लता मंगेशकर की चोटी

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लता मंगेशकर की चोटी

हरि मृदुल

लता मंगेशकर गा रही थीं और क्या खूब गा रही थीं….मेरा उनके गाने पर कोई ध्यान नहीं था, उनकी चोटी पर था. चोटी लंबी थी. बड़े जतन से गुंथी हुई. लेकिन यह किसी हीरोइन की लाल परांदेवाली चोटी नहीं थी. परंपरा का अनुसरण करती कैसी तो शालीन छबि सामने रख रही थी यह चोटी. लता मंगेशकर जब कभी गाते-गाते अचानक मुड़कर संगीतकारों की तरफ देखने लगतीं, तो उनकी यह चोटी भी उनका अनुसरण करती.

लता मंगेशकर अपने पुराने गाने गा रही थीं और पुरानी यादों में खो जा रही थीं. उन्हें अपने गीतों के मुखड़े और अंतरे के बीच के अवकाश में पता नहीं क्या-क्या याद आ रहा था. कई बार लगता था कि वह गाते हुए अभिनय भी कर रही हैं. जिस हीरोइन पर उस गाने को फिल्माया गया था, वह बारंबार सामने आ जा रही थी. वह दृश्य सामने आ रहा था, जिस पर हीरोइन को लता जी की आवाज उधार लेने की जरूरत पड़ी थी. कई बार अंतरा गाने से पहले वह युवा साजिंदों को देखने लगतीं और याद करतीं उन साजिंदों को, जिन्होंने आधी शताब्दी पहले इन गानों की रिकॉर्डिंग के समय अपनी जान लगा दी थी और अनोखा परिणाम दिया था. कई बार ऐसा भी महसूस होता कि वह उन गीतकारों को याद कर रही हैं, जिन्होंने इन्हें लिखा. जिनके बोल अपनी धुन खुद-ब-खुद बनाते चले गए और संगीत का साथ मिलते ही मानो मूर्तिमान ही हो गए. वे बहुत विनम्र गीतकार थे और तुलनात्मक रूप से गरीब भी थे. गाते समय लता जी की मुखाकृति देखकर लगता कि संभवत: वह उन गीतकारों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर रही हैं.  

वह एक बड़ा चैरिटी कार्यक्रम था, जिसमें फिल्म इंडस्ट्री के तमाम बड़े गायकों और गायिकाओं के साथ विशेष रूप से लता मंगेशकर को भी आमंत्रित किया गया था. मुझे लगता है कि मीडिया का इतना बड़ा जमावड़ा इसलिए लगा हुआ था कि लता जी भी इस कार्यक्रम में गानेवाली थीं. मीडिया ही क्या, आम संगीतप्रेमियों की भी बड़ी उत्साहजनक उपस्थिति थी. भारी भीड़ थी. जहां हम पत्रकारों को बैठाया गया था, वहां से स्टेज ज्यादा दूर नहीं था. लेकिन गायक या गायिका एक अलग ही कोण से दिखाई दे रहे थे वहां से. मीडियाकर्मियों को थोड़ी दिक्कत महसूस हो रहा थी, लेकिन मुझे तो अपनी यह सीट अपूर्व आनंद दे रही थी.

शुरुआत में बॉलिवुड के नए गायक आए और फिर कई सुपरिचित गायक. सभी ने समां बांधा. लेकिन जब लता मंगेशकर आईं, तो लोग अपनी जगह खड़े हो गए. तालियों की गड़गड़ाहट थी कि थमने का नाम नहीं ले रही थी. इसके बाद शुरू हुआ लता जी का गायन. सब बड़ी तन्मयता से सुन रहे थे, लेकिन मैं कहीं और ही था. अचानक मुझे महसूस हुआ कि मैं तो उनके गाने सुन ही नहीं रहा हूं. पता नहीं क्यों, मेरा ध्यान तो लता जी की चोटी पर है….

लता जी गा रही थीं. बीच-बीच में वह बड़े कृतज्ञता भाव से साजिंदों की ओर देखती थीं. साजिंदे उन्हें खुद को देखते देख अतिरिक्त उत्साह में आ जाते. वे धन्य महसूस करते कि उन्हें बजाते हुए लता मंगेशकर देख रही हैं- महानतम गायिका लता मंगेशकर. वाकई यह दिन उन साजिंदों के लिए ऐतिहासिक था और मरते दम तक उन्हें याद रहनेवाला था. लता जी को गाते देख नहीं लगता था कि वह पिचहत्तर पार हो चुकी हैं. उनकी आवाज में वही लोच थी और वही खनक महसूस हो रही थी, जो पैंतीस की उम्र में थी. लेकिन मेरा ध्यान तो उनकी चोटी पर था….

मुझे बार-बार लग रहा था कि वह पिचहत्तर पार की उम्रदराज महिला नहीं हैं, बल्कि पंद्रह साल की किशोरी हैं. वह किशोरी, जिसकी मां ने अभी कुछ देर पहले ही उसकी चोटी बनाई है और फिर स्टेज पर भेज दिया है. स्टेज पर वह पूरे आत्मविश्वास से खड़ी है और अपनी लहराती चोटी को महसूस कर रही है. उसे लग रहा है कि लोग गायकी के साथ-साथ उसकी चोटी को भी देख रहे हैं. चोटी खूबसूरत है, इसलिए गायकी भी खूबसूरत है. यही वजह है कि वह गायकी से ज्यादा अपनी चोटी को देखकर मुदित है. वह गजब की प्रस्तुति दे रही है. हौसला बढ़ाती मां भी सामने ही बैठी है….

तभी मुझे लगा कि अब लता जी मां पर अपना कोई प्रसिद्ध गाना सुनाएंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. दरअसल उन्हें गिने-चुने गाने ही सुनाने थे और वह अपनी प्रस्तुति दे चुकी थीं. जब फिर से तालियों की गड़गड़ाहट सुनी, तो मानो मेरी तंद्रा टूटी. मुझे याद आया कि मैं इस आयोजन के लिए खास तौर पर कैमरा लेकर आया था, जो मैंने अभी बैग से निकाला ही नहीं. जब मैंने बैग में कैमरा रखा था, तभी सोचा था कि मैं लता जी की गाते हुए दसियों फोटो निकालूंगा. यह मेरे लिए एक ऐतिहासिक धरोहर होगी. लेकिन मैं भूल गया. मैंने देखा कि स्टेज पर अब भी लता जी मौजूद थीं, लेकिन वह माइक के सामने से हट चुकी थीं. वह विदा लेते हुए बस मुड़ने ही जा रही थीं कि मैंने फौरन अपने बैग से कैमरा निकाला और तेजी से चलाना शुरू कर दिया. क्लिक… क्लिक… क्लिक….

मेरी पहली क्लिक के समय तक लता जी पूरी तरह मुड़ चुकी थीं, यही वजह है कि जो स्नैप मुझे मिला, उसमें लौटती हुई लता जी थीं. उनका चेहरा आंशिक ही दिख रहा था, लेकिन बड़े जतन से गुंथी हुई चोटी अवश्य दिखाई दे रही थी. उस कैमरे से खींचे हुए लता जी के कितने ही फोटो मेरे पास हैं, हर फोटो में उनकी चोटी ही प्रमुखता से दिख रही है. हालांकि यह मेरा नसीब था कि कुल पल बाद ही उनका चेहरा मेरे कैमरे के सामने था. बस थोड़ी देर के लिए. दरअसल वह पोडियम में गीतों की अपनी डायरी भूल गई थीं, उसे लेने ही पलटी थीं. इसी का फायदा उठाते हुए मैंने कुछ और स्नैप ले लिए थे. तो उस दिन के दसियों फोटो मेरे पास हैं, जिन्हें मैं फुर्सत मिलने पर जब-तब देखता रहता हूं. लेकिन आप आश्चर्य करेंगे कि इन तस्वीरों को बारंबार देखने के बावजूद अब मुझे कुछ और याद नहीं आता. सिर्फ लता जी के गाने ही याद आते हैं. एक से एक नायाब गाने. वे गाने, जो लता जी ने उस ढलती शाम उस चैरिटी शो के लिए गाए थे.साभार हरि मृदुल के फ़ेसबुक पेज से 


 


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