कांटे की लड़ाई से शुरुआत हो रही है

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

कांटे की लड़ाई से शुरुआत हो रही है

रमा शंकर सिंह

रण दुंदुभि बच चुकी है . मैदान में दोनों सेनायें आ रही हैं. काँटे की लड़ाई से शुरुआत हो रही है.अभी चौथाई मतदाता अपने निर्णय को खोल नहीं रहा है,मतदान के दिन तक! किसी के भी पक्ष में या कि विपक्ष में मज़बूत लहर यदि बनी तो पश्चिमी यूपी के पहले दूसरे चरण से उठेगी और अंतिम तक पहुँचते तस्वीर स्पष्ट हो जायेगी लेकिन कई बार मतमशीन चौंकाती है. अपनी ज़मीनी बूथ स्तर की ताक़त के बारे में अतिआत्मविश्वास , गलतफहमी और तृणमूल स्तर पर गणित जमाने की गलती ले डूबेगी किसी भी एक पक्ष को . 

सपा ज़रूर बहुत तेज़ी से आगे बढ़ी है और अभी पिछड़े वर्गों का अधिकाँश ध्रुवीकरण होकर दिखने लगना बाक़ी है. इस माहौल को एक नेता के कंधे पर उठाये रखना तब तक मुश्किल होगा जब तक कि साधारण गरीब मतदाता इसे अपना चुनाव न बना लें. अखिलेश का कार्यकर्ता आज के बाद लखनऊ दिखना नहीं चाहिये और न ही प्रत्याशी के अगल बग़ल . उसे अपना और आसपास का बूथ ही संभालना है.सपा नेतृत्व को अपनी महती चुनावी चुनौतियों के लिये शीघ्र ही तैयार करना होगा. समय है ही नहीं. 

इसी तरह प्रधानमंत्री और तमाम मुख्यमंत्रियों केंद्रीय मंत्रियों से कहीं का भी चुनाव प्रभावित नहीं हुआ है सिवाय धन व समय की बर्बादी के पर पहले से ही पक्षपाती टीवी चैनलों की कमाई बढ़ जायेगी . बाहर के राज्यों के कार्यकर्ताओं का प्रयोग सब जगहों पर असफल ही हुआ है और यहॉं भी होगा.  पार्टी का चुनाव संचालन कुछ हद तक बाधित ज़रूर होता है.  लेकिन याद रहे कि भाजपा की भारीभरकम चुनावी महामशीन हमेशा अपने बूते ४-६% एंटीइनकम्बेंसी पर कंट्रोल कर लेती है. कॉर्पोरेट का अथाह पैसा भाजपा के लिये पानी की तरह बहेगा. अब चुनाव आयोग भाजपा का एक विभाग ही माना जाता है . कोरोना का बहाना लेकर रैली आदि पर नियंत्रण आदेशों को लगाना सिलेक्टिव रूप से ही होगा जिससे अधिकतम फ़ायदा सत्तादल को हो.  

इस चुनाव की कुंजी किसानों और पिछड़ों के हाथ रहेगी. यदि संयुक्त किसान मोर्चा ने एक मज़बूत  मोर्चा लखीमपुर से पुन: शुरु कर दिया और पहले दूसरे चुनावी चरण में गॉंव गॉंव अपना संदेश पहुँचा दिया तो मुक़ाबला और दिलचस्प होकर इकतरफा झुक सकता है. 

यह स्पष्ट दिख रहा है कि पूरे यूपी में २०१७ के मुक़ाबले भाजपा को काफ़ी सीटों का नुक़सान होगा लेकिन तब बसपा उसके काम आयेगी और मोलतोल कर बहुमत का जुगाड़ होगा. कांग्रेस कुल वोटों में पहले के मुक़ाबले आधे वोट ही ले पायेगी यानी ३-४% लेकिन सीटें पहले जितने ही जीतेगी ६-८        

औबेसी को मुसलमान वोट नहीं मिलेगा और दो चार जगह छोड़कर सब जगहों पर ज़मानतें ज़ब्त होगी.  कांग्रेस ज़मानत ज़ब्त के मामले में प्रथम स्थान पर आयेगी और इस चुनाव के बाद यूपी में अपने राजनीतिक अस्तित्व से पूरी तरह तिरोहित हो जायेगी. अपने साथ कांग्रेस नवोदित दलित नेता चंद्रशेखर रावण को भी डुबो देगी. आज कांग्रेस की कुल रणनीति विपक्ष के स्थान पर क़ब्ज़ा रखने के लिये क्षेत्रीय दलों को हरवाने तक सीमित रह गया है . 

मुझे लगता है कि अंतत: जीतने वाली पार्टी क़रीब २५० सीटें लेगी इसका आज यह अर्थ है कि भाजपा को अपने कुल  नुक़सान को ५०-६० सीटों से अधिक नहीं बढने देना होगा जब कि सपा को अपनी आज की बराबर की स्थिति में इतनी ही सीटों के इज़ाफ़े के बारे में सोचना व करना होगा रमा शंकर सिंह

रण दुंदुभि बच चुकी है . मैदान में दोनों सेनायें आ रही हैं. काँटे की लड़ाई से शुरुआत हो रही है.अभी चौथाई मतदाता अपने निर्णय को खोल नहीं रहा है,मतदान के दिन तक! किसी के भी पक्ष में या कि विपक्ष में मज़बूत लहर यदि बनी तो पश्चिमी यूपी के पहले दूसरे चरण से उठेगी और अंतिम तक पहुँचते तस्वीर स्पष्ट हो जायेगी लेकिन कई बार मतमशीन चौंकाती है. अपनी ज़मीनी बूथ स्तर की ताक़त के बारे में अतिआत्मविश्वास , गलतफहमी और तृणमूल स्तर पर गणित जमाने की गलती ले डूबेगी किसी भी एक पक्ष को . 

सपा ज़रूर बहुत तेज़ी से आगे बढ़ी है और अभी पिछड़े वर्गों का अधिकाँश ध्रुवीकरण होकर दिखने लगना बाक़ी है. इस माहौल को एक नेता के कंधे पर उठाये रखना तब तक मुश्किल होगा जब तक कि साधारण गरीब मतदाता इसे अपना चुनाव न बना लें. अखिलेश का कार्यकर्ता आज के बाद लखनऊ दिखना नहीं चाहिये और न ही प्रत्याशी के अगल बग़ल . उसे अपना और आसपास का बूथ ही संभालना है.सपा नेतृत्व को अपनी महती चुनावी चुनौतियों के लिये शीघ्र ही तैयार करना होगा. समय है ही नहीं. 

इसी तरह प्रधानमंत्री और तमाम मुख्यमंत्रियों केंद्रीय मंत्रियों से कहीं का भी चुनाव प्रभावित नहीं हुआ है सिवाय धन व समय की बर्बादी के पर पहले से ही पक्षपाती टीवी चैनलों की कमाई बढ़ जायेगी . बाहर के राज्यों के कार्यकर्ताओं का प्रयोग सब जगहों पर असफल ही हुआ है और यहॉं भी होगा.  पार्टी का चुनाव संचालन कुछ हद तक बाधित ज़रूर होता है.  लेकिन याद रहे कि भाजपा की भारीभरकम चुनावी महामशीन हमेशा अपने बूते ४-६% एंटीइनकम्बेंसी पर कंट्रोल कर लेती है. कॉर्पोरेट का अथाह पैसा भाजपा के लिये पानी की तरह बहेगा. अब चुनाव आयोग भाजपा का एक विभाग ही माना जाता है . कोरोना का बहाना लेकर रैली आदि पर नियंत्रण आदेशों को लगाना सिलेक्टिव रूप से ही होगा जिससे अधिकतम फ़ायदा सत्तादल को हो.  इस चुनाव की कुंजी किसानों और पिछड़ों के हाथ रहेगी. यदि संयुक्त किसान मोर्चा ने एक मज़बूत  मोर्चा लखीमपुर से पुन: शुरु कर दिया और पहले दूसरे चुनावी चरण में गॉंव गॉंव अपना संदेश पहुँचा दिया तो मुक़ाबला और दिलचस्प होकर इकतरफा झुक सकता है. यह स्पष्ट दिख रहा है कि पूरे यूपी में २०१७ के मुक़ाबले भाजपा को काफ़ी सीटों का नुक़सान होगा लेकिन तब बसपा उसके काम आयेगी और मोलतोल कर बहुमत का जुगाड़ होगा. कांग्रेस कुल वोटों में पहले के मुक़ाबले आधे वोट ही ले पायेगी यानी ३-४% लेकिन सीटें पहले जितने ही जीतेगी ६-८        

औबेसी को मुसलमान वोट नहीं मिलेगा और दो चार जगह छोड़कर सब जगहों पर ज़मानतें ज़ब्त होगी.  कांग्रेस ज़मानत ज़ब्त के मामले में प्रथम स्थान पर आयेगी और इस चुनाव के बाद यूपी में अपने राजनीतिक अस्तित्व से पूरी तरह तिरोहित हो जायेगी. अपने साथ कांग्रेस नवोदित दलित नेता चंद्रशेखर रावण को भी डुबो देगी. आज कांग्रेस की कुल रणनीति विपक्ष के स्थान पर क़ब्ज़ा रखने के लिये क्षेत्रीय दलों को हरवाने तक सीमित रह गया है . मुझे लगता है कि अंतत: जीतने वाली पार्टी क़रीब २५० सीटें लेगी इसका आज यह अर्थ है कि भाजपा को अपने कुल  नुक़सान को ५०-६० सीटों से अधिक नहीं बढने देना होगा जब कि सपा को अपनी आज की बराबर की स्थिति में इतनी ही सीटों के इज़ाफ़े के बारे में सोचना व करना होगा.

मतदाताओं का फ़ैसला निर्णायक होना चाहिये , त्रिशंकु नहीं . 

इस चुनाव के बाद कम से कम दो दशकों तक अखिलेश यूपी के एक बड़े नेता के रूप में बने रह सकते हैं और यह उनके लिये बड़ा हासिल है. ग़ैर कांग्रेस , ग़ैर भाजपा राजनीति के लिये एक उपलब्धि और होगी वह है आगामी संसदीय चुनावों में तृणमूल एनसीपी सपा राजद अकाली बीजद वाईएसआर तथा आप पार्टी की संयुक्त ताक़त का एक समूह के रूप में कांग्रेस को बौना कर देना ! भविष्य में किसी भी ऐसी स्थिति में नीतीश का एनडीए से अलग होना असंभाव्य नहीं मानना चाहिये. 

२०१९ में किसने सोचा था कि मोदी योगी भाजपा संघ को ऐसी भी चुनौती हिंदी पट्टी से मिल सकती है?

मतदाताओं का फ़ैसला निर्णायक होना चाहिये , त्रिशंकु नहीं . 

इस चुनाव के बाद कम से कम दो दशकों तक अखिलेश यूपी के एक बड़े नेता के रूप में बने रह सकते हैं और यह उनके लिये बड़ा हासिल है. 

ग़ैर कांग्रेस , ग़ैर भाजपा राजनीति के लिये एक उपलब्धि और होगी वह है आगामी संसदीय चुनावों में तृणमूल एनसीपी सपा राजद अकाली बीजद वाईएसआर तथा आप पार्टी की संयुक्त ताक़त का एक समूह के रूप में कांग्रेस को बौना कर देना ! भविष्य में किसी भी ऐसी स्थिति में नीतीश का एनडीए से अलग होना असंभाव्य नहीं मानना चाहिये. 

२०१९ में किसने सोचा था कि मोदी योगी भाजपा संघ को ऐसी भी चुनौती हिंदी पट्टी से मिल सकती है?


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