ओम प्रकाश सिंह
अयोध्या/अंबेडकर नगर. डाक्टर लोहिया की जन्मस्थली अम्बेडकर नगर जिला एक समय अयोध्या जनपद का ही हिस्सा हुआ करता था, तब अविभाजित जिले का नाम फैजाबाद था. पिछले दो दशक की राजनीति में हाथी की मदमस्त चाल पर ग्रहण लग गया है. दलबदल की राजनीति के चलते हाथी के सवारों ने जब दगा दे दिया तो बसपा यहां ब्राह्मणों के शरणागत हो गई है.
फैजाबाद जिले को विभाजित कर अकबरपुर लोकसभा को जिला बनाने का श्रेय बसपा सुप्रीमो मायावती को ही है.1994 में बसपा के टिकट पर यहां से घनश्याम चंद्र खरवार सांसद चुने गए. इसके बाद यहां बसपा की सियासी जड़ मजबूत हुई तो वर्ष 1998 में मायावती ने स्वयं अकबरपुर सुरक्षित लोकसभा सीट से चुनाव लड़कर जीता. इसके बाद 1999 और वर्ष 2004 में भी लगातार जीत दर्ज करते हुए अपनी हैट्रिक बनाई. यही नहीं 2002 के उपचुनाव में भी बसपा के त्रिभुवनदत्त को भी सांसद बनने का गौरव मिला.
हाल ही में सपा में शामिल राकेश पांडेय ने वर्ष 2009 में बसपा से ही चुनाव जीता, और सांसद बने. राकेश पांडेय के पुत्र रितेश पांडेय वर्तमान में बसपा के ही सांसद हैं. 2014 के चुनाव में बसपा हार गई और भाजपा के हरिओम पांडे सांसद बन गए. इसी के साथ भाजपा का जिले में पहली बार खाता भी खुला था.
इतना ही नहीं सन् 2007 में जनपद की सभी पांच विधानसभा सीटों पर बसपा का ही कब्जा था.कटेहरी विधानसभा क्षेत्र से धर्मराज निषाद, टांडा विधानसभा से लालजी वर्मा, जहांगीरगंज विधानसभा क्षेत्र से त्रिभुवन दत्त, अकबरपुर विधानसभा रामअचल, जलालपुर से राकेश पांडेय ने जीत हासिल की थी. सरकार गठन के बाद बसपा सुप्रीमों ने जिले के तीन विधायकों को अपने मंत्रिमंडल में जगह दी. रामअचल राजभर को परिवहन मंत्री, लालजी वर्मा चिकित्सा शिक्षा एवं वित्त मंत्री और धर्मराज निषाद को मत्स्य मंत्री बनाया. तब बसपा कार्यकाल में प्रदेश में अंबेडकरनगर जिले की तूती बोलती थी.
इसके बाद बसपा का ग्राफ गिरता गया. हालांकि वर्ष 2012 के चुनाव में रितेश पांडेय ही एक ऐसे बसपा प्रत्याशी रहे जिन्होंने पार्टी को जलालपुर विधानसभा से जीत दिलाई और अन्य चार विधानसभा पर सपा का कब्जा हो गया. 2017 के चुनाव में सपा का सूपड़ा साफ हो गया और बसपा ने तीन तथा भाजपा को दो सीट मिल गई. कटेहरी से बसपा प्रत्याशी लालजी वर्मा, अकबरपुर से रामअचल राजभर और जलालपुर विधानसभा क्षेत्र से पार्टी के प्रत्याशी रितेश पांडेय को ही जीत मिली. महज 3 सीटों पर ही बहुजन समाज पार्टी को संतोष करना पड़ा. दो सीटें आलापुर सुरक्षित व टांडा की सीट पर भाजपा प्रत्याशियों ने अपना परचम लहराया.
विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लगने के पूर्व ही इस जिले में राजनीतिक भूचाल सा आ गया. बसपा के लगभग सभी दिग्गज साइकिल पर सवार हो गए. यहां तक की सांसद रितेश पांडेय के पिता राकेश पांडेय भी. दिग्गज नेताओं के पार्टी छोड़ने से उपजी परिस्थितियों से निपटने के लिए बसपा यहां ब्राह्मणों की शरण में चली गई है. सांसद रितेश पांडेय के चाचा पूर्व विधायक पवन पांडेय को बसपा ने खेवनहार के रुप में चुना है. पवन के पुत्र को बसपा ने कटेहरी से उम्मीदवार भी बना दिया है. जलालपुर विधानसभा से पिछला चुनाव लड़ चुके राजेश सिंह को बसपा में लाने का श्रेय भी पवन के मत्थे है. राजेश सिंह पूर्व विधायक स्वर्गीय शेरबहादुर सिंह के पुत्र हैं. फिलहाल बसपा का दुर्ग यहां धसक चुका है और विधानसभा के चुनाव में सपा भाजपा के मुकाबले बसपा कितना लड़ पाएगी यह ब्राह्मण मतदाताओं पर निर्भर करेगा.
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