अधिवक्ता, किसान और एंग्लो इंडियन समुदाय में नाराजगी

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अधिवक्ता, किसान और एंग्लो इंडियन समुदाय में नाराजगी

आलोक कुमार

पटना.सम्प्रति बिहार की विधान सभा 243 सीटों की है.इस समय विधान सभा सीटों की एक तिहाई यानी 81 सदस्य विधान परिषद में हो सकते हैं.यानी अभी भी छह सीटों की गुंजाइश है.15 नवम्बर, 2000 में बिहार विभाजन के बाद एंग्लो इंडियन समुदाय का प्रतिनिधित्व झारखंड को मिल गया था. इस पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि विधान परिषद में सीट में बढ़ोतरी कर अधिवक्ता, किसान और एंग्लो इंडियन समुदाय के प्रतिनिधि को मनोनीत करेंगे. जो 22 साल के बाद भी नहीं हो सका. इससे अधिवक्ता, किसान और एंग्लो इंडियन समुदाय में आक्रोश है.

बहरहाल बिहार विधान परिषद की 24 सीटों पर चुनाव होना है.त्रिस्तीय चुनाव जीतकर आने वाले जन प्रतितिनिधि चुनाव में लगे खर्च को निकालने का मन बना लिये हैं.यहां भी चुनाव को लेकर जोड़ तोड़, धन बल और जन बल का खेल शुरू हो चुका है.वैसे तो परिषद का चुनाव अप्रत्‍यक्ष रूप से होता है लेकिन चुनाव जीतने के बैकग्राउंड का खेल शुरू हो गया है. इसकी वजह ये हैं कि एक एमएलसी को जितनी सुविधाएं और जितना पैसा मिलता है वो इस पद को महत्‍वपूर्ण बना देता है.


इनका कार्यकाल खत्म हो गया है.बीते साल 17 जुलाई 2021 को 19 विधान पार्षद रिटायर हुए. तीन विधान पार्षद चुनाव लड़कर विधायक हो गए. दो विधान पार्षदों का निधन हो गया. इस लिए इन 24 सीटों पर ये चुनाव होना है. जो 19 विधान पार्षद जुलाई 2021 में सेवानिवृत्‍त हुए उनमें राधा चरण साह, मनोरमा देवी, रीना यादव, संतोष कुमार सिंह, सलमान रागीब, राजन कुमार सिंह, सच्चिदानंद राय, टुन्‍ना जी पांडेय , बबलू गुप्ता, दिनेश प्रसाद सिंह, सुबोध कुमार, राजेश राम, दिलीप जायसवाल, संजय प्रसाद, अशोक अग्रवाल, नूतन सिंह, सुमन कुमार, आदित्य नारायण पांडेय और रजनीश कुमार हैं.


मनोज कुमार, रीतलाल यादव, दिलीप राय विधान पार्षद थे जिन्होंने चुनाव लड़ा और जीत कर विधायक बन गए. अब ये 3 सीटें खाली हैं. वहीं हरिनारायण चैधरी और दरभंगा के एमएलसी सुनील कुमार सिंह का निधन हो गया था. जिसके बाद ये 2 सीटें खाली पड़ी है. अब कुल 24 सीटों पर चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों का मंथन भी चालू हो गया है. सीट बंटवारे को लेकर अब सभी गठबंधन आपस में विचार विमर्श कर रहे हैं.


इनका कार्यकाल छह साल का होता है लेकिन इन छह सालों में विधान परिषद का सदस्‍य अपने क्षेत्र में विकास के लिए करीब 18 करोड़ खर्च कर सकता है. इसके अलावा उसे करीब 40 हजार वेतन के रूप में मिलते हैं और इस वेतन से ज्‍यादा उन्‍हें क्षेत्रीय भत्‍ते के रूप में प्रति माह दिया जाता है ये राशि करीब 50 हजार रुपए हैं. ऑफिस भत्‍ता के नाम पर 10 हजार रुपए स्‍टेशनरी आदि के नाम पर दिया जाता है. इतना ही नहीं दैनिक भत्‍ते के रूप में 60 हजार और सहियोगी के लिए 30 हजार का भुगतान किया जाता है. सबसे बड़ी चीज यह कि एक एमएलसी सालाना खर्च के लिए 3 करोड़ रुपए रेकमेंड कर सकते हैं. न केवल ढेरों सुविधाओं के हकदार हैं एमएलसी बल्कि क्षेत्र के विकास में निभाते हैं महत्‍वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. हर साल क्षेत्र के विकास में 3 करोड़ रुपए की राशि कर सकते हैं आवंटित.बहार विधान परिषद की 24 सीटों पर होने वाले चुनाव में बड़ा खेल पर्दे के पीछे से चल रहा है. इस लिए इन्हे हर साल 3 करोड़ रुपए तक किसी काम को पूरा कराने और क्षेत्र के विकास के जारी करने का अधिकार होता है. यह राशि 6 साल में 18 करोड़ रुपए होती है.


एक एमएलसी को राज्‍य के बाहर जाने के भत्‍ते के रूप में 2500 रुपए मिलते हैं. आवासीय फोन या मोबाइल के नाम पर 1 लाख रुपए तक राशि सालाना प्रदान की जाती है. वाहन खरीदने के लिए 5 फीसद के साधारण ब्‍याज दर पर 15 लाख रुपए तक दिया जाता है.लगभग एक लाख रुपए तक की राशि कंप्‍यूटर और ऑफिस तैयार करने के लिए दिए जाते हैं. फर्नीचर आदि के लिए भी 1 लाख रुपए की राशि भत्‍ते के रूप में आवंटित की जाती है. राज्‍य के भीतर 20 रुपए प्रति किलोमीटर और राज्‍य के बाहर यात्रा पर वाहन खर्च के नाम पर 25 रुपए प्रति किलो मीटर से राशि का भुगतान किया जाता है.माननीय के परिजनों के इलाज के खर्च के लिए जिनमें पत्‍नी या पति सहित आश्रित माता पिता और दो बच्‍चों के इलाज की राशि रिम्बर्स की जाती है. जिसकी सीमा 3 लाख रुपए होती है.यात्रा के लिए रेलवे का कूपन हवाई जहाज का टिकट जो 3 लाख के अंदर दिया जाता है.इसे बिल के आधार पर भुगतान किया जाता है.


एमएलसी अप्रत्‍यक्ष रूप से चुने गए जनता के सेवक होते हैं. सविंधान में एक एमएलसी को यह ध्‍यान में रख कर महत्‍वपूर्ण जिम्‍मेदारी सौंपी गई है कि समाज के हर वर्ग और हर क्षेत्र का विकास समुचित तरीके से हो. इस लिए यदि जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों से कोई हिस्‍सा छूट जाए तो विधान पार्षद उसे स्‍वतः संज्ञान से पूरा कर सके. सूत्रों का कहना है कि मौजूदा सदस्‍यों को बढ़ाने पर विचार चल रहा है. अमल करने की जरूरत है.


अगर आजादी के बाद से यदि सदस्‍यों की संख्‍या की बात की जाए तो 26 जनवरी, 1950 को लागू भारतीय संविधान के अनुच्‍छेद-171 में वर्णित उपबन्‍धों के अनुसार विधान परिषद् के कुल सदस्‍यों की संख्‍या 72 निर्धारित की गई थी. बाद में विधान परिषद अधिनियम, 1957 द्वारा 1958 में परिषद के सदस्‍यों की संख्‍या 72 से बढ़ाकर 96 कर दी गई. लेकिन बिहार के पुनर्गठन अधिनियम, 2000 द्वारा बिहार के 18 जिलों और 4 प्रमंडलों को मिलाकर 15 नवम्‍बर, 2000 को बिहार से अलग कर झारखंड राज्‍य की स्‍थापना हुई और बिहार विधान परिषद् के सदस्‍यों की संख्‍या 96 से घटाकर 75 निर्धारित की गई. अभी बिहार विधान परिषद् में 27 सदस्‍य बिहार विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से चुने, 6 शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से, 6 स्‍नातक निर्वाचन क्षेत्र से, 24 स्‍थानीय प्राधिकार से और 12 मनोनीत सदस्‍य होते हैं. बिहार विधानसभा में परिषद के सदस्य संख्या बढ़ सकती है. जी हां अभी कुल 75 सदस्य हैं.


संविधान की धारा 171 के अनुसार विधानसभा में कुल सदस्यों की संख्या के अधिकतम एक तिहाई सदस्य विधान परिषद में हो सकते हैं. बिहार की विधान सभा 243 सीटों की है. विधान सभा सीटों की एक तिहाई यानी 81 सदस्य परिषद में हो सकते हैं. यानी अभी भी छह सीटों की गुंजाइश है. जानकारों की मानें तो बिहार पुनर्गठन विधेयक के तहत बिहार विधान परिषद की मौजूदा संख्या का निर्धारण किया गया है. इसलिए उक्त विधेयक में भी संशोधन करना होगा. इसके पहले राज्य कैबिनेट में प्रस्ताव पारित कराकर दोनों सदनों से पारित कराने की प्रक्रिया पूरी करनी होगी.


 अभी विधान परिषद में स्नातक और शिक्षक निर्वाचन क्षेत्रों में प्रत्येक के 6 यानी 12, स्थानीय निकायों से निर्वाचित 24, राज्यपाल द्वारा मनोनीत विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्टता रखने वाले 12 और विधानसभा सदस्यों से निर्वाचित होने वाले 27 सदस्य होते हैं. बिहार बंटवारे के बाद एंग्लो इंडियन समुदाय से मनोनीत होने वाले एक सदस्य का कोटा झारखंड चला गया .इस समुदाय को प्रतिनिधित्व देने की मांग हो रही है. अधिवक्‍ताओं, किसानों,एंग्लो इंडियन समुदाय समेत दूसरे वर्ग से प्रतिनिधित्व देने की मांग उठती रही है.


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