डा रवि यादव
सीधी चुनौती में मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी सत्तारूढ़ भाजपा पर स्पष्ट बढ़त बनाती दिखाई दे रही है. यही कारण है कि 2014 के चुनाव अभियान में “ देवालय नहीं शौचालय बनाना आवश्यक है” कहने वाले मोदी जी के तमाम सिपहसलार कभी अयोध्या कभी मथुरा कभी कैराना में “आपदा पैदाकर उसे अवसर में बदलने” की सम्भावनाएँ तलाश रहे है.मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ की छवि हमेशा ही विभाजनकारी वक्तव्य देने वाले और ठाकुर जाति के नेता की रही है किंतु अभी वे एक सवैधानिक पद पर है अतः उनसे न्यूनतम लोकतांत्रिक / संवैधानिक मर्यादा की उम्मीद अपेक्षित है. जब वे कैराना और मुज़फ़्फ़रनगर की गर्मी शांत कर मई और जून के महीने में भी शिमला बनाने की बात करते है या चुनाव के 80 बनाम 20 प्रतिशत के बीच होने की बात करते है, योगी कहने वाला मुख्यमंत्री साक्षात्कार में अपनी क्षत्रिय परस्त जातिवादी राजनीति करने पर गर्व महसूस करने की बात करता है तो बहुत आश्चर्य नहीं होता यह उनके पूर्व में क़ब्र से निकालकर वर्ग विशेष की महिलाओं से बलात्कार करवाने के बयान का विस्तार ही है मगर पहले वे जब नफ़रत भरे बयान देते थे तो मुख्यमंत्री जैसे अति महत्वपूर्ण संवैधानिक पद पर नहीं थे. ये बदज़ुबानी और लहजा बेसबब नहीं है. ये आसन्न चुनाव में हार की आशंका है जिसकेसंकेत भाजपा प्रत्याशियों अपने क्षेत्रों में हो रहे विरोध के रूप में मिल रह है.
हद तो तब और हो ज़ाती है जब स्वयं प्रधान मंत्री ने अपने पहले वर्चूअल संबोधन में यूपी के मतदाताओं को कहा “ पाँच साल पहले यू पी में बेटियाँ सुरक्षित नहीं थी , माफ़ियाँ सरकार के संरक्षण में थे , दंगाई सुरक्षित थे दलित पिछड़ें ग़रीब परेशान थे“
आदरणीय प्रधान मंत्री जी नीति आयोग के आँकड़े पढ़े अखिलेश के कार्यकाल के अंतिम वर्ष में जीडीपी ग्रोथ 10.8 % से घटकर नकारात्मक और वार्षिक औषत 1.9 हो गई है बेरोंजगारी कार्यवल सहभागिता अनुपात (LFPR ) अखिलेश के कार्यकाल में 45 से घटकर योगी काल में 35 % पर आ गया है रोज़गार दर अखिलेश के कार्यकाल के 38 से घटकर 33 पर आ गया है ,क़र्ज़/उधारी 2016-17 में 4.7 लाख करोड़ से बढ़कर 6.6 लाख करोड़ हो गई है (40% अधिक ) , प्रतिव्यक्ति क़र्ज़ 21 से बढ़कर 28 हज़ार हो गया है शिक्षा पर बजट का 14.8% से घटकर 12.5% हो गया है कटौती की गई राशि दिया जलाने में ख़र्च होगी स्वास्थ्य पर 5.5 से महामारी के बावजूद 5.9 % ही है
कृपया एनसीआरबी के आँकड़े भी देखें - अखिलेश के कार्यकाल में औषत वार्षिक अपराध 237821 से बढ़कर ठाकुर साहब के कार्यकाल में औषत वार्षिक अपराध 340170 हो रहे है क़ानून के दुरुपयोग का आलम यह है कि उन्नाव में स्वयं भाजपा विधायक द्वारा बलात्कार के बाद पीडिता के पिता को मार दिया जाता है , चाचा को जेल भेज दिया जाता है और पीडिता पर ट्रक चढा दिया जाता है , शाहजहापुर में सीएम के चाचा गुरु भाजपाई चिन्मयानन्द से सरकार बलात्कार का केस वापस ले लेती है और प्रोफ़ेशनल रेपिस्ट चिन्मयानन्द दुबारा कुकृत्य करता है तो पीडिता को जेल भेज दिया जाता है , हाथरस में बलात्कारियों के पक्ष में एसपी बयान देता है पीडिता का चरित्र हनन करता है , डीजीपी (एल&ओ) बलात्कार की घटना से इंकार करते है और पीडिता को रात में जला दिया जाता है .
मुज़फ़्फ़रनगर के दंगाइयों के केस भाजपा सरकार ने वापस लिए है और किसानों पर थार चढ़वाने वाला माफ़ियाँ टेनी आपके मंत्रीमंडल का सदस्य है तो भगवान की जाति क्षत्रिय में जन्म लेने वाले ठाकुर ब्रिजेश सिंह, धनंजय सिंह , कुंटू सिंह , ब्रिजभूषण शरण सिंह , सोनू सिंह , मोनु सिंह , अजय सिंह सिपाही और अजय सिंह बिष्ट , चुलबुल सिंह , संग्राम सिंह , अभय सिंह , अशोक चंदेल , उदयभान सिंह बादशाह सिंह , सनी सिंह योगी जी के संरक्षण में पुष्पित पल्लवित हो रहे है .
व्यापारी अब एसपी को रिश्वत न दे तो एसपी मरवा देता है जैसे महोबा में इंद्रमणि त्रिपाठी और दरोग़ा को निछावर न दे तो मुख्य मंत्री के गृह जनपद में भी होटल में भी सुरक्षित नहीं है.
सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण , लेट्रल एंट्री , आउट सोर्सिग व सरकारी नियुक्तिों मे आरक्षण की अनदेखी , पुलिस एनकाउंटर में निर्दोष पिंटू पटेल , ब्रिजेश मोर्य , अशोक राजभर , सुमित गुज़र , प्रदीप तोमर , मनीष प्रजापति आदि दर्जनों हत्याओं ने ग़ैर यादव पिछड़ों को सोचने पर मजबूर किया कि भाजपा के साथ उनका सम्मान और स्वाभिमान सुरक्षित भी है ? फ़र्ज़ी मुठभेड़ में हत्याएँ तो यादवों मुस्लिमों की भी हुई मगर कोईरी कुर्मी राजभर गुज्जर प्रजापति भाजपा की सरकार बनाने में अपनी भागीदारी के चलते अपनी सरकार मान रहे थे अतः सरकार के ज़ुल्मों पर हतप्रभ होना भी स्वाभाविक था. आज कोईरी कुर्मी , केवट बिंद निषाद जैसी जातियों का मोहभंग हुआ है तो पाल धनगर कश्यप राजभर खड्गवंशी , नोनियां प्रजापति पूरे तौर पर भाजपा से दूर हो चुका है लोध राजपूत एकमात्र समूह है जो अभी भी भाजपा के साथ दिखाई दे रहा है. किंतु उसका भी पढ़ालिखा युवा अपनी प्राथमिकता पर पुनर्विचार को मजबूर है.
अप्रेल 2018 में अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार अधिनियम में संशोधन के विरोध में भारत बंद के बाद हज़ारों दलितो का पुलिस उत्पीड़न और फ़र्ज़ी केस लगाकर जेल भेजने की घटना हो या हाथरस , इलाहाबाद , आगरा आज़मगढ़ में शासन प्रशासन व स्वयं भाजपा संगठन के दलित विरोधी रवैये व अलीगढ़ में दलित भाजपा विधायक को राजपूत दरोग़ा द्वारा थाने में अपराधियों की तरह पीटा जाना व दरोग़ा पर कोई कार्यवाही न होना योगी सरकार के दलितों के प्रति भेदभावपूर्ण व्यवहार के चंद उदाहरण भर है जिनसे दलितों में मायूसी है जिसे मताधिकार के लोकतांत्रिक अधिकार द्वारा व्यक्त किया जाना निश्चित है.
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