केवल एक हथौड़ा और छैनी से प्रेम प्रदर्शित करने वाले थे दशरथ

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केवल एक हथौड़ा और छैनी से प्रेम प्रदर्शित करने वाले थे दशरथ

आलोक कुमार

अतरी.गया जिले के अतरी प्रखंड में है गहलौर गांव.दशरथ मांझी का जन्म 14 जनवरी 1929 को हुआ था.उन्हें "माउंटेन मैन"के रूप में भी जाना जाता है, बिहार में गया के करीब गहलौर गाँव के एक गरीब मजदूर थे.इसी गांव में पड़ता है गहलौर पहाड़.गहलौर पहाड़ का सीना चीरकर गया के अतरी और वज़ीरगंज ब्लॉक का फासला 80 किलोमीटर से घटकर 13 किलोमीटर करने वाले "माउंटेन मैन" दशरथ मांझी का जन्मदिन 14 जनवरी को था.जिसे सरकार और नागरिकों ने भूला दिये.

बता दें कि 1960 में दशरथ मांझी  की पत्नी फाल्गुनी देवी एक बार फिर गर्भवती होती है, इस समय दशरथ को पहाड़ के उस पार कुछ काम मिल जाता है. फाल्गुनी देवी (फगुनिया )रोज उसे खाना देने जाती है, एक दिन अचानक उसका पैर फिसल जाता है और वह गिर जाती है.दशरथ के गांव में कोई अस्पताल ना होने के कारण वह बड़ी मुश्किल से पहाड़ चढ़ के उसे शहर ले जाता है.जहाँ वह एक लड़की को जन्म देती है लेकिन खुद मर जाती है. दशरथ इस बात से बहुत आहत होता है और फगुनिया से वादा करता है कि वह इस पहाड़ को तोड़ रास्ता जरुर बनाएगा.1960 से शुरू हुआ दशरथ का यह प्रण एक हथोड़ी के सहारे था.

प्रेम प्रतिज्ञा और लौह पुरूष का परिचायक एवं अपने अदम्य साहस से उँचे पर्वत को पटक कर सीना चिर देने वाले एवं गहलौर घाटी का निर्माण कर पर्वतों के बीच लम्बा रास्ता बनाने वाले माउंटेन मैन बाबा दशरथ मांझी जी की जयंती पर उन्हें सादर नमन एवं श्रद्धासुमन अर्पित!

बता दें कि दशरथ मांझी काफी कम उम्र में अपने घर से भाग गए थे और धनबाद की कोयले की खानों में उन्होनें काम किया.फिर वे अपने घर लौट आए और फाल्गुनी देवी / Falguni Devi से शादी की. अपने पति के लिए खाना ले जाते समय उनकी पत्नी फाल्गुनी पहाड़ के दर्रे में गिर गयी और उनका निधन हो गया. अगर फाल्गुनी देवी को अस्पताल ले जाया गया होता तो शायद वो बच जाती यह बात उनके मन में घर कर गई.इसके बाद दशरथ मांझी ने संकल्प लिया कि वह अकेले अपने दम पर वे पहाड़ के बीचों बीच से रास्ता निकालेंगे और फिर उन्होंने 360 फ़ुट-लम्बा (110 मी), 25 फ़ुट-गहरा (7.6 मी) 30 फ़ुट-चौड़ा (9.1 मी)गहलौर की पहाड़ियों से रास्ता बनाना शुरू किया. इन्होंने बताया, “जब मैंने पहाड़ी तोड़ना शुरू किया तो लोगों ने मुझे पागल कहा लेकिन इस बात ने मेरे निश्चय को और भी मजबूत किया.”

उन्होंने अपने काम को 22 वर्षों (1960-1982) में पूरा किया. इस सड़क ने गया के अतरी और वज़ीरगंज सेक्टर्स की दूरी को 80 किमी से 13 किमी कर दिया. मांझी के प्रयास का मज़ाक उड़ाया गया पर उनके इस प्रयास ने गहलौर के लोगों के जीवन को सरल बना दिया. हालांकि उन्होंने एक सुरक्षित पहाड़ को काटा, जो भारतीय वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम अनुसार दंडनीय है फिर भी उनका ये प्रयास सराहनीय है। बाद में मांझी ने कहा,” पहले-पहले गाँव वालों ने मुझपर ताने कसे लेकिन उनमें से कुछ ने मुझे खाना दीया और औज़ार खरीदने में मेरी सहायता भी की.”

मांझी के प्रयत्न का सकारात्मक नतीजा निकला.केवल एक हथौड़ा और छैनी लेकर उन्होंने अकेले ही 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट के एक सड़क बना डाली.इस सड़क ने गया के अतरी और वज़ीरगंज सेक्टर्स की दूरी को 80 किमी से 13 किमी कर दी ताकि गांव के लोगो को आने जाने में तकलीफ ना हों. आख़िरकार 1982 में 22 वर्षो की मेहनत के बाद मांझी ने अपने कार्य को पूरा किया. उनकी इस उपलब्धि के लिए बिहार सरकार ने सामाजिक सेवा के क्षेत्र में 2006 में पद्म श्री के लिए उनके नाम का प्रस्ताव भी रखा.                              

पत्नी के चले जाने के गम से टूटे दशरथ मांझी ने अपनी सारी ताकत बटोरी और पहाड़ के सीने पर वार करने का फैसला किया. लेकिन यह आसान नहीं था. शुरुआत में उन्हें पागल तक कहा गया. दशरथ मांझी ने बताया था, 'गांववालों ने शुरू में कहा कि मैं पागल हो गया हूं, लेकिन उनके तानों ने मेरा हौसला और बढ़ा दिया'.

साल 1960 से 1982 के बीच दिन-रात दशरथ मांझी के दिलो-दिमाग में एक ही चीज़ ने कब्ज़ा कर रखा था. पहाड़ से अपनी पत्नी की मौत का बदला लेना. और 22 साल जारी रहे जुनून ने अपना नतीजा दिखाया और पहाड़ ने मांझी से हार मानकर 360 फुट लंबा, 25 फुट गहरा और 30 फुट चौड़ा रास्ता दे दिया

केतन मेहता फिल्म बना डाली

केतन मेहता कितने काबिल निर्देशक हैं ये उनकी अभी तक की फिल्मों से पता चलता हैं लेकिन उन्होंने ‘ मांझी- द माउंटनमैन’ जैसी दो लाइनों की नीरस सी कहानी प्रभावशाली और दिलचस्प तरीके से बताने की कोशिश की हैं कि अगर इंसान कुछ करने की ठान ले तो बड़े बड़े पर्वत भी उसके सामने झुकने के लिये मजबूर हो जाते हैं. उन्होंने फिल्म में बिहार के दशरथ मांझी नामक एक ऐसे शख्स के बारे में बताया है जिसने अकेले महज एक छैनी और हथौड़े से अपनी पत्नी की याद में एक पहाड़  काट कर इतनी चौड़ी सड़क बना दी कि उसमें एक साथ दो ट्रक आ जा सकते हैं. अगर ये कहानी सच न होती तो शायद इसे भी किस्से कहानियों में शुमार कर दिया जाता.


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