गोवा में कांग्रेस कदम फूंक-फूंक कर रख रही है

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गोवा में कांग्रेस कदम फूंक-फूंक कर रख रही है

आलोक कुमार

पणजी.अजीब दास्तां है गोवा में.गोवा में कांग्रेस कदम फूंक-फूंक कर रख रही है. कांग्रेस पिछले घटनाक्रमों से सबक ले रही है.कभी जो कांग्रेस के अपने थे. जो पार्टी के काम में जी-जान से जुटे रहते थे.बहरहाल, पार्टी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है. कांग्रेस विधानसभा चुनाव के उम्मीदवारों को मंदिर, दरगाह और चर्च ले गई. यहां प्रत्याशियों को शपथ दिलाई गई कि चुनाव जीतने के बाद वे पार्टी नहीं छोड़ेंगे. बता दें कि 2017 से अब तक 17 में से 15 विधायक कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए हैं. कांग्रेस इस अतीत को दोहराना नहीं चाहती है, इसलिए वे अपने 36 उम्मीदवारों को महालक्ष्मी मंदिर, बम्बोलिम क्रॉस और बेटिन मस्जिद में ले गई थी.

सीनियर नेता और कांग्रेस विधायक दिगंबर कामत ने कहा कि हमने कुल मिलाकर जनता के मन में जो भी शंकाएं हैं उन्हें दूर करने की कोशिश की है कि कांग्रेस इस धारणा को लेकर बहुत गंभीर है. कुछ राजनेता कह रहे हैं कि कांग्रेस के विधायकों को चुनने का कोई फायदा नहीं है, वे दूसरी पार्टियों में जाएंगे. ये वही नेता हैं जो हमारे विधायकों को लूट रहे हैं. यदि कोई बेटा माता-पिता को छोड़ देता है, तो बेटा और माता-पिता दोनों जिम्मेदार होते हैं. हमारे विधायकों को शामिल करने वाली पार्टियां भी इसके लिए जिम्मेदार हैं. 


कांग्रेस ने कहा कि उसके सभी उम्मीदवारों को शपथ दिलाई गई, क्योंकि यह धारणा बनाई जा रही थी कि कांग्रेस को वोट भाजपा को वोट है. हाल के दिनों में दिल्ली के सीएम और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल और एआईटीसी (ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस) के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने इसी तरह की टिप्पणी करते हुए कहा कि कांग्रेस को वोट देना बीजेपी को वोट देने जैसा है.


कामत ने कहा कि हमें उन राजनेताओं पर और अधिक आक्रामक होना होगा जो हमारे लोगों को रुपए का लालच दे रहे हैं, उन्हें खरीद रहे हैं. कामत ने कहा कि गोवा बिक्री के लिए नहीं है. इसलिए हमने तय किया कि हम भगवान की उपस्थिति में शपथ लेंगे और शपथ दिलाएंगे. कम से कम गोवा के लोग भगवान से डरने वाले हैं. हमें किसी भी धर्म के बिना ईश्वर में पूर्ण विश्वास है. गोवा के लोगों में सांप्रदायिक सौहार्द है और शुरू से ही समान नागरिक संहिता का पालन करते हैं.


हम कांग्रेस उम्मीदवार प्रतिज्ञा करते हैं कि एक बार निर्वाचित होने के बाद अगले पांच साल हम कांग्रेस के साथ रहेंगे और लोगों की भलाई के लिए काम करेंगे. विपक्ष ने जो भी ऑफर दिया है. हम कांग्रेस को किसी कीमत पर नहीं छोड़ेंगे. बता दें कि महाराष्ट्र में जब 2019 में शिवसेना, कांग्रेस और राकांपा के बीच महा विकास अघाड़ी का गठन हुआ, तो तीनों दलों के विधायकों ने इसी तर्ज पर समर्थन का संकल्प लिया था.


इस बीच दक्षिण दिल्ली में अतिक्रमण के कारण पिछले साल एक चर्च को गिरा दिया गया था. यह मामला गोवा चुनाव में आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के बीच चुनावी अखाड़ा बन गया है. यह चर्च फरीदावा के पादरी के नियंत्रण में था. पिछले साल जुलाई में चर्च के एक हिस्से को कथित तौर पर अतिक्रमण के कारण गिराए जाने का मामला आया था. हालांकि उस समय भी यह मामला गोवा चुनाव में तूल पकड़ लिया था लेकिन अब सात महीने बाद इस मामले ने फिर से राजनीति शुरू हो गई है. दक्षिण गोवा के बेनौलिम निर्वाचन क्षेत्र में यह मुद्दा दो उम्मीदवारों के बीच अखाड़ा बन गया है.


ट्रांसफॉर्मिंग वेलिम का नारा बुलंद करने वाले सेवियो रोड्रिग्स कहते हैं कि मुझे जमीन पर बैठना अच्छा लगता है. जमीन पर बैठकर वेलिम निर्वाचन क्षेत्र में अपने परिवार की महिलाओं से बात कर रहे हैं.लोग एक स्वर से सेवियो रॉड्रिग्स को वोट देने का मन बना लिये हैं और ऐसा करके वेलिम में शिक्षा में परिवर्तन को अनलॉक करें.

उनके पास शिक्षा क्षेत्र और कौशल विकास के लिए अच्छी योजनाएं हैं जो युवाओं और उम्मीदवारों की मदद करेंगी. गुड लक सावियो.


 बताते चले कि राजनीति में ईसाइयों का भी अपना महत्व रहता है. गोवा की आबादी में 25.10 प्रतिशत ईसाई समुदाय है जबकि 66.08 प्रतिशत के आसपास हिंदू समुदाय है. चुनावी नजरिए से देखें तो ईसाई समुदाय का वोट नतीजों में साफ तौर पर बड़ा फर्क ला सकता है. यही कारण है कि 2022 के चुनाव से पहले गोवा में चर्च की राजनीति खूब हो रही है. राजनीतिक दल चर्चों के जरिए ईसाई समुदाय को अपने पाले में करने की कोशिश कर रहे हैं.

गोवा की 40 विधानसभाओं में से 10 पर कैथोलिक समुदाय का बोलबाला है. ऐसे में किसी भी दल के लिए यह समाज काफी अहम होता है. यही कारण है कि भाजपा के साथ-साथ तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने भी इस समुदाय को साधने की कोशिश शुरू कर दी है. कैथोलिक समाज को भाजपा के साथ जोड़ने में मनोहर पर्रिकर ने अहम भूमिका निभाई थी. उससे पहले यह समाज कांग्रेस के साथ था जिसकी वजह से पार्टी काफी दिनों तक राज्य में सत्ता में रही थी. माना जाता है कि मतदाताओं के मार्गदर्शन में चर्च की अहम भूमिका होती है. यही कारण है कि गोवा में राजनेता समय-समय पर चर्च का दौरा करते रहते हैं. लोगों को बेरोजगारी, मंदी और विकास नहीं होने को लेकर विपक्ष अपने पाले में करने की कोशिश कर रहा है. वहीं भाजपा लगातार अपने कामकाज का रिपोर्ट दे रही है. वर्तमान में देखें तो भाजपा हिंदुत्व के मुद्दे को आगे करके चुनाव लड़ रही है. ऐसे में गोवा में भी इसका असर साफ तौर पर देखने को मिल सकता है. फिलहाल मनोहर पर्रिकर जैसे नेता भी भाजपा के साथ नहीं है जो ईसाइयों को उसके पक्ष में लाने में मदद कर सकें. हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि आखिर गोवा के क्रिश्चिन मतदाता इस बार किसके पक्ष में जाते हैं?

हर चर्च का एक राजनीतिक रुझान होता है. चर्च में लोगों को जो दिशा निर्देश दिए जाते हैं उसमें किसी भी प्रत्याशी या राजनीतिक पार्टी का नाम नहीं लिया जाता. काफी कुछ लोगों की समझ पर छोड़ दिया जाता है, लेकिन कई स्थानीय गिरिजाघरों में कुछ फादर ऐसे भी होते हैं जो पार्टी का नाम नहीं लेते लेकिन प्रत्याशियों का खुलेआम समर्थन करते हैं. ऐसे में राजनीतिक दल इन फादर से मिलकर इन्हें अपनी तरफ करने की कोशिश करते हैं.

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