भाजपा के आगे कुआँ और पीछे खाई है

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भाजपा के आगे कुआँ और पीछे खाई है

डा रवि यादव

चार पाँच महीने पहले के घटनाक्रम से अनुमान हो चुका था कि 2022 के यूपी विधान सभा चुनाव में सत्ताधारी भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी होगी. विधान सभा चुनाव की तारीख़ों के एलान के साथ ही  मुक़ाबले की न केवल तस्वीर साफ़ हो चुकी है  बल्कि पिछले तीन दिन के घटनाक्रम से समाजवादी पार्टी भाजपा पर बढ़त बनाती दिखाई दे रही है.चुनावों की घोषणा के बाद जिस तरह पिछड़ें विधायक भाजपा छोड़ रहे है इसका अनुमान शायद कम ही लोगों को रहा हो लेकिन इसकी पटकथा विधान सभा में 150 से अधिक भाजपा के विधायकों के अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ धरने से हो गई थी. हमें नहीं भूलना चाहिए कि मंडल आयोग की अनुशंसाओॉ के विरोध से ही भाजपा का उदय हुआ..मंडल के विरोध के कारण सवर्ण जातियाँ भाजपा के साथ हो गई क्योंकि वह अकेली पार्टी थी जिसने मंडल आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर पिछड़ों के आरक्षण का विरोध किया और आरक्षण को जातीय के बजाय आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर देने का आश्वासन अपने चुनाव घोषणा पत्र में दिया. हाँ पिछड़ों के साथ ब्राह्मण विधायकों की भगदड़ ज़रूर अप्रत्याशित है लेकिन उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में ठाकुर और ब्राह्मण के बीच लम्बे समय से सामाजिक वर्चस्व के लिए प्रतिद्वंदिता रही है और इस बीच भाजपा के सहयोग से बनी मायावती सरकार द्वारा कुंडा प्रतापगढ़  से विधायक रघुराजप्रताप उर्फ़ राजा भैया पर पोटा के तहत कार्यवाही में समाजवादी पार्टी द्वारा राजा भैया को समर्थन आदि कारणों से प्रदेश के ठाकुर वोटों का अच्छा हिस्सा समजवादी पार्टी को मिलता रहा है अर्थात सवर्णों में ठाकुर वोट कहने को ही भाजपा का कोर वोट रहा है. इस अविश्वसनीय वोट बैंक को मज़बूती से साथ रखने के लिए नेतृत्व ने योगी को खुलकर ठाकुरवाद करने की छूट दी परिणाम यह हुआ कि परम्परागत ब्राह्मण मतदाता भी आज भाजपा से नाराज़ है. कई विद्वान तर्क देते है कि तमाम महत्वपूर्ण पदों पर ब्राह्मण है ऐसे में ब्राह्मणों की नाराज़गी सिर्फ़ कल्पना है लेकिन हमें उस मानव मनोविज्ञान को भी याद रखना होगा जिसमें आदमीं अपने दुःख के बजाय दूसरों की ख़ुशी से भी दुःखी हो जाता है. इटावा मैनपुरी क्षेत्र में एक कहावत प्रचलित है- “ हमरी आँख फुटिए तो फुटिए पढ़ौसी की अठैइनतो हुइए” ( मेरी आँख ख़राब होगी तो चलेगा पड़ौसी के लिए अपशकुन तो हो जाएगा).


स्वामीप्रसाद मौर्य पिछड़ों के एक बड़े नेता है, धर्म सिंह सैनी और दारा सिंह चौहान भी अपने समुदाय के क़द्दावर नेताओ में गिने जाते है सभी ने अपने इस्तीफ़े में लिखा है कि दलितों पिछड़ों ,किसानों, बेरोज़गार युवाओं और छोटे व्यापारियों की लगातार उपेक्षा से तंग आकर उन्होंने मंत्री पद छोड़ने का निर्णय लिया है. उनके साथ सात और विधायकों ने इस्तीफ़े का एलान कर दिया है.


भाजपा का हाल कुछ ऐसा है कि एक आयुर्वेदिक आश्रम के नज़दीक के सभी रेस्टोरेंट बिना मिर्च मसाले का खाना बनाते थे ,एक रेस्तरां के शेफ ने दाल की प्लेट में  थोड़ी मिर्च डाली तो ग्राहक को दाल का स्वाद बढ़ गया , ग्राहक ने साथियों को बताया जो दूसरे रेस्तरांओं में खाते थे, देखते देखते रेस्तरां चल पड़ा.  मिर्च के चमत्कार से रोमांचित शेफ ने दाल की हर प्लेट में मिर्चियां बढ़ाना शुरू कर दिया . अब ग्राहक भाग खड़े हुए. ग्राहक बेचारे पानी खोजने लगे .शेफ सिर खुजलाने लगा कि यह सब क्या हो गया . यही हाल आजकल भाजपा नेतृत्व का है उसे समझ नहीं आ रहा कि स्वामीप्रसाद मौर्य के साथ पिछड़ें विधायकों के इस्तीफ़ों की झड़ी और भगदड़ क्यों है ?और कैसे रोके ? पिछले एक माह में भाजपा के 11 विधायक भाजपा छोड़ चुके है और अनेक के छोड़ने की संभावना है.भाजपा की मिर्च हिंदुत्व है जिसका जरूरत से ज्यादा प्रयोग किया गया है. हिंदुओं का एक तपका मुस्लिमों पर श्रेष्ठता चाहता है , जब तक शांति है तब तक जियो और जीने दो का रवैया ठीक है , थोड़े कट्टरपंथियों को छोड़कर हिंदू धार्मिक राज्य नहीं चाहते. हिन्दू अपने पंडितों का सम्मान करते हैं मगर अपनी जिंदगी चलाने का अधिकार उन्हें नहीं दे सकते. भाजपा ने मिर्च की भारी डोज योगी आदित्यनाथ को यूपी का मुख्य मंत्री बना कर दे दी । इससे अन्य बड़बोलों को प्रोत्साहन मिला । यह ऐसा था कि भाजपा कह रही हो कि " यह हम हमेशा से थे और अब भी है , अब इससे निपटो " . भाजपा की दाल की प्लेट में हिंदुत्व की हरी मिर्ची के साथ ठाकुरवाद की लाल मिर्च भी है.


तमाम राजनैतिक पंडितो को आशंका थी कि योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने का भाजपा का निर्णय एक बड़ी भूल साबित होगी तो संघ समर्थक उन्हें हिंदुत्व के बड़े ऐसेट के रूप में देख रहे थे. हालिया घटनाक्रम दोनो विचारधराओं को सही सिद्ध कर रहा है. चुनाव में योगी स्वयं सबसे बड़ा मुद्दा है, उनकी हठधर्मिता, ज़िद्दीपन और आलोकतांत्रिक तानाशाही पूर्ण कार्यप्रणाली से दलित ,पिछड़े ,अल्पसंख्यक, महिलाएँ और किसान सभी उनके ख़िलाफ़ है, ख़ासकर  पिछड़े उनके विरोध में लामबंद हो रहे है जिनके बिना भाजपा की सरकार बनना संभव नहीं. चर्चा है कि योगी को पीछे कर केशव प्रसाद के नाम पर चुनाव में जाने पर भी केंद्रीय नेतृत्व ने विचार किया है मगर प्रधानमंत्री व गृहमंत्री दोनो ही योगी का नाम पहले ही घोषित कर चुके है और योगी भी इसके लिए तैयार नहीं होने वाले फिर कट्टर भाजपाई वोटर आज भी किसी भी अन्य नेता की तुलना में योगी को अधिक पसंद कर रहा है .

अब भाजपा के आगे कुआँ और पीछे खाई है.


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