कैबिनेट मंत्री मुकेश सहनी हैं पसोपेश में

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कैबिनेट मंत्री मुकेश सहनी हैं पसोपेश में

आलोक कुमार

पटना.दो बड़ी पार्टियो के बीच फंस कर छोटी पार्टियों का क्या हाल होता है ये भला चिराग पासवान और मुकेश सहनी से बेहतर कौन बता सकता है?चिराग दरकिनार हैं तो मुकेश को कर दिया जाएंगा.खुद को सन ऑफ मल्लाह (नाविक) कहने वाले मुकेश साहनी 8वीं पास हैं. वे बॉलीवुड में इवेंट मैनेजमेंट और हिंदी फिल्मों के लिए सेट डिजायन करते थे. उन्होंने  'देवदास' और 'बजरंगी भाईजान' जैसी फिल्मों के लिए डिजायन का काम किया था, जिससे वो काफी लोकप्रिय हुए थे. उनकी खुद की कंपनी हैं, जिसका नाम मुकेश सिनेवर्ल्ड प्राइवेट लिमिटेड है.इस कंपनी को चलाने के लिए उन्होंने अपने कई रिश्तेदारों को रखा है, ताकि वह अपने राजनीतिक सपने को पूरा कर सकें.इन दिनों पसोपेश में है.पार्टी के विधायक भी साथ देने के मूड में नहीं हैं.


बता दें कि गत वर्ष बिहार विधान परिषद में दो सीटों पर चुनाव हुआ.उसमें बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के अध्यक्ष मुकेश सहनी निर्विरोध चुने गये थे.उसमें बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन का कार्यकाल चार साल तक का था, जबकि मुकेश सहनी को महज डेढ़ साल का एमएलसी रहने वाली सीट दी गयी. मुकेश सहनी 6 साल के कार्यकाल की आस लगाए बैठे थे, लेकिन अब जुलाई 2022 में उन्हें फिर से उच्च सदन पहुंचने के लिए मशक्कत करनी पड़ेगी. 


मालूम हो कि बिहार में बीजेपी नेता सुशील मोदी के राज्यसभा सदस्य और विनोद नारायण झा के विधानसभा सदस्य चुने जाने के बाद ये सीटें खाली हुई थीं. सुशील मोदी का कार्यकाल चार साल का बाकी है जबकि विनोद नारायण झा का कार्यकाल डेढ़ साल का ही बचा था. ऐसे में सुशील मोदी की सीट पर बीजेपी ने अपने नेता शाहनवाज हुसैन को प्रत्याशी बनाया है जबकि विनोद झा की सीट सहयोगी वीआईपी के अध्यक्ष मुकेश सहनी की झोली में गई है. हालांकि, बीजेपी के इस ऑफर को पहले मुकेश सहनी ने स्वीकार करने से मना कर दिया था.विनोद नारायण झा का कार्यकाल 21 जुलाई 2022 में खत्म हो जाएगा, लिहाजा मुकेश सहनी इस सीट से चुने जाने के बजाय 6 साल के कार्यकाल की सीट तलाश रहे थे. 


वहीं मुकेश सहनी राज्यपाल कोटे से मनोनयन वाली 12 सीटों में से एक सीट पर अपनी हिस्सेदारी चाहते थे, लेकिन बीजेपी उन्हें राज्यपाल कोटे से विधान परिषद में भेजने को राजी नहीं हुई.यह इसलिए किया गया कि मुकेश सहनी अपने सियासी करियर में कई बार पाला बदल चुके हैं. मुकेश सहनी ने 2013 में बिहार की सिसायत में कदम रखा था और 2014 के लोकसभा और 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का समर्थन किया था. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले मुकेश सहनी ने महागठबंधन का दामन थाम लिया था. 2020 के विधानसभा चुनाव में भी उनके आरजेडी के साथ मिलकर लड़ने की संभावना थी, लेकिन सीट बंटवारे को लेकर हुए मतभेद के चलते वो महागठबंधन से अलग हो गए और एनडीए में शामिल हो गए.इस समय यूपी में वीआईपी चुनाव लड़ रहा है.वहां बीजेपी के समीकरण खराब करने में तुले हैं.


मालूम हो कि विधानसभा चुनाव में मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी को बीजेपी ने अपने कोटे से 11 सीटें दी थी और एक विधान परिषद सीट देने का वादा किया था. चुनाव में वीआईपी के चार विधायक जीतकर आए और मुकेश सहनी को कैबिनेट में जगह दी गई. हालांकि, बिहार में इस बार जनादेश ऐसा आया है कि एनडीए और महागठबंधन के बीच सीटों का बहुत ज्यादा फैसला नहीं है. ऐसे में मुकेश सहनी कोई सियासी पैंतरा न दिखा सकें, इसके लिए बीजेपी उन्हें साधकर रखना चाहती है. माना जाता है कि इसीलिए उन्हें महज डेढ़ साल के कार्यकाल के लिए भेजा है ताकि आगे किसी तरह की कोई सियासी मुश्किल खड़ी न कर सके. 


छह साल के कार्यकाल के बजाय डेढ़ साल के लिए एमएलसी बनाया है ताकि एनडीए का साथ छोड़कर न जा सकें.

6 स्टैंड रोड का बंगला वीआईपी चीफ मुकेश सहनी  के कारण इन दिनों फिर से चर्चा में है. मंत्रियों के लिए 6 स्टैंड रोड का बंगला शुभ नहीं माना जा रहा है. इसके कारण भी हैं. महागठबंधन की सरकार में यह बंगला आलोक मेहता को दिया गया था लेकिन वह सरकार अधिक दिनों तक नहीं चली, ऐसे में उनको अपना मंत्री पद गंवाना पड़ा था. उनसे पहले जेडीयू कोटे की समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा इसी आवास में रहा करती थीं लेकिन मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड के कारण उनको इस्तीफा देना पड़ा था. उनसे पहले अवधेश कुशवाहा भी इसी बंगला में रहा करते थे लेकिन विवादों के कारण ही उन्हें भी मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. वह भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए थे.


विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के अध्यक्ष और मंत्री मुकेश समेत कुल सात एमएलसी की विधानपरिषद सदस्यता इस साल 21 जुलाई को खत्म हो जाएगी. ये सभी निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए थे. साहनी के अलावा, मोहम्मद कमर आलम, गुलाम रसूल, रणविजय कुमार सिंह, सी पी और रोजिना नाजीश और अर्जुन सहनी JDU से हैं.जहां रोजिना और मुकेश पिछले साल सितंबर और जनवरी में क्रमश: उपचुनावों में चुने गए थे, वहीं कमर, गुलाम, रणविजय, सिन्हा और अर्जुन सहनी जुलाई 2016 में चुने गए थे.


अब अगर अगर बीजेपी सहयोगी मुकेश सहनी के लिए एक सीट बचाती है, तो उसे केवल दो सीटें मिलेंगी। यानि कुल मिलाकर मंत्री मुकेश सहनी की किस्मत अब बीजेपी की दानवीरता की उम्मीद पर टिकी है.VIP वैसे तो NDA में 4 सीटों के साथ होने का दम दिखाती आई है लेकिन अपने मुखिया के मामले में ही पार्टी के हाथ तंग हैं. ऐसे में बीजेपी ही मुकेश सहनी के लिए पहली और आखिरी उम्मीद है.


इन अपेक्षित रिक्तियों को भरने के लिए चुनाव आयोग के मई या जून में द्विवार्षिक चुनाव होने की उम्मीद है. संभावित उम्मीदवारों ने अपने-अपने पार्टी के उम्मीदवार बनने के लिए पहले से ही पैरवी शुरू कर दी है. विधायक ही विधानसभा क्षेत्रों से एमएलसी का चुनाव करते हैं. राज्य परिषद के कुल 27 सदस्य विधानसभा क्षेत्रों से चुने जाते हैं. उनमें से 11 की सदस्यता 6 मई, 2024 को और बाकी की नौ 28 जून, 2026 को खत्म हो जाएगी.

नियमों के मुताबिक विधानसभा क्षेत्रों से एक एमएलसी का चुनाव करने के लिए कम से कम 31 विधायकों के वोटों की जरूरत होगी. राज्य विधानसभा में पार्टी की मौजूदा स्थिति के अनुसार NDA के 127 सदस्य चार सीटें जीत सकते हैं, जबकि बाकी तीन विपक्षी महागठबंधन में जाएंगे.


दरअसल, मुकेश सहनी अपने सियासी करियर में कई बार पाला बदल चुके हैं. मुकेश सहनी ने 2013 में बिहार की सिसायत में कदम रखा था और 2014 के लोकसभा और 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का समर्थन किया था. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले मुकेश सहनी ने महागठबंधन का दामन थाम लिया था. 2020 के विधानसभा चुनाव में भी उनके आरजेडी के साथ मिलकर लड़ने की संभावना थी, लेकिन सीट बंटवारे को लेकर हुए मतभेद के चलते वो महागठबंधन से अलग हो गए और एनडीए में शामिल हो गए. 


मुकेश सहनी एनडीए के सहयोगी होने के नाते नीतीश सरकार में इसके लिए उन्हें बीजेपी के सहयोगी की अवश्यता होगी. माना जाता है कि बीजेपी ने इसीलिए उन्हें छह साल के कार्यकाल के बजाय डेढ़ साल के लिए एमएलसी बनाया है ताकि एनडीए का साथ छोड़कर न जा सकें.


यूपी विधानसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी VIP सुप्रीमो मुकेश सहनी को लेकर कड़े फैसले ले सकती है.  उन्हें बिहार मंत्री परिषद से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में  मुकेश सहनी के मुखर विरोध और बार-बार हमले से भाजपा पसोपेश में है. मुकेश सहनी की पार्टी VIP उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में लोगों से अपील कर रही है कि  भाजपा को वोट नहीं दें. विभिन्न समाचार पत्रों में विज्ञापन देकर मुकेश सहनी ने कमल छाप पर वोट नहीं डालने की अपील की है.कई बड़े समाचार पत्रों में छपे विज्ञापन में मुकेश सहनी ने कहा है, 'हम निषादों की ताकत दिखा देंगे और कमल को खिलने नहीं देंगे.'



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