सम्राट अशोक, शराबबंदी और जदयू-भाजपा के रिश्ते

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सम्राट अशोक, शराबबंदी और जदयू-भाजपा के रिश्ते

फ़ज़ल इमाम मल्लिक

बिहार में एनडीए में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. कम से कम बयानों से तो ऐसा ही लग रहा है. अंदरखाने क्या है, इसकी जानकारी तो इन दलों के शीर्ष नेताओं को ही पता है लेकिन जो सामने नजर आरहा है उससे तो ऐसा ही लगता है कि सरकार संकट में है और अब गई तो तब गई. वैसे मीडिया का एक तबका रोज ही सरकार गिरा रहा है. लेकिन दूसरा पहलू यह है कि सरकार को लेकर भाजपा भी कठघरे में है. सरकार गिरती है तो उसकी कालिख उसके चेहरे पर ही दिखाई देगी. कई मौके आए जब सरकार को लेकर भाजपा ने सवाल उठाए. लेकिन सवाल उठाने से पहले भाजपा भूल गई कि सरकार में वह भी शामिल है और अगर किसी बात के लिए नीतीश कुमार जिम्मेदार हैं तो उतनी ही जिम्मेदार भाजपा और उसके नेता भी हैं. कई बार तो उसके बयान से ऐसा लगा कि वह सरकार में नहीं विपक्ष में है. जाहिर है कि कई मौकों पर उसने गठबंधन धर्म की लक्ष्मण रेखा पार की. कमोबेश यही स्थिति फिर है. पहले सम्राट अशोक के अपमान को लेकर दोनों दल सामने आए, फिर शराबबंदी का सवाल भाजपा ने उठाया.

जदयू और भाजपा में तकरार जारी है. तकरार इतनी ज्यादा बढ़ी कि भाजपा ने लालू राज की याद दिलाई. संग्राम पहले सम्राट अशोक पर छिड़ा. बात फिर शराबबंदी तक जा पहुंची. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं संजय जासवाल. सांसद भी हैं. जदयू नेताओं ने साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित नाटककार और कभी भाजपा सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक रहे दयाप्रकाश सिन्हा को दिए सम्मान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से वापस लेने की मांग की. संजय जायसवाल को यह मांग पसंद नहीं आई. उन्हें लगा कि जदयू नेता इस मामले में ख्वाहमख्वाह प्रधानमंत्री को घसीट रहे हैं. उन्होंने तड़ से सोशल मीडिया पर लिख मारा. प्रधानमंत्री का अपमान न करें जदयू नेता नहीं तो इसका जवाब हमारे लाखों कार्यकर्ता देंगे. अब जायसवाल साहब को कौन बताए कि प्रधानमंत्री से देश भर के न जाने कितने लोग रोज न जाने कितनी मांगों की मांग करते हैं. किस-किस का जवाब देंगे भाजपा कार्यकर्ता. वैसे संजय जायसवाल ने गठबंधन धर्म की याद दिलाई तो जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने पहले उन्हें जवाब दिया और कहा कि उनके इस बयान से वह सहमत नहीं हैं लेकिन सम्राट अशोक के अपमान पर वे क्या सोचते हैं और कहते हैं उस पर स्थिति साफ करें. फिर जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने भी मोर्चा संभाला और तार्किक बयान देने की सलाह देते हुए कहा कि बात नहीं समझ में आती तो गांधी मैदान जा कर फरियाएं. दरअसल दयाप्रकाश सिन्हा ने सम्राट अशोक की तुलना औरंगजेब से करते हुए उन्हें बदसूरत, कामुक और चंडारोक यानी बहुत ही क्रूर था. उनके इस बयान पर बिहार में संग्राम छिड़ा. जदयू ने इसे सम्राट अशोक का अपमान बताया. पहले ललन सिंह और फिर उपेंद्र कुशवाहा ने कड़ा एतराज जताया और पुरस्कार वापसी की मांग कर डाली. भाजपा को पहले लगा कि दयाप्रकाश सिन्हा तो उनके अपने आदमी हैं इसलिए भाजपा इस विवाद में कूदी. लेकिन दांव उल्टा पड़ा. दयाप्रकाश सिन्हा 2010 में भाजपा छोड़ चुके थे. हालांकि उनकी विचारधारा को जो जानते हैं वह जानते हैं कि उनकी सोच कैसी है. बिहार भाजपा को जब इस तथ्य का पता चला तो उसने दो कदम पीछे खींचे और संजय जायसवाल ने दयाप्रकाश सिन्हा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा डाली. दिलचस्प यह है कि जायसवाल ने अपनी एफआईआर में इस बात का उल्लेख किया है कि अपने विकिपीडिया पेज पर दयाप्रकाश सिन्हा ने अब तक खुद को भाजपा सांस्कृतिक प्रकोष्ठ का राष्ट्रीय संयोजक घोषित कर रखा है जो गलत है. लेकिन उन्होंने इस मामले में नहीं बल्कि नफरत फैलाने के लिए केस दर्ज किया है. लेकिन सवाल यह है कि जब कोई शख्स अपने प्रोफाइल में खुद को भाजपा का पदाधिकारी बता रहा है जो वह है नहीं तो क्या उसके खिलाफ धोखाधड़ी का केस नहीं बनता है और क्या ऐसे व्यक्ति को पुरस्कार मिलना चाहिए थे.

संजय जायसवाल का कहना है कि दया प्रकाश सिन्हा के हम आप से सौ गुना ज्यादा बड़े विरोधी हैं क्योंकि आपके लिए यह मुद्दा बिहार में शैक्षिक सुधार जैसा मुद्दा है जबकि जनसंघ और भाजपा का जन्म ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर हुआ है. हम अपनी संस्कृति और भारतीय राजाओं के स्वर्णिम इतिहास में कोई छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं कर सकते. पर हम यह भी चाहते हैं कि बख्तियार खिलजी से लेकर औरंगजेब तक के अत्याचारों की सही गाथा आने वाली पीढ़ियों को बताई जाए. उन्होंने कहा कि 74 वर्ष में एक घटना नहीं हुई जब किसी पद्मश्री पुरस्कार की वापसी हुई हो. पहलवान सुशील कुमार पर हत्या के आरोप सिद्ध हो चुके हैं. इसके बावजूद राष्ट्रपति ने उनका पदक वापस नहीं लिया क्योंकि पुरस्कार वापसी मसले पर कोई निश्चित मापदंड नहीं है. दिलचस्प यह है कि वे बिहार सरकार से कह रहे हैं कि दयाप्रकाश सिन्हा पर मुकदमा को आगे बढ़ा कर उन्हें सजा दी जाए और फिर प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति से मिले. उन्हें एतराज इस बात का है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पुरस्कार वापसी का मुतालबा जदयू नेता क्यों कर रहे हैं. ललन सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री से ही यह मांग की जा सकती है. वे ऐसा करने में सक्षम हैं. उपेंद्र कुशवाहा का कहना है कि पुरस्कार भले राष्ट्रपति के हाथों दिया जाता हो लेकिन पुरस्कार केंद्र सरकार देती है, राष्ट्रपति नहीं.

शराबबंदी को लेकर भी भाजपा आक्रामक दिख रही है. संजय जायसवाल ने सरकार को कठघरे में खड़ा किया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले में जहरीली शराब से हुई मौतों के बाद भाजपा ने जोरजार हमला बोला. शराबबंदी कानून की समीक्षा को लेकर फिर उसने तलवारें म्यान से निकाली. लेकिन जायसवाल की धार को उनके ही पार्टी के कद्दावर नेता और राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने कुंद कर दिया. उन्होंने कहा कि शराब से हुई मौतों को शराबबंदी से जोड़ कर देखना गलत है. उन्होंने कुछ साल पहले उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र (तब वहां भाजपा की सरकार थी) और बंगाल में जहरीली शराब से हुई मौतों का जिक्र करते हुए नीतीश कुमार का जोरदार बचाव किया. भाजपा की बिहार इकाई सुशील मोदी के इस बयान से सकते में है. वैसे जदयू यह सवाल जरूर कर रहा है कि भाजपा के विधायकों और नेताओं ने शराबबंदी को लेकर शपथ ली थी, क्या वे यह भूल गए. नीतीश कुमार ने अभी इन तमाम मुद्दों पर कुछ भी नहीं कहा है लेकिन बिहार में सम्राट अशोक के मामले में कई सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन सक्रिय हैं और हर रोज दयाप्रकाश सिन्हा के खिलाफ कार्रवाई की मागं बिहार के अलग-अलग कोने से उठ रही है. रविवार को महात्मा फूले समता परिषद सैंकड़ों गाड़ियों की रैली वैशाली से पटना तक करने की योजना बना रहा है.

यह सही है कि दोनों पार्टियों की नीतियों में कई मसलों पर फर्क होने से कई बार ऐसा भी लगता है कि इनके बीच की दूरी बढ़ रही है. लेकिन फिर सब कुछ ठीक हो जाता है. वैसे मुकेश साहनी भी भाजपा से नाराज दिख रहे हैं. रोज नए बयान और फिर बयान पर बयान. गठबंधन के लिए इसे ठीक नहीं माना जा रहा है. भाजपा की परेशानी यह है कि नीतीश कुमार के कद के सामने उनका कोई बड़ा नेता तन कर खड़ा नहीं हो पा रहा है और बिहार भाजपा इसे पचा नहीं पा रही है.


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