अंतोन चेखब के जन्मदिन पर

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अंतोन चेखब के जन्मदिन पर

प्रेमकुमार मणि 

चेखब के नाम से मशहूर लेखक  अंतोन पाव्लोविच चेखोव (रूसी उच्चारण में चेख़फ़ भी ) का जन्म दक्षिण  रूस के तगनरोग क़स्बे में 17 जनवरी 1860 को हुआ . वह छह भाई- बहनों में तीसरे थे .उनके पिता का नाम पावेल एगोरोविच चेखोव था , जो एक छोटी -सी दुकान चलाते थे . चेखोव के दादा सर्फ़ (serf ), यानी बंधुआ खेतिहर मज़दूर  थे . रूस में कुलाक ज़मीन्दार  हुआ करते थे ,जो अपने खेतों में काम करने केलिए अर्द्ध -गुलाम हलवाहे रखते थे .इन्हे ही वहाँ सर्फ़ कहा जाता था . इनकी सामाजिक -आर्थिक स्थिति करीब -करीब अफ़्रीकी हब्शियों की तरह ही थी  , अंतर इतना ही था कि ये अपने ही देश से थे ,बाहर से खरीद कर लाये और बेचे गए गुलाम नहीं थे .  इन्हे भी पट्टे पर खरीद लिया जाता था . पट्टे की रकम अदा कर ये आज़ाद हो सकते थे . चेखब के जन्म के बस उन्नीस साल पहले यानी 1841 में यह परिवार बंधुआ मज़दूर वाली गुलामी से मुक्त हुआ था . ऐसा प्रतीत होता है कि चेखब के पिता पाव्लोविच ने अपनी चेतना और मिहनत से कुछ रकम अर्जित कर अपने परिवार को मुक्त कराया था . उन्होंने खेतिहर मज़दूर की जगह दुकानदारी शुरू  की . इस दुकान में चेखब और  उनके भाई -बहन भी काम करते थे . पेशा बदलने से ही संभवतः चेखब  का पढ़ना भी संभव हुआ होगा . अपने भाई -बहनों के साथ उन  ने स्थानीय स्कूल में ही प्राथमिक पढाई पूरी की . 

चेखब की अपने पिता से पटती नहीं थी . उनके पिता गहरे धार्मिक  थे और अपनी  धार्मिकता चेखब पर थोपना चाहते थे . उनकी आर्थिक स्थिति डावाँडोल थी . छोटी -सी दुकानदारी से छह बच्चों वाले परिवार का भरण -पोषण मुश्किल था . इस कारण पिता का चिड़चिड़ा होना स्वाभाविक था .उनके इस स्वभाव से घर में किच -किच मची रहती थी . चेखब पिता से अक्सर पिट जाते . इस पिटाई ने पिता -पुत्र के सम्बन्ध को ख़राब कर दिया था . चेखब जब सोलह साल के थे ,उनके पिता की दुकानदारी बंद हो गयी और पूरा परिवार मास्को चला आया . चेखब की स्कूली पढाई बीच में ही बंद हो गयी .अपने ही प्रयासों से ट्यूशन वगैरह के सहारे चेखब ने अपनी शेष स्कूली पढाई पूरी की . स्कूल -सर्टिफिकेट में ग्रीक और लैटिन में उन्होंने अच्छा किया था . स्कूली पढाई को लेकर  चेखब कुछ साल परिवार से जुदा -जुदा भी रहे .

 तीन साल बाद वह मास्को में अपने परिवार से मिलते हैं . इस बीच उनके पिता दुकानदार से दिहाड़ी मज़दूर हो गए थे . उनकी माँ सिलाई का काम करती थीं .इस बीच चेखब ने मास्को यूनिवर्सिटी के मेडिकल फैकल्टी में एडमिशन पाने में सफलता पायी और चार साल की पढाई पूरी कर 1884  में वह चिकिनो के एक अस्पताल में डॉक्टर के रूप में नियुक्त हुए .  इसके साथ ही उन्होंने घर की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली . अब वह चौबीस साल के थे . उनका लिखना शुरू हो गया था . उनकी कहानियां पत्रिकाओं में छपने लगीं . 1880  में उनकी पहली कहानी ' ड्रैगनफ्लाई' पत्रिका में छपी . फिर तो छपने का एक सिलसिला ही शुरू हो गया . वह अंतोशा चिखोंते ( Antosha Chekhonte ) के नाम से लिखते थे . यही बाद में Anton Chekhov हो गया . उनके बड़े भाई भी लेखक थे . दोनों के बीच अच्छी समझदारी और यारी थी . प्रसिद्ध पत्रिका 'अलार्म - क्लॉक ' और एक नयी व्यंग्य -साहित्य पत्रिका 'स्पेक्टेटर ' में उनकी रचनाएं छपने लगीं 1888 में ख्यात  पत्रिका Severny Vestnik में उनकी कहानी छपी " Steppe " . इसमें एक बच्चे की की उक्रेन यात्रा का वर्णन है . बचपन में लेखक द्वारा ही की गई एक यात्रा का अनुभव इस कहानी में उभर कर आया है . 1888 और 1904 के बीच उनकी  लगभग पचास कहानियां विभिन्न पत्रिकाओं में छपीं . 

चेखब लगातार लिख और छप रहे थे .उनकी रचनाएँ खूब पढ़ी जा रही थीं . इसके साथ ही उनकी आर्थिक स्थिति भी बेहतर होती जा रही थी . लेकिन इसी बीच टी बी की बीमारी ने उन्हें अपने चंगुल में ले लिया . उन दिनों यह एक ला -इलाज़ बीमारी थी . वह स्वयं डॉक्टर थे . अपनी नियति जानते थे . लेकिन उन्होंने अहर्निश लिखना जारी रखा . 1888 में उनका चार अंकों का एक नाटक वुड डेमोन आया और उसने ख्याति अर्जित की . 1890 में Dyadya Vanya जो अनुवादों में अंकल वान्या के नाम से मशहूर हुआ भी आ गया . Medved ( Three  Bear ) , Pradlozheniye ( The  Proposal ), Svadba (The Wedding ) , Yubiley ( The Anniversery ) भी आया . यह उनकी उम्र का तीसवां साल था और वह यशस्वी हो चुके थे . 

1892 में उन्होंने मास्को से अस्सी किलोमीटर दक्षिण मेलिखोव क़स्बे में एक बहुत बड़ा ,लगभग पांच सौ एकड़ का ,भूखंड ख़रीदा और अपने परिवार के साथ वहीं बसने केलिए चले गए . उन्होंने विवाह नहीं किया था ,लेकिन भाई -बहनों की पूरी जिम्मेदारी ली हुई थी . उनके परिवार की गरीबी ने उनकी बहन मारिया को अविवाहित रहने केलिए मजबूर कर दिया था . मारिया और चेखब मिल कर परिवार को पालते -पोसते रहे . मेलिखोव  का ग्रामीण जीवन चेखब केलिए सुकूनदायक था . इसी कारण वह यहाँ खूब लिख सके . 1892 में वह यहाँ पहुंचे और उसी साल Butterfly  और Neighbours जैसी कहानियां लिखी . वार्ड नंबर 6 जैसी अविस्मरणीय कहानी भी इसी साल लिखी गयी . 1893 में An Anonymous  story ,1894 में A women 's kingdom ,Three years  और The Black monk , 1895 में Murder  और  Arindne , 1996 में In my  life और 1897 में Peasants जैसी मशहूर कहानियां लिखी गयीं . 1898 तो घनीभूत रचनाशीलता का वर्ष रहा . The man in a case , Gooseberries   इसी साल लिखी गयीं . 

मेलिखोव के साल चेखब के ख्याति के साल रहे . यहीं रहते 17 ऑक्टूबर 1896 को Chayka (The Seagul ) का सेंट पीटरस्बर्ग में पहली बार मंचन हुआ . मेलिखोव  गाँव था . यहां रहते हुए चेखब ने रूसी किसान जीवन को नजदीक से देखा . उनके दादा खेतिहर बंधुआ मजदूर थे . इसलिए किसान जीवन को देखने का उनका नजरिया बंधुआ मजदूर का नजरिया था . अमीर जमींदार लोगों के पाखण्ड को वह बखूबी समझते थे . एक दूसरे मशहूर रूसी लेखक टॉलस्टॉय  भी किसान जीवन को देख रहे थे .लेकिन टॉलस्टॉय खुद जमींदार कुलक परिवार से आते थे . उनका नजरिया अपने वर्ग के अनुरूप था . उनके नजरिये में ईसाइयत की दयालुता का भाव था . लेकिन चेखब में एक विद्रोह का भाव था . वह किसानों के लिए दया नहीं , न्याय चाहते थे ,उनका अधिकार चाहते थे . टॉलस्टॉय व्यक्तिगत रूप से चेखब को खूब प्यार करते थे और उनके लिए अच्छी भावनाएं रखते थे . वह बीमारी में नियमित रूप से चेखब को देखने आते थे . चेखब की एक प्रेमिका लीडिया एविलोव ने इसका जीवन्त चित्रण अपने संस्मरण में किया है . इन सब के बावजूद चेखब ने टॉलस्टॉय   के नज़रिये का हमेशा मज़ाक  उड़ाया ,विरोध किया . रूसी राजनेता लेनिन , टॉलस्टॉय की लेखनी का सम्मान करते थे ,लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं को चेखब की कहानी वार्ड नंबर 6 पढ़ने की सलाह देते थे . 

आखिरी दिनों में   चेखब ने एकबार फिर अपना ठिकाना बदला . 1899 में वह समंदर किनारे याल्टा चले आये ,जहाँ मृत्युपर्यन्त 1904 तक रहे . मेलिखोव की जागीर उन्होंने बेच दी और याल्टा  में  एक विला खरीद लिया . यह इस कारण किया कि स्वास्थ्य के लिहाज से  उन्हें याल्टा में रहने की सलाह दी गयी थी . 1897 में उनका फेफड़ा फट गया था और खून की उल्टियां होने लगी थीं . टी बी भयानक रूप ले चुका था . तब तक पेन्सिलिन का आविष्कार नहीं हुआ था . पारम्परिक चिकित्सा पर चेखब टिके रहे . 1898 में ,जब वह अड़तीस साल के थे ,Olga  Knipper नाम की एक युवा रंगकर्मी के संपर्क में  आये . तीन वर्षों के बाद ,यानि अपनी मृत्यु के तीन साल पूर्व उन दोनों ने विवाह किया . इस बीच ही लीडिया एविलोव उनके संपर्क में आयी थीं . लेकिन वह शादी -शुदा थीं ,इसलिए बात विवाह तक नहीं पहुँच सकी . लीडिया की किताब ' चेखब इन माय लाइफ ' चेखब के मन -मिजाज के अनेक कोने खोलती है . वह अत्यंत नाजुक -मिजाज और नरम दिल थे . उतने ही क्रान्तिकारी . क्रान्ति उनके लिए राजनीतिक अभिक्रम नहीं , सामाजिक अभिक्रम था . वह जीवन में बुनियादी क्रान्ति के प्रस्तावक थे . अपनी आखिरी कहानी ' दुलहन ' में उनकी कहानी का पात्र  साशा अपने माँ के  मालकिन परिवार की बेटी नाद्या  से  कहता है -' जीवन को उलट -पुलट दो ' . चेखब मानो खुद अपनी दोस्त लीडिया को यह सन्देश  दे रहे होते हैं . 

अपनी एक और कहानी ' द बेट ' अर्थात ' बाज़ी ' द्वारा  चेखब मनुष्य की आज़ादी के फलसफे को पूरी शिद्दत से हमारे समक्ष रखते हैं . कहानी का मुख्य पात्र एक युवा वकील है ,जो एक जलसे के बीच  पैसे की महत्ता पर बक -बक करता है और बात -बात में बाज़ी लगा लेता है कि बीस लाख रूबल केलिए वह पंद्रह साल जेल में रहने को तैयार है यदि जेल में खाने -पीने की  पूरी व्यवस्था हो . वह एक बैंकर से बाज़ी लगा रहा रहा था . बैंकर ने उसकी शर्तें मंजूर कर ली . सारी सुविधाओं  के साथ वह एकांतवास में डाल दिया गया . उसे खाने- पीने केलिए लजीज व्यंजन मिलते रहे ,पढ़ने केलिए किताबें मिलती रहीं ,लेकिन शर्त के अनुसार किसी से मिलना मना था . वकील की हालत ख़राब होने लगी . पंद्रह साल पूरा होने के मात्र कुछ घंटे पूर्व वह बैंकर के नाम एक पत्र लिखता है और जेल की खिड़की तोड़ कर भाग जाता है . अपने पत्र में उसने लिखा - 

" पिछले पंद्रह वर्षों से मैंने दुनियावी जिंदगी का अध्ययन किया है . सच है इस बीच मैंने न दुनिया देखी  ,न लोगों से मिला . लेकिन आपकी किताबों के बीच मैंने छक कर पीना किया  , गीत गाये ,हिरणों और जंगली भालुओं के साथ दौड़ा ,खूबसूरत महिलाओं से प्रेम किया … 

….आपकी पुस्तकों ने मुझे काबिल बनाया . हजारों साल के संगृहीत ज्ञान मेरे दिमाग में आये . मैं जानता हूँ , आज मैं आप सब से अधिक होशियार हो गया हूँ …

...लेकिन मैं आपकी किताबों पर थूकता हूँ .हर सांसारिक उपलब्धि पर थूकता हूँ . सब कुछ झूठ है . आप अपनी बुद्धिमता ,सुंदरता व सम्पन्नता पर इतरा  सकते हैं ,लेकिन सच यह कि यह सब कुछ मिटने वाला है . यह इतिहास , ये दिखावे , यह विद्वता सब -सब एक दिन मिटेंगे 

आज मैं अपने ही उस करारनामे को तोड़ता हूँ ,ख़ारिज करता हूँ . मैं त्याग रहा हूँ ,वह बीस लाख  ,जिसे मैंने कभी स्वर्गिक खजाना समझ लिया था . आज तिरस्कार करता हूँ उसका . मैं चाहूंगा कि पांच मिनट पहले भी मैं इस करार को तोड़ कर बाहर आ जाऊँ . "

   अपने जीवन काल में चेखब को वैसी प्रतिष्ठा नहीं मिली ,जिसके वह हक़दार थे . केवल एक साहित्यिक  पुरस्कार पुश्किन अवार्ड उन्हें मिल पाया . लेकिन प्रथम विश्वयुद्ध के बाद जब बोल्शेविक क्रांति  हुई ,तब लोगों को महसूस हुआ ,चेखब ने रूस के बारे में जो सोचा था वही सच था . दूसरे विश्वयुद्ध के बाद तो उनकी प्रसिद्धि संसार भर में फ़ैल गयी . रूसी लेखकों में पुश्किन  और अंग्रेजी के शेक्सपियर की बराबरी उन्हें मिलने लगी . मनुष्य की आज़ादी का जो फलसफा चेखब ने दिया ,वह इतना आकर्षक है कि आने वाली सदियाँ उन्हें याद रखेंगी .

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