खड़ा करने का काम उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बीजेपी की दोबारा जीत का आधार बना है. महिला वोटर के इसमें अतिरिक्त जुड़ाव ने जीत को मज़बूती दी है.
योगी आदित्यनाथ बीजेपी में मोदी के बाद दूसरे ऐसे तगड़े नेता बन कर उभरे हैं जो कट्टर, सख़्त तेवरों के साथ हिंदुत्ववादी ध्रुवीकरण का एजेंडा मज़बूती से लागू कर सकते हैं, यानी कट्टर हिंदू वोटर की भाषा में कहें तो मुसलमानों को टाइट रख सकते हैं. शहरी मध्यवर्ग में योगी की लोकप्रियता बढ़ने का यह एक प्रमुख कारण है. बुलडोज़र उनकी दबंगई का एक प्रतीक बना है. इसका असर यह होगा कि योगी अब उत्तर प्रदेश की राजनीति में मज़बूत होने के साथ साथ बीजेपी की केंद्रीय राजनीति में भी महत्वपूर्ण चेहरा बन कर उभरेंगे. मुमकिन है अमित शाह से भी ज्यादा . हालांकि, इसका यह मतलब क़तई नहीं कि योगी केंद्र में मंत्री बनने जा रहे हैं. संगठन में उनका क़द बढ़ना तय है. हिंदुत्व के पोस्टर ब्वाय तो योगी हैं ही.
अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में बीजेपी का सबसे मज़बूत प्रतिपक्ष बन कर उभरे हैं. उन्होंने अकेले दम पर समाजवादी पार्टी की सीटों की संख्या दहाई से सैकड़ा पार पहुँचाई है . बीजेपी से यह चुनाव जीत कर सत्ता में वापसी भी कर सकते थे अगर विपक्ष के नेता के तौर पर 2017 से लगातार मेहनत कर रहे होते. उन्होंने अपने आलस्य, मनमौजीपने और अकड़ की क़ीमत चुकाई है जो उन्हें लंबे समय तक परेशान करेगी.
अखिलेश के गठबंधनों का फ़ायदा उन्हें नहीं मिला है. पश्चिम उत्तर प्रदेश में बीजेपी का बहुत बढ़िया प्रदर्शन बताता है कि जयंत चौधरी से हाथ मिलाने का फ़ायदा नहीं हुआ.
मायावती दलित राजनीति के एक नेता के तौर पर अब पूरी तरह निष्प्रभावी और अप्रासंगिक हो चुकी हैं. चुनाव लड़ने में निष्क्रियता की वजह से बहुजन समाज पार्टी का काफी वोट बीजेपी के खाते में गया है.
कांग्रेस यूपी में कुछ कर नहीं पाई, पंजाब गँवा दिया, उत्तराखंड में लौट नहीं पाई. सिद्धू जैसे भस्मासुर को सिर चढ़ा कर नेतृत्व ने कुल्हाड़ी पर पैर दे मारा . नतीजा सामने है.अब विपक्ष की गोलबंदी में कांग्रेस की साख और आवाज़ पहले से भी ज्यादा कमजोर होगी.
पंजाब जीतकर अरविंद केजरीवाल का स्टारडम विपक्ष में बहुत मज़बूत हुआ है. आम आदमी पार्टी इकलौता क्षेत्रीय दल बन गया है जो दो जगह सरकार बना सका है. केजरीवाल मोदी की ही शैली में राजनीति करते हैं , लोकप्रियता का मॉडल भी वही है, नेतृत्व का तरीक़ा भी वही है. मोदी के खिलाफ चुनाव भी लड़ चुके हैं.
बीजेपी की अजेयता जिस ध्रुवीकरण वाले नैरेटिव, अकूत संसाधन, विस्तृत संगठन, प्रचार तंत्र और हर क़ीमत पर चुनाव जीतने के जुनून , ज़मीनी मेहनत की वजह से क़ायम हुई है, उसको विपक्ष अपने कमजोर संगठन, सुस्ती, बिखराव, कम मेहनत और किसी मज़बूत वैकल्पिक नैरेटिव की जगह तात्कालिक चुनावी प्रोग्रामिंग से न काट सकता है, न जीत सकता है.
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