कही-सुनी क्या भाजपा 2003 का फार्मूला 2023 में अपनाएगी ?

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

कही-सुनी क्या भाजपा 2003 का फार्मूला 2023 में अपनाएगी ?

रवि भोई

माना जा रहा है कि भाजपा 2023 का विधानसभा चुनाव जीतने के लिए 2003 का फार्मूला लागू कर सकती है. भाजपा ने 2003 में विधानसभा चुनाव जीतने के लिए संभाग स्तर पर संघ के रणनीतिकारों को तैनात किया था और राज्य स्तर पर भी संघ से जुड़े व्यक्ति को कमान सौंपी थी. बस्तर में गृह राज्यमंत्री को तैनात किया गया था.  कहते हैं कि 2003 के पहले जैसा केंद्र और राज्य में वातावरण था, ठीक वैसा ही माहौल 2023 के पहले भी नजर आ रहा है. 2003 के चुनाव के पहले केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार थी और  2023 के विधानसभा चुनाव के पहले भी भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार है.  2003 के चुनाव के पहले भी राज्य में भाजपा नेतृत्व को काफी कमजोर माना जा रहा था और अब भी भाजपा नेतृत्व को कमजोर माना जा रहा है और  राज्य की भूपेश सरकार को घेर न पाने को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं.  तब अजीत जोगी के खौफ के चलते भाजपा ने राज्यसभा चुनाव में अपना प्रत्याशी नहीं उतारा था.  इस बार तो भाजपा का संख्या बल कम होने के कारण राज्यसभा की दोनों सीटें कांग्रेस के खाते में जाएंगी. अब देखते हैं आगे क्या होता है , पर भाजपा के जमीनी नेता और कार्यकर्ताओं को यूपी चुनाव खत्म होने का इंतजार है. कहा जा रहा है उसके बाद भाजपा हाईकमान रणनीति में बदलाव करेगी.

निशाने पर डहरिया

छत्तीसगढ़ के नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया इन दिनों भाजपा के निशाने पर हैं. कहा जा रहा है कि डॉ. डहरिया का भाजपा के रडार में आना स्वाभाविक है, क्योंकि स्वच्छता के मामले में, फिर श्रम कल्याण को लेकर भारत सरकार से जिस तरह पुरस्कार मिले, उससे साफ़ है कि डॉ. डहरिया का कद बढ़ गया. जेनरिक दवा सेंटर और शहरी इलाकों में दाई-दीदी क्लीनिक के मार्फ़त भी  डहरिया चर्चा में हैं. डॉ.डहरिया आरंग से विधायक हैं ऐसे में आरंग की घटना को लेकर भाजपा को उन्हें घेरने का मौका मिल गया. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और  कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव पी एल पुनिया के करीबी माने जाने वाले डहरिया पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के खास रह चुके हैं.  कहा जाता है डहरिया तेजी से काम करने में भरोसा रखते हैं. स्वाभाविक है काम करने वाला ही निशाने पर आएगा. 

सुनील सोनी की "चना डिप्लोमेसी"

रायपुर के सांसद सुनील सोनी की "चना डिप्लोमेसी" आजकल चर्चा में है. रायपुर के महापौर से रायपुर लोकसभा के सांसद बने सुनील सोनी संसद की कई कमेटियों के सदस्य हैं और उन्हें महीने में कई बार दिल्ली जाना पड़ता है. प्लेन में वे कपड़ों और दूसरे सामानों से भरे बेग की जगह भुंजे और चटपटे चने से भरे बेग ले जाते हैं.  चना  200 ग्राम के पैक में होता है. कहते हैं वे हर ट्रिप में औसतन 10 किलो और महीने में 25 किलो तक चने ले जाते हैं. सुनील सोनी ये चने देश भर के सांसदों को बांटते हैं. इस बहाने दक्षिण से उत्तर और  पूर्व से पश्चिम के सभी दल के सांसद छत्तीसगढ़ के चने का आनंद लेते हैं और सुनील सोनी की दोस्ती भी प्रगाढ़ हो जाती है. आखिरकार लेनदेन से ही तो संबंध बनते हैं.

यूपी के स्टार प्रचारकों में फूलोदेवी

उत्तरप्रदेश के चुनाव में कांग्रेस हाईकमान ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के आलावा यहां से फूलोदेवी नेताम को भी स्टार प्रचारकों की सूची में रखा है.  फूलोदेवी नेताम राज्यसभा सांसद के साथ छत्तीसगढ़ महिला कांग्रेस की अध्यक्ष भी हैं.  यूपी में भले ट्राइबल पापुलेशन कम हो, पर महिलाओं को प्रभावित करने के मकसद से कांग्रेस हाईकमान ने फूलोदेवी को आगे किया है. यूपी चुनाव के बहाने फूलोदेवी हाईकमान की नजरों में कितनी चढ़ पाती हैं, यह तो समय बताएगा, पर कहते है  नई जिम्मेदारी से वे छत्तीसगढ़ के आदिवासी नेताओं की नजरों में आ गई हैं. स्वाभाविक बात भी हैं, यहां के कुछ बड़े नेता यूपी में जमीन पर लगे हैं और फूलोदेवी स्टार हो गई. 

रेत पर मुख्यमंत्री की टेढ़ी नजर

रेत के धंधे पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नजरें क्यों टेढ़ी कर ली ? लोगों को समझ नहीं आ रहा है. कहते हैं रेत के धंधे से  कई राजनेता और रसूखदार जुड़े हैं. इसमें कई कांग्रेस के पूर्व और वर्तमान विधायकों के नाम चर्चा में भी है. रेत सप्लाई को लेकर कई जगह विवाद की नौबत भी आ चुकी है. एक कांग्रेस विधायक के पति भी लपेटे में आ चुके हैं. चर्चा है राजधानी में रहने वाले रसूखदार बलरामपुर में रेत के कारोबार में लगे हैं, तो कवर्धा में रहने  वाले जांजगीर-चांपा में. कहा जा रहा है कि वैध-अवैध तरीके से हर कोई रेत से तेल निकालने में लगे हैं, वहीँ मुनाफाखोरी भी आसमान को छूने लगी है,  ऐसे में लगाम तो कसना ही था. खबर है कि नदियों से रेत निकालने के तौर-तरीके को लेकर ठेकेदार और ग्रामीणों में विवाद आम हो गया है.

क्या टीएस सिंहदेव के प्रस्ताव को बदला गया ?

चर्चा है कि स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने आईएएस गौरव द्विवेदी को स्वास्थ्य विभाग का प्रमुख सचिव बनाने का प्रस्ताव किया था, लेकिन सरकार ने उनकी आईएएस पत्नी डॉ. मनिंदर कौर द्विवेदी को स्वास्थ्य विभाग का प्रमुख सचिव बना दिया. गौरव द्विवेदी अभी वाणिज्यिक कर विभाग में प्रमुख सचिव हैं. वाणिज्यिक कर विभाग के मंत्री भी टीएस सिंहदेव हैं. कहा जाता है कि टीएस सिंहदेव और डॉ. आलोक शुक्ला के बीच तालमेल नहीं बैठ रहा था, वहीँ गौरव द्विवेदी से उनकी ट्वनिंग अच्छी बताई जाती है. वैसे डॉ. मनिंदर कौर द्विवेदी भी टीएस सिंहदेव के साथ वाणिज्यिक कर विभाग के प्रमुख सचिव के रूप में काम कर चुकी हैं. 

राहुल की राजनीतिक चतुराई

कहते हैं कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी अब राजनीतिक चतुराई दिखाने लगे हैं. चर्चा है कि राहुल गांधी को अब किसी से गोपनीय चर्चा करनी होती है तो अनजान जगह पर चले जाते हैं. छत्तीसगढ़ के एक नेता से एकांत में गोपनीय चर्चा आजकल चर्चा में है. कहा जाता है कि राहुल गाँधी के आसपास रहने वाले लोग अपना भाव बढ़ाने के लिए सूचना लीक कर दिया करते थे, शायद उससे बचने के लिए यह तरीका अपनाया है.

यूपी में कांग्रेस की सीटों पर नजर

कहते है कांग्रेस को यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव में कितनी सीटें मिलती है,उस पर छत्तीसगढ़ के लोगों को भी काफी दिलचस्पी है. छत्तीसगढ़ के कई नेता यूपी के लोगों  को प्रशिक्षण देने और जीत का मन्त्र सिखाने गए थे. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल मुख्य पर्यवेक्षक हैं ही , कहा जा रहा है छत्तीसगढ़ के 60-70 लोग अभी भी यूपी चुनाव में लगे हैं. ऐसे में यूपी के चुनाव नतीजों पर यहाँ के लोगों की नजर स्वाभाविक है.


(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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