यूपी में भाजपा से नहीं हुआ जदयू का गठबंधन

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यूपी में भाजपा से नहीं हुआ जदयू का गठबंधन

फ़ज़ल इमाम मल्लिक

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जदयू अब अकेले चुनाव में उतरेगी. भाजपा से गठबंधन होते-होते टूट गया. जदयू ने लंबे समय तक इंतजार किया लेकिन भाजपा की ना, हां में नहीं बदली. हालांकि जदयू पिछले अगस्त से ही कह रहा था कि वह यूपी में चुनाव लड़ेगा, भाजपा से समझौता हुआ तो ठीक नहीं तो अकेले ही वह चुनाव लड़ेगा. पार्टी ने भाजपा से बातचीत के लिए केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह को अधिकृत किया था. लेकिन उसी दिन तय हो गया था कि पार्टी अब आरसीपी सिंह को किनारे करने की जुगत में है. भाजपा की ना के बाद जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने गठबंधन न होने का ठीकरा सीधे-सीधे आरसीपी सिंह पर तो नहीं फोड़ा लेकिन सियासी गलियारे में उनके बयान का मतलब कुछ ऐसा ही निकाला जा रहा है.

लनल सिंह ने दिल्ली में पार्टी की पहली सूची जारी करते हुए कहा था कि जदयू ने आरसीपी सिंह को अधिकृत किया था और हम भाजपा के जवाब का इंतजार कर रहे थे. आरसीपी सिंह ने भरोसा दिलाया था कि गठबंधन हो जाएगा, हम जवाब का इंतजार करते रहे लेकिन अब तक जवाब नहीं आया है. इसलिए हमने यूपी में 51 सीटों पर लड़ने का फैसला किया है. कमबोशे यही बात उन्होंने पटना में दोहराई और आरसीपी सिंह को कठघरे में खड़ा कर दिया. वैसे इसकी पटकथा तो अगस्त में जदयू की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में ही लिखी गई थी. खुले मंच से ललन सिंह ने दो टूक आरसीपी सिंह से कहा था कि वे नवंबर तक गठबंधन पर बात कर, सब कुछ तय कर लें. ललन सिंह ने यह बात सैंकड़ों पार्टी पदाधिकारियों की मौजूदगी में क्यों कही थी, इसे अब समझा जा सकता है.

जदयू ने उत्तर प्रदेश में अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने दिल्ली में 26 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की. इसी के साथ यह तय हो गया है कि यूपी में बिहार का एनडीए गठबंधन नहीं चल पाएगा. केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह ने गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और धर्मेंद्र प्रधान से गठबंधन के लिए बात की थी, लेकिन बात नहीं बनी.

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के खिलाफ मैदान में जदयू के नेता उतरेंगे और योगी को टक्कर देने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी यूपी का दौरा करेंगे. यूपी में चुनावी रैलियों को नीतीश कुमार संबोधित करेंगे और पार्टी के उम्मीदवारों के लिए प्रचार भी करेंगे. जदयू के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने कहा कि चरणवार उम्मीदवारों की सूची जारी होगी. हालांकि केसी त्यागी ने यह संकेत दिए हैं कि चुनावी सभाओं में भाजपा के साथ टकराव से हम बचेंगे. हम सकारात्मक तरीके से अपनी बाते कहेंगे. यह बताएंगे कि जिस दल से वे लोग हैं उसके नेता नीतीश कुमार ने किस तरह से बिहार में परिवर्तन किया. किस तरह से उनके द्वारा शुरू की गई योजनाओं को दूसरे राज्यों ने अपने यहां शुरू किया.

हालांकि कई सवाल बिहार में पूछे जा रहे हैं. उन सवालों के केंद्र में भाजपा-जदयू के रिश्ते भी हैं और केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह की नाकामी भी. हर किसी के अपने सवाल और अपने आकलन. जदयू ने भाजपा को 30 सीटों की सूची सौंपी थी, जहां से वह चुनाव लड़ना चाहती थी. उसे उम्मीद थी कि दस से पंद्रह सीटों पर बात बन जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. भाजपा ने अनुप्रिया पटेल के अपना दल को ज्यादा सीटें देकर जदयू को दरकिनार किया. कहा यह भी जा रहा है कि संजय निषाद और अनुप्रिया पटेल दोनों ही जदयू के साथ यूपी में भाजपा के गठबंधन के पक्ष में नहीं थे. लेकिन गठबंधन न होने की वजह से आरसीपी सिंह के पार्टी में अब और अलग-थलग पड़ सकते हैं. क्योंकि गठबंधन न होने का ठीकरा उन पर ही फोड़ा जा रहा है. माना जा रहा है कि जदयू में दबदबे को लेकर शह-मात का खेल चल रहा है. वैसे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के बयान को आरसीपी समझ जाते तो कई बातें साफ हो जातीं. उस बयान के बाद कहा जा सकता है कि आरसीपी की उम्मीदें सिर्फ दिल को बहलाने वाला था. नड्डा ने साफ कहा था कि यूपी में उनकी पार्टी सिर्फ अपना दल और संजय निषाद के साथ मिल कर चुनाव लड़ेगी. अपने बयान में भाजपा–जदयू समझौते का जिक्र तक उन्होंने नहीं किया. इससे समझा जा सकता है कि इस पूरे खेल में किस तरह की सियासत चल रही है. वैसे बिहार की सियासत को इससे जोड़ कर देखना सही नहीं होगा. लेकिन इस सियासत में जदयू में शीर्ष स्तर पर जो चल रहा है उसके संकेत को देखा जा सकता है.

भाजपा के नजदीक हो चुके आरसीपी सिंह ने जदयू के आला नेताओं को यह यकीन दिलाया था कि बात बन जाएगी. लेकिन अब ऐसा नहीं हुआ. इससे जदयू की परेशानी तो नहीं बढ़ी है, आरसीपी सिंह की परेशानी जरूर बढ़ी है. आरसीपी सिंह को अंत-अत तक भरोसा था कि सब कुछ ठीक हो जाएगा. दरअसल वे चाह तो रहे थे कि सब कुछ पटरी पर आ जाए. बात बन जाए. उन्हें यह भी पता है कि भाजपा से बात नहीं बनती है तो फिर पार्टी के अंदर उनकी बात बिगड़ जाएगी. आरसीपी सिंह इस सच को जानते हैं और जदयू नेतृत्व भी.

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