हवाई जहाज़ में राजेश खन्ना से बात !

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हवाई जहाज़ में राजेश खन्ना से बात !

अनुराग चतुर्वेदी 

मेरी पहली विदेश यात्रा समाप्ति पर थी. फ़्रान्स और उसके बाद इंग्लैण्ड गया था. पेरिस और लंदन ही दो मुख्य शहर थे. यात्रा फ़्रांसीसी क्रांति के 150 वर्ष के मौक़े पर हुई थी और इसके आयोजक सोशलिस्ट इंटरनेशनल था. इस यात्रा का टिकिट  आने -जाने के लिए एयर इंडिया का था इसलिए लौटना भी एयर इंडिया से ही था. जहाज़ में चढ़ते वक़्त मुझे तब के और आज भी हर फ़िल्मप्रेमी के दिल में राज करनेवाले राजेश खन्ना दिखे.मैंने उन्हें देख अपना पत्रकार होने का परिचय दिया और कहा मैं फ़िल्मी पत्रकार नहीं हूँ राजनीति और सामाजिक विषयों पर लिखता हूँ . उन्होंने कहा ,ठीक है जब जहाज़ चौतीस हज़ार फ़ीट पर उड़ेगा तब हम ज़रूर बात करेंगे.वे बिज़नेस क्लास में थे मैं  इकॉनॉमिक क्लास में था. हम लोगों के रास्ते जुदा हो गये. 

हवाई जहाज़ उड़ा  और जल्दी ही अपनी नियत ऊँचाई पर पहुँच गया. मुंबई-लंदन जहाज़ में कमोबेश भीड़ रहती है और फिर एयर इंडिया हो तो क्या कहने.तभी हलचल हुई, काका जिन्हें मैंने अपनी सीट नम्बर बताया था उन्होंने एयर होस्टेस को भेज मुझे ऊपर बुलाया . उन्होंने सफ़ेद  कुर्ता- धोती जैसी आरामदायक वस्त्र पहने थे. 

हमारी बात राजनीति से शुरू हुई.

तब उनकी राजीव गांधी से मित्रता हुई थी और वे उन्हें राजनीति में आने के लिए कह रहे थे .राजेश खन्ना ने सहज रूप से पूछा,” यह बताओ राज्यसभा बड़ी होती है या लोकसभा ? मुझे कहाँ जाना चाहिए ?मैंने उन्हें कहा लोकसभा का दबदबा अधिक होता है. सीधे चुनाव से जीते प्रतिनिधि की कानून बनाने में अहम भूमिका होती है. हर मायने से लोकसभा बड़ी है. राज्यसभा तो संघीय ढाँचे में राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है.अगर आपको मौक़ा मिलता है तो आप लोकसभा का चुनाव लड़े और लोकप्रिय है और ज़रूर जीत जायेंगे.

वे ध्यान से मेरी कही बातें सुन रहे थे.यह 1990 के आसपास की बात है तब हरियाणा में देवीलाल परिवार का दबदबा था और ओमप्रकाश चौटाला मेहम में हिंसा कर काफ़ी कुख्यात हो चुके थे. हिंसा के कारण वहाँ चुनाव स्थगित हो चुका था और कांग्रेस को नया उम्मीदवार लाने की सोच रही थी.

राजेश खन्ना ने हरियाणा की राजनीति की बात की और मेहम से आशा सचदेव नाम की एक बी.ग्रेड की डान्सर को उम्मीदवार बनाने की सम्भावना पर सोचने लगे.मैंने पूछा, क्या आप गम्भीरता से बात कर रहे हैं.वे बोले ,  बिलकुल.उन्होंने मुझे कहा, आप बॉम्बे पहुँच कर एक-दो दिन में उनसे मिल लें. मैं उन्हें फ़ोन से बता दूँगा.आप उन्हें राजनीति पर सलाह दे दो.क्या वो हरियाणा से चुनाव लड़ें .”मैं आश्चर्यचकित था. राजनीति में सेलिब्रिटी की शुरुआती हो चुकी थी. 

मैंने राजेश खन्ना को कहा आपकी बात तो हो गयी. मैं भी आपसे अमरप्रेम  फ़िल्म की बात करना चाहता था. आराधना फ़िल्म की बात करना चाहता था. आपके सशक्त अभिनय की बात करनी थी. इसी बीच उन्होंने हम दोनों के लिए खाने का ऑर्डर दे दिया . मेरी फ़िल्मी जिज्ञासा अधूरी ही रह गयी. उन्होंने जाते समय मुझे आशा सचदेव का फ़ोन नम्बर दिया और जब हम बॉम्बे पहुँचे तो मुझसे पूछा आपके पास कोई ऐसा सामान हो जो कस्टम से पार लगाना होतो बतायें. मेरे पास ऐसा कोई सामान नहीं था.

कुछ दिनों बाद में राजेश खन्ना की दोस्त आशा सचदेव से मिलने गया जहां वे और उनकी माँ रहती थीं. वे सिगरेट पी रही थीं और काका की बात उन्हें याद थी. वे राजनीति और उसके ऊपर चुनावी राजनीति के बारे में कुछ नहीं जानती थी. उनमें राजनीति समझ ना के बराबर थी. हरियाणा, मेहम और देवीलाल परिवार से पूरी तरह अनजान थी. 

मैंने उन्हें राजनीतिसे दूर रहने को कहा और हमारी बातचीत समाप्त हुई. आशा सचदेव ने मुझे भोजन पर आमंत्रित किया था इसलिए उन्होंने मुझे भोजन कराके विदा किया.

भारत के अधिकांश फ़िल्मी अभिनेता-अभिनेत्री जिन्होंने राजनीति में सक्रियता दिखायी उनमें मुझे सबसे समझदार राज बब्बर लगे जिनका बैकग्राउंड समाजवादी युवजन सभा का था और जो समाजवादी दल के बाद कांग्रेस में चले गये. राज बब्बर जब समाजवादी पार्टी में थे और मैं महानगर का सम्पादक था तब उन्होंने अंधेरी से विधानसभा का चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया जिसे मैंने विनम्रता पूर्वक अस्वीकार कर दिया पर हमारे दो पत्रकार साथियों सुमन्त मिश्र और बाद में साजिद रशीद को राज बब्बर चुनावी मैदान में उतारने में सफल रहे पर ये दोनों ही चुनाव नहीं जीत पाये.

राज्यसभा में ज़रूर हमारे कई पत्रकार मित्र पहुँच गये जिनमें राजीव शुक्ला, भारत कुमार राऊत,कुमार केतकर और हरिवंश हैं.मेरी पहली अखबारी नौकरी पार्ट टाइम थी और उदयपुर के लोकप्रिय दैनिक जय राजस्थान में चार घंटे जाता था. सम्पादक के नाम पत्र बनाता और चंद्रेश व्यास जिन्हें सभी पापा जी कहते थे उनके लिखे संपादकीय के प्रूफ़ पढ़ता था. चंद्रेश जी नंद बाबू के मित्र थे और और जब नंद बाबू विद्याभवन के गोविंदराम सेक्सरिया टीचर ट्रेनिंग कॉलेज में नौकरी का इंटरव्यू देने आये थे तब व्यास जी  के घर पर ही ठहरे थे और व्यास जी उन्हें अपनी साइकिल पर छोड़ने आये थे.मैं समाजशास्त्री तो नहीं बन पाया लेकिन पत्रकारिता के ज़रिये समाज को समझने की कोशिश करने लगा

 (शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक कुर्ला से कोलाबा के अंश )

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